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'Ander Nagari Natak'
'Ander Nagari Natak'
खाजा
भारतेंद ु हररश्चंद्र
जे स्वारि रत धत
ू त िं स से काक-चररत-रत।
ग्रन्िकार
छे दश्चन्दनचत
ू चंपकवने रिा करीररम
ु े
प्रथम दृश्य
( बाह्य प्रान्त)
गो. दा : गुरु जी! मैं बिुत सी लभच्छा िाता िूाँ। यिााँ िोग तो
बडे मािवर हदखिाई पडते िैं। आप कुछ थचन्ता मत कीजजए।
मिं त : बच्चा बिुत िोभ मत करना। दे खना, िााँ।–
िोभ पाप का मि
ू िै , िोभ लमटावत मान।
दस
ू रा दृश्य
(बाजार)
पाचकवािा :
गो. दा. : (कंु जडडन के पास जाकर) क्यों भाई, भाजी क्या भाव?
कंु जडडन : बाबा जी, टके सेर। ननबुआ मुरई धननयां लमरचा साग
सब टके सेर।
गो. दा. : सब भाजी टके सेर। वाि वाि! बडा आनंद िै । यिााँ
सभी चीज टके सेर। (ििवाई के पास जाकर) क्यों भाई ििवाई?
लमठाई ककतणे सेर?
ििवाई : अंधेरनगरी।
गौ. दा. : वाि! वाि! अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी
टका सेर खाजा (यिी गाता िै और आनन्द से बबगुि बजाता
िै )।
(पटािेप)
तीसरा दृश्य
(स्िान जंगि)
गो. दा. : बाबा जी मिाराज! बडे माि िाया िाँ, साढे तीन सेर
लमठाई िै।
मिन्त : दे खूाँ बच्चा! (लमठाई की झोिी अपने सामने रख कर
खोि कर दे खता िै) वाि! वाि! बच्चा! इतनी लमठाई किााँ से
िाया? ककस धमातत्मा से भेंट िुई?
गो. दा. : गुरूजी मिाराज! सात पैसे भीख में लमिे िे, उसी से
इतनी लमठाई मोि िी िै ।
गो. दा. : अन्धेरनगरी चौपट्ट राजा, टके सेर भाजी टके सेर
खाजा।
रहिए तो दख
ु पाइये, प्रान दीजजए रोय ॥
सो बच्चा चिो यिााँ से। ऐसी अन्धेरनगरी में िजार मन लमठाई
मफ्
ु त की लमिै तो ककस काम की? यिााँ एक छन निीं रिना।
गो. दा. : गुरू जी, ऐसा तो संसार भर में कोई दे स िी निीं िैं।
दो पैसा पास रिने िी से मजे में पेट भरता िै । मैं तो इस नगर
को छोड कर निीं जाऊाँगा। और जगि हदन भर मांगो तो भी पेट
निीं भरता। वरं च बाजे बाजे हदन उपास करना पडता िै । सो मैं
तो यिी रिूाँगा।
गो. दा. : आपकी कृपा से कोई दःु ख न िोगा; मैं तो यिी किता
िूाँ कक आप भी यिीं रहिए।
गो. दा. : प्रणाम गुरु जी, मैं आपका ननत्य िी स्मरण करूाँगा।
मैं तो कफर भी किता िूं कक आप भी यिीं रहिए।
(पटािेप)
चौथा दृश्य
(राजसभा)
राजा : दष्ट्ु ट िुच्चा पाजी! नािक िमको डरा हदया। मन्त्री इसको
सौ कोडे िगैं।
राजा : (घबडाकर) कफर विी नाम? मन्त्री तुम बडे खराब आदमी
िो। िम रानी से कि दें गे कक मन्त्री बेर बेर तुमको सौत बुिाने
चािता िै। नौकर! नौकर! शराब।
2 नौकर : (एक सुरािी में से एक थगिास में शराब उझि कर
दे ता िै।) िीजजए मिाराज। पीजजए मिाराज।
चूनेवािा : मिाराज! मेरा कुछ दोष निीं, लभश्ती ने चूने में पानी
ढे र दे हदया, इसी से चूना कमजोर िो गया िोगा।
लभश्ती : मिाराज! गि
ु ाम का कोई कसरू निीं, कस्साई ने मसक
इतनी बडी बना हदया कक उसमें पानी जादे आ गया।
(पटािेप)
पांचवां दृश्य
(अरण्य)
(राग काफी)
सांचे मारे मारे डाि। छिी दष्ट्ु ट लसर चहढ चहढ बोिैं॥
अंधेर नगरी अनबूझ राजा। टका सेर भाजी टका सेर खाजा ॥
गो. दा. : (घबडा कर) िैं! यि आफत किााँ से आई! अरे भाई,
मैंने तम्
ु िारा क्या बबगाडा िै जो मझ
ु को पकडते िौ।
1. प्या: जब सि
ू ी चढ िीजजएगा तब मािम
ू िोगा कक िं सी िै
कक सच। सीधी राि से चिते िौ कक घसीट कर िे चिें?
गो. दा. : अरे बाबा, क्यों बेकसूर का प्राण मारते िौ? भगवान
के यिााँ क्या जवाब दोगे?
गो. दा. : दि
ु ाई परमेश्वर की, अरे मैं नािक मारा जाता िूाँ! अरे
यिााँ बडा िी अन्धेर िै , अरे गरु
ु जी मिाराज का किा मैंने न
माना उस का फि मुझ को भोगना पडा। गुरु जी किां िौ!
आओ, मेरे प्राण बचाओ, अरे मैं बेअपराध मारा जाता िूाँ गुरु जी
गुरु जी-
(पटािेप)
छठा दृश्य
(स्िान श्मशान)
गरु
ु . : अरे बच्चा गोबधतन दास! तेरी यि क्या दशा िै ?
गो. दा. : (गुरु को िाि जोडकर) गरु
ु जी! दीवार के नीचे बकरी
दब गई, सो इस के लिये मझ
ु े फााँसी दे ते िैं, गरु
ु जी बचाओ।
राजा : (गुरु से) बाबा जी! बोिो। कािे को आप फााँसी चढते िैं?
मिन्त :
(पटािेप)
॥ इनत ॥