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अंधेर नगरी चौपट्ट राजा टके सेर भाजी टके सेर

खाजा

भारतेंद ु हररश्चंद्र

ग्रन्थ बनने का कारण।

बनारस में बंगालियों और हिन्दस्


ु ताननयों ने लमिकर एक छोटा सा
नाटक समाज दशाश्वमेध घाट पर ननयत ककया िै , जजसका नाम
हिंद ू नैशनि थिएटर िै । दक्षिण में पारसी और मिाराष्ट्र नाटक
वािे प्रायः अन्धेर नगरी का प्रिसन खेिा करते िैं, ककन्तु उन
िोगों की भाषा और प्रकिया सब असंबद्ध िोती िै । ऐसा िी इन
थिएटर वािों ने भी खेिना चािा िा और अपने परम सिायक
भारतभूषण भारतेन्द ु बाबू िररश्चन्र से अपना आशय प्रकट ककया।
बाबू सािब ने यि सोचकर कक बबना ककसी काव्य कल्पना के व
बबना कोई उत्तम लशिा ननकिे जो नाटक खेिा िी गया तो इसका
फि क्या, इस किा को काव्य में बााँध हदया। यि प्रिसन पव
ू ोक्त
बाबू सािब ने उस नाटक के पात्रों के अवस्िानुसार एक िी हदन
में लिख हदया िै। आशा िै कक पररिासप्रप्रय रलसक जन इस से
पररतुष्ट्ट िोंगे। इनत।

श्री रामदीन लसंि


समपपण

मान्य योग्य नहिं िोत कोऊ कोरो पद पाए।

मान्य योग्य नर ते, जे केवि परहित जाए ॥

जे स्वारि रत धत
ू त िं स से काक-चररत-रत।

ते औरन िनत बंथच प्रभहु ि ननत िोहिं समन्


ु नत ॥

जदप्रप िोक की रीनत यिी पै अन्त धम्म जय।

जौ नािीं यि िोक तदाप्रप छलियन अनत जम भय ॥

नरसरीर में रत्न विी जो परदख


ु सािी।

खात प्रपयत अरु स्वसत स्वान मंडुक अरु भािी ॥

तासों अब िौं करो, करो सो, पै अब जाथगय।

गो श्रनु त भारत दे स समन्


ु ननत मैं ननत िाथगय ॥

सााँच नाम ननज कररय कपट तजज अन्त बनाइय।


नप
ृ तारक िरर पद सााँच बडाई पाइय ॥

ग्रन्िकार

छे दश्चन्दनचत
ू चंपकवने रिा करीररम
ु े

हिंसा िं समयरू कोककिकुिे काकेषि


ु ीिारनतः

मातंगेन खरियः समतुिा कपूरत कापातलसयो:

एषा यत्र प्रवचारणा गुणणगणे दे शाय तस्मै नमः

अंधेर नगरी चौपट्ट राजा

टके सेर भाजी टके सेर खाजा

प्रथम दृश्य

( बाह्य प्रान्त)

(मिन्त जी दो चेिों के साि गाते िुए आते िैं)

सब : राम भजो राम भजो राम भजो भाई।


राम के भजे से गननका तर गई,

राम के भजे से गीध गनत पाई।

राम के नाम से काम बनै सब,

राम के भजन बबनु सबहि नसाई ॥

राम के नाम से दोनों नयन बबनु

सरू दास भए कबबकुिराई।

राम के नाम से घास जंगि की,

तुिसी दास भए भजज रघुराई ॥

मिन्त : बच्चा नारायण दास! यि नगर तो दरू से बडा सुन्दर


हदखिाई पडता िै ! दे ख, कुछ लभच्छा उच्छा लमिै तो ठाकुर जी
को भोग िगै। और क्या।

ना. दा : गुरु जी मिाराज! नगर तो नारायण के आसरे से बिुत


िी सुन्दर िै जो सो, पर लभिा सुन्दर लमिै तो बडा आनन्द
िोय।

मिन्त : बच्चा गोवरधन दास! तू पजश्चम की ओर से जा और


नारायण दास परू ब की ओर जायगा। दे ख, जो कुछ सीधा
सामग्री लमिै तो श्री शािग्राम जी का बािभोग लसद्ध िो।

गो. दा : गुरु जी! मैं बिुत सी लभच्छा िाता िूाँ। यिााँ िोग तो
बडे मािवर हदखिाई पडते िैं। आप कुछ थचन्ता मत कीजजए।
मिं त : बच्चा बिुत िोभ मत करना। दे खना, िााँ।–

िोभ पाप का मि
ू िै , िोभ लमटावत मान।

िोभ कभी निीं कीजजए, यामैं नरक ननदान ॥

(गाते िुए सब जाते िैं)

दस
ू रा दृश्य

(बाजार)

कबाबवािा : कबाब गरमागरम मसािेदार-चैरासी मसािा बित्तर


आाँच का-कबाब गरमागरम मसािेदार-खाय सो िोंठ चाटै , न
खाय सो जीभ काटै । कबाब िो, कबाब का ढे र-बेचा टके सेर।

घासीराम : चने जोर गरम-

चने बनावैं घासीराम।

चना चरु मरु चरु मरु बौिै।

चना खावै तौकी मैना।

चना खायं गफूरन मुन्ना।

चना खाते सब बंगािी।


चना खाते लमयााँ- जुिािे ।

चना िाककम सब जो खाते।

चने जोर गरम-टके सेर।

नरं गीवािी : नरं गी िे नरं गी-लसििट की नरं गी, बुटबि की


नरं गी, रामबाग की नरं गी, आनन्दबाग की नरं गी। भई नीबू से
नरं गी। मैं तो प्रपय के रं ग न रं गी। मैं तो भि
ू ी िेकर संगी।
नरं गी िे नरं गी। कैविा नीब,ू मीठा नीब,ू रं गतरा संगतरा। दोनों
िािों िो-निीं पीछे िाि िी मिते रिोगे। नरं गी िे नरं गी। टके
सेर नरं गी।

ििवाई : जिेबबयां गरमा गरम। िे सेब इमरती िड्डू


गि
ु ाबजामन
ु खरु मा बंहु दया बरफी समोसा पेडा कचैडी दािमोट
पकौडी घेवर गुपचुप। ििुआ ििुआ िे ििुआ मोिनभोग।
मोयनदार कचैडी कचाका ििुआ नरम चभाका। घी में गरक
चीनी में तरातर चासनी में चभाचभ। िे भूरे का िड्डू। जो खाय
सो भी पछताय जो न खाय सो भी पछताय। रे बडी कडाका।
पापड पडाका। ऐसी जात ििवाई जजसके छप्रत्तस कौम िैं भाई।
जैसे किकत्ते के प्रविसन मजन्दर के लभतररए, वैसे अंधेर नगरी
के िम। सब समान ताजा। खाजा िे खाजा। टके सेर खाजा।

कुजडडन : िे धननया मेिी सोआ पािक चैराई बिुआ करे मूाँ


नोननयााँ कुिफा कसारी चना सरसों का साग। मरसा िे मरसा।
िे बैगन िौआ कोिडा आिू अरूई बण्डा नेनुआाँ सूरन रामतरोई
तोरई मुरई िे आदी लमरचा ििसुन प्रपयाज हटकोरा। िे फािसा
णखरनी आम अमरूद ननबि
ु ा मटर िोरिा। जैसे काजी वैसे पाजी।
रै यत राजी टके सेर भाजी। िे हिन्दस्
ु तान का मेवा फूट और बैर।

मुगि : बादाम प्रपस्ते अखरोट अनार प्रविीदाना मुनक्का


ककशलमश अंजीर आबजोश आिूबोखारा थचिगोजा सेब नाशपाती
बबिी सरदा अंगरू का प्रपटारी। आमारा ऐसा मल्
ु क जजसमें अंगरे ज
का भी दााँत खट्टा ओ गया। नािक को रुपया खराब ककया।
हिन्दोस्तान का आदमी िक िक िमारे यिााँ का आदमी बुंबक
बुंबक िो सब मेवा टके सेर।

पाचकवािा :

चरू न अमि बेद का भारी। जजस को खाते कृष्ट्ण मरु ारी ॥

मेरा पाचक िै पचिोना।

चूरन बना मसािेदार।

मेरा चूरन जो कोई खाय।

हिन्द ू चरू न इस का नाम।

चरू न जब से हिन्द में आया।

चूरन ऐसा िट्टा कट्टा।

चूरन चिा डाि की मंडी।

चूरन अमिे सब जो खावैं।


चूरन नाटकवािे खाते।

चरू न सभी मिाजन खाते।

चूरन खाते िािा िोग।

चूरन खावै एडडटर जात।

चूरन सािेब िोग जो खाता।

चरू न पलू िसवािे खाते।

िे चरू न का ढे र, बेचा टके सेर ॥

मछिीवािी : मछिी िे मछिी।

मछररया एक टके कै बबकाय।

िाख टका के वािा जोबन, गांिक सब ििचाय।

नैन मछररया रूप जाि में , दे खतिी फाँलस जाय।

बबनु पानी मछरी सो बबरहिया, लमिे बबना अकुिाय।

जातवािा : (ब्राह्मण)।-जात िे जात, टके सेर जात। एक टका


दो, िम अभी अपनी जात बेचते िैं। टके के वास्ते ब्रािाण से
धोबी िो जााँय और धोबी को ब्राह्मण कर दें टके के वास्ते जैसी
किी वैसी व्यवस्िा दें । टके के वास्ते झठ
ू को सच करैं। टके के
वास्ते ब्राह्मण से मुसिमान, टके के वास्ते हिंद ू से किस्तान।
टके के वास्ते धमत और प्रनतष्ट्ठा दोनों बेचैं, टके के वास्ते झूठी
गवािी दें । टके के वास्ते पाप को पुण्य मानै, बेचैं, टके वास्ते
नीच को भी प्रपतामि बनावैं। वेद धमत कुि मरजादा सचाई बडाई
सब टके सेर। िट
ु ाय हदया अनमोि माि िे टके सेर।

बननया : आटा- दाि िकडी नमक घी चीनी मसािा चावि िे


टके सेर।

(बाबा जी का चेिा गोबधतनदास आता िै और सब बेचनेवािों की


आवाज सन
ु सन
ु कर खाने के आनन्द में बडा प्रसन्न िोता िै ।)

गो. दा. : क्यों भाई बणणये, आटा ककतणे सेर?

बननयां : टके सेर।

गो. दा. : औ चावि?

बननयां : टके सेर।

गो. दा. : औ चीनी?

बननयां : टके सेर।

गो. दा. : औ घी?

बननयां : टके सेर।

गो. दा. : सब टके सेर। सचमच


ु ।

बननयां : िााँ मिाराज, क्या झठ


ू बोिंग
ू ा।

गो. दा. : (कंु जडडन के पास जाकर) क्यों भाई, भाजी क्या भाव?
कंु जडडन : बाबा जी, टके सेर। ननबुआ मुरई धननयां लमरचा साग
सब टके सेर।

गो. दा. : सब भाजी टके सेर। वाि वाि! बडा आनंद िै । यिााँ
सभी चीज टके सेर। (ििवाई के पास जाकर) क्यों भाई ििवाई?
लमठाई ककतणे सेर?

ििवाई : बाबा जी! िडुआ ििआ


ु जिेबी गि
ु ाबजामन
ु खाजा सब
टके सरे ।

गो. दा. : वाि! वाि!! बडा आनन्द िै ? क्यों बच्चा, मुझसे


मसखरी तो निीं करता? सचमुच सब टके सेर?

ििवाई : िां बाबा जी, सचमुच सब टके सेर? इस नगरी की


चाि िी यिी िै। यिााँ सब चीज टके सेर बबकती िै ।

गो. दा. : क्यों बच्चा! इस नगर का नाम क्या िै ?

ििवाई : अंधेरनगरी।

गो. दा. : और राजा का क्या नाम िै ?

ििवाई : चौपट राजा।

गौ. दा. : वाि! वाि! अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी
टका सेर खाजा (यिी गाता िै और आनन्द से बबगुि बजाता
िै )।

ििवाई : तो बाबा जी, कुछ िेना दे ना िो तो िो दो।


गो. दो. : बच्चा, लभिा मााँग कर सात पैसे िाया िूाँ, साढे तीन
सेर लमठाई दे दे , गरु
ु चेिे सब आनन्दपव
ू क
त इतने में छक
जायेंगे।

(ििवाई लमठाई तौिता िै -बाबा जी लमठाई िेकर खाते िुए और


अंधेर नगरी गाते िुए जाते िैं।)

(पटािेप)

तीसरा दृश्य

(स्िान जंगि)

(मिन्त जी और नारायणदास एक ओर से ‘राम भजो इत्याहद


गीत गाते िुए आते िैं और एक ओर से गोबवधतनदास
अन्धेरनगरी गाते िुए आते िैं’)

मिन्त : बच्चा गोवधतन दास! कि क्या लभिा िाया? गठरी तो


भारी मािम
ू पडती िै ।

गो. दा. : बाबा जी मिाराज! बडे माि िाया िाँ, साढे तीन सेर
लमठाई िै।
मिन्त : दे खूाँ बच्चा! (लमठाई की झोिी अपने सामने रख कर
खोि कर दे खता िै) वाि! वाि! बच्चा! इतनी लमठाई किााँ से
िाया? ककस धमातत्मा से भेंट िुई?

गो. दा. : गुरूजी मिाराज! सात पैसे भीख में लमिे िे, उसी से
इतनी लमठाई मोि िी िै ।

मिन्त : बच्चा! नारायण दास ने मझ


ु से किा िा कक यिााँ सब
चीज टके सेर लमिती िै , तो मैंने इसकी बात का प्रवश्वास निीं
ककया। बच्चा, वि कौन सी नगरी िै और इसका कौन सा राजा
िै , जिां टके सेर भाजी और टके िी सेर खाजा िै ?

गो. दा. : अन्धेरनगरी चौपट्ट राजा, टके सेर भाजी टके सेर
खाजा।

मिन्त : तो बच्चा! ऐसी नगरी में रिना उथचत निीं िै , जिााँ


टके सेर भाजी और टके िी सेर खाजा िो।

दोिा : सेत सेत सब एक से, जिााँ कपूर कपास।

ऐसे दे स कुदे स में कबिुाँ न कीजै बास ॥

कोककिा बायस एक सम, पंडडत मरू ख एक।

इन्रायन दाडडम प्रवषय, जिााँ न नेकु प्रववेकु ॥

बलसए ऐसे दे स नहिं, कनक वजृ ष्ट्ट जो िोय।

रहिए तो दख
ु पाइये, प्रान दीजजए रोय ॥
सो बच्चा चिो यिााँ से। ऐसी अन्धेरनगरी में िजार मन लमठाई
मफ्
ु त की लमिै तो ककस काम की? यिााँ एक छन निीं रिना।

गो. दा. : गुरू जी, ऐसा तो संसार भर में कोई दे स िी निीं िैं।
दो पैसा पास रिने िी से मजे में पेट भरता िै । मैं तो इस नगर
को छोड कर निीं जाऊाँगा। और जगि हदन भर मांगो तो भी पेट
निीं भरता। वरं च बाजे बाजे हदन उपास करना पडता िै । सो मैं
तो यिी रिूाँगा।

मिन्त : दे ख बच्चा, पीछे पछतायगा।

गो. दा. : आपकी कृपा से कोई दःु ख न िोगा; मैं तो यिी किता
िूाँ कक आप भी यिीं रहिए।

मिन्त : मैं तो इस नगर में अब एक िण भर निीं रिूंगा। दे ख


मेरी बात मान निीं पीछे पछताएगा। मैं तो जाता िूं, पर इतना
किे जाता िूं कक कभी संकट पडै तो िमारा स्मरण करना।

गो. दा. : प्रणाम गुरु जी, मैं आपका ननत्य िी स्मरण करूाँगा।
मैं तो कफर भी किता िूं कक आप भी यिीं रहिए।

मिन्त जी नारायण दास के साि जाते िैं; गोवधतन दास बैठकर


लमठाई खाता िै।,

(पटािेप)
चौथा दृश्य

(राजसभा)

(राजा, मन्त्री और नौकर िोग यिास्िान जस्ित िैं)

1 सेवक : (थचल्िाकर) पान खाइए मिाराज।

राजा : (पीनक से चैंक घबडाकर उठता िै ) क्या? सप


ु नखा आई
ए मिाराज। (भागता िै)।

मन्त्री : (राजा का िाि पकडकर) निीं निीं, यि किता िै कक


पान खाइए मिाराज।

राजा : दष्ट्ु ट िुच्चा पाजी! नािक िमको डरा हदया। मन्त्री इसको
सौ कोडे िगैं।

मन्त्री : मिाराज! इसका क्या दोष िै ? न तमोिी पान िगाकर


दे ता, न यि पुकारता।

राजा : अच्छा, तमोिी को दो सौ कोडे िगैं।

मन्त्री : पर मिाराज, आप पान खाइए सन


ु कर िोडे िी डरे िैं,
आप तो सप
ु नखा के नाम से डरे िैं, सप
ु नखा की सजा िो।

राजा : (घबडाकर) कफर विी नाम? मन्त्री तुम बडे खराब आदमी
िो। िम रानी से कि दें गे कक मन्त्री बेर बेर तुमको सौत बुिाने
चािता िै। नौकर! नौकर! शराब।
2 नौकर : (एक सुरािी में से एक थगिास में शराब उझि कर
दे ता िै।) िीजजए मिाराज। पीजजए मिाराज।

राजा : (मुाँि बनाकर पीता िै ) और दे ।

(नेपथ्य में -दि


ु ाई िै दि
ु ाई-का शब्द िोता िै ।)

कौन थचल्िाता िै -पकड िाओ।

(दो नौकर एक फररयादी को पकड िाते िैं)

फ. : दोिाई िै मिाराज दोिाई िै। िमारा न्याव िोय।

राजा : चुप रिो। तुम्िारा न्याव यिााँ ऐसा िोगा कक जैसा जम के


यिााँ भी न िोगा। बोिो क्या िुआ?

फ. : मिाराजा कल्िू बननया की दीवार थगर पडी सो मेरी बकरी


उसके नीचे दब गई। दोिाई िै मिाराज न्याय िो।

राजा : (नौकर से) कल्िू बननया की दीवार को अभी पकड


िाओ।

मन्त्राी : मिाराज, दीवार निीं िाई जा सकती।

राजा : अच्छा, उसका भाई, िडका, दोस्त, आशना जो िो उसको


पकड िाओ।

मन्त्राी : मिाराज! दीवार ईंट चूने की िोती िै , उसको भाई बेटा


निीं िोता।

राजा : अच्छा कल्िू बननये को पकड िाओ।


(नौकर िोग दौडकर बािर से बननए को पकड िाते िैं) क्यों बे
बननए! इसकी िरकी, निीं बरकी क्यों दबकर मर गई?

मन्त्री : बरकी निीं मिाराज, बकरी।

राजा : िााँ िााँ, बकरी क्यों मर गई-बोि, निीं अभी फााँसी दे ता


िूाँ।

कल्िू : मिाराज! मेरा कुछ दोष निीं। कारीगर ने ऐसी दीवार


बनाया कक थगर पडी।

राजा : अच्छा, इस मल्िू को छोड दो, कारीगर को पकड िाओ।


(कल्िू जाता िै , िोग कारीगर को पकड िाते िैं) क्यों बे
कारीगर! इसकी बकरी ककस तरि मर गई?

कारीगर : मिाराज, मेरा कुछ कसरू निीं, चन


ू ेवािे ने ऐसा बोदा
बनाया कक दीवार थगर पडी।

राजा : अच्छा, इस कारीगर को बुिाओ, निीं निीं ननकािो, उस


चूनेवािे को बुिाओ।

(कारीगर ननकािा जाता िै , चन


ू ेवािा पकडकर िाया जाता िै )
क्यों बे खैर सप
ु ाडी चन
ू ेवािे! इसकी कुबरी कैसे मर गई?

चूनेवािा : मिाराज! मेरा कुछ दोष निीं, लभश्ती ने चूने में पानी
ढे र दे हदया, इसी से चूना कमजोर िो गया िोगा।

राजा : अच्छा चुन्नीिाि को ननकािो, लभश्ती को पकडो।


(चन
ू ेवािा ननकािा जाता िै लभश्ती, लभश्ती िाया जाता िै ) क्यों
वे लभश्ती! गंगा जमुना की ककश्ती! इतना पानी क्यों हदया कक
इसकी बकरी थगर पडी और दीवार दब गई।

लभश्ती : मिाराज! गि
ु ाम का कोई कसरू निीं, कस्साई ने मसक
इतनी बडी बना हदया कक उसमें पानी जादे आ गया।

राजा : अच्छा, कस्साई को िाओ, लभश्ती ननकािो।

(िोग लभश्ती को ननकािते िैं और कस्साई को िाते िैं)

क्यौं बे कस्साई मशक ऐसी क्यौं बनाई कक दीवार िगाई बकरी


दबाई?

कस्साई : मिाराज! गडेररया ने टके पर ऐसी बडी भें ड मेरे िाि


बेंची की उसकी मशक बडी बन गई।

राजा : अच्छा कस्साई को ननकािो, गडेररये को िाओ।


े़
(कस्साई ननकािा जाता िै गंडररया
े आता िै )

क्यों बे ऊखपौडे के गंडेररया। ऐसी बडी भेड क्यौं बेचा कक बकरी


मर गई?

गडेररया : मिाराज! उधर से कोतवाि सािब की सवारी आई, सो


उस के दे खने में मैंने छोटी बडी भेड का ख्याि निीं ककया, मेरा
कुछ कसूर निीं।

राजा : अच्छा, इस को ननकािो, कोतवाि को अभी सरबमुिर


पकड िाओ।
(गंडेररया ननकािा जाता िै , कोतवाि पकडा जाता िै ) क्यौं बे
कोतवाि! तैंने सवारी ऐसी धम
ू से क्यों ननकािी कक गडेररये ने
घबडा कर बडी भेड बेचा, जजस से बकरी थगर कर कल्िू बननयााँ
दब गया?

कोतवाि : मिाराज मिाराज! मैंने तो कोई कसूर निीं ककया, मैं


तो शिर के इन्तजाम के वास्ते जाता िा।

मंत्री : (आप िी आप) यि तो बडा गजब िुआ, ऐसा न िो कक


बेवकूफ इस बात पर सारे नगर को फाँू क दे या फााँसी दे ।
(कोतवाि से) यि निीं, तुम ने ऐसे धूम से सवारी क्यौं
ननकािी?

राजा : िााँ िााँ, यि निीं, तम


ु ने ऐसे धूम से सवारी कयों
ननकािी कक उस की बकरी दबी।

कोतवाि : मिाराज मिाराज

राजा : कुछ निीं, मिाराज मिाराज िे जाओ, कोतवाि को अभी


फााँसी दो। दरबार बरखास्त।

(िोग एक तरफ से कोतवाि को पकड कर िे जाते िैं, दस


ू री
ओर से मंत्री को पकड कर राजा जाते िैं)

(पटािेप)
पांचवां दृश्य

(अरण्य)

(गोवधतन दास गाते िुए आते िैं)

(राग काफी)

अंधेर नगरी अनबझ


ू राजा। टका सेर भाजी टका सेर खाजा॥

नीच ऊाँच सब एकहि ऐसे। जैसे भडुए पंडडत तैसे॥

कुि मरजाद न मान बडाई। सबैं एक से िोग िग


ु ाई॥

जात पााँत पूछै नहिं कोई। िरर को भजे सो िरर को िोई॥

वेश्या जोरू एक समाना। बकरी गऊ एक करर जाना॥

सांचे मारे मारे डाि। छिी दष्ट्ु ट लसर चहढ चहढ बोिैं॥

प्रगट सभ्य अन्तर छििारी। सोइ राजसभा बिभारी ॥

सांच किैं ते पनिी खावैं। झूठे बिुप्रवथध पदवी पावै ॥

छलियन के एका के आगे। िाख किौ एकिु नहिं िागे ॥

भीतर िोइ मलिन की कारो। चहिये बािर रं ग चटकारो ॥

धमत अधमत एक दरसाई। राजा करै सो न्याव सदाई ॥

भीतर स्वािा बािर सादे । राज करहिं अमिे अरु प्यादे ॥

अंधाधुंध मच्यौ सब दे सा। मानिुाँ राजा रित बबदे सा ॥


गो द्प्रवज श्रुनत आदर नहिं िोई। मानिुाँ नप
ृ नत बबधमी कोई ॥

ऊाँच नीच सब एकहि सारा। मानिुाँ ब्रह्म ज्ञान बबस्तारा ॥

अंधेर नगरी अनबूझ राजा। टका सेर भाजी टका सेर खाजा ॥

गुरु जी ने िमको नािक यिााँ रिने को मना ककया िा। माना कक


दे स बिुत बरु ा िै । पर अपना क्या? अपने ककसी राजकाज में
िोडे िैं कक कुछ डर िै , रोज लमठाई चाभना, मजे में आनन्द से
राम-भजन करना।

(लमठाई खाता िै)

(चार प्यादे चार ओर से आ कर उस को पकड िेते िैं)

1. प्या. : चि बे चि, बिुत लमठाई खा कर मट


ु ाया िै । आज
पूरी िो गई।

2. प्या. : बाबा जी चलिए, नमोनारायण कीजजए।

गो. दा. : (घबडा कर) िैं! यि आफत किााँ से आई! अरे भाई,
मैंने तम्
ु िारा क्या बबगाडा िै जो मझ
ु को पकडते िौ।

1.प्या. : आप ने बबगाडा िै या बनाया िै इस से क्या मतिब,


अब चलिए। फााँसी चहढए।
गो. दा. : फााँसी। अरे बाप रे बाप फााँसी!! मैंने ककस की जमा
िट
ू ी िै कक मझ
ु को फााँसी! मैंने ककस के प्राण मारे कक मझ
ु को
फााँसी!

1.प्या. : आप बडे मोटे िैं, इस वास्ते फााँसी िोती िै ।

गो. दा. : मोटे िोने से फााँसी? यि किां का न्याय िै ! अरे , िं सी


फकीरों से निीं करनी िोती।

1. प्या: जब सि
ू ी चढ िीजजएगा तब मािम
ू िोगा कक िं सी िै
कक सच। सीधी राि से चिते िौ कक घसीट कर िे चिें?

गो. दा. : अरे बाबा, क्यों बेकसूर का प्राण मारते िौ? भगवान
के यिााँ क्या जवाब दोगे?

1. ऱ्या : भगवान ् को जवाब राजा दे गा। िम को क्या मतिब।


िम तो िुक्मी बन्दे िैं।

गो. दा. : तब भी बाबा बात क्या िै कक िम फकीर आदमी को


नािक फााँसी दे ते िौ?

1. प्या. : बात िै कक कि कोतवाि को फााँसी का िुकुम िुआ


िा। जब फााँसी दे ने को उस को िे गए, तो फााँसी का फंदा बडा
िुआ, क्योंकक कोतवाि सािब दब
ु िे िैं। िम िोगों ने मिाराज से
अजत ककया, इस पर िुक्म िुआ कक एक मोटा आदमी पकड कर
फााँसी दे दो, क्योंकक बकरी मारने के अपराध में ककसी न ककसी
की सजा िोनी जरूर िै , निीं तो न्याव न िोगा। इसी वास्ते तम

को िे जाते िैं कक कोतवाि के बदिे तम
ु को फााँसी दें ।

गो. दा. : तो क्या और कोई मोटा आदमी इस नगर भर में निीं


लमिता जो मुझ अनाि फकीर को फााँसी दे ते िैं!

1.प्या. : इस में दो बात िै -एक तो नगर भर में राजा के न्याव


के डर से कोई मट
ु ाता िी निीं, दस
ू रे और ककसी को पकडैं तो
वि न जानैं क्या बात बनावै कक िमी िोगों के लसर किीं न
घिराय और कफर इस राज में साधु मिात्मा इन्िीं िोगों की तो
दद
ु त शा िै , इस से तुम्िीं को फााँसी दें गे।

गो. दा. : दि
ु ाई परमेश्वर की, अरे मैं नािक मारा जाता िूाँ! अरे
यिााँ बडा िी अन्धेर िै , अरे गरु
ु जी मिाराज का किा मैंने न
माना उस का फि मुझ को भोगना पडा। गुरु जी किां िौ!
आओ, मेरे प्राण बचाओ, अरे मैं बेअपराध मारा जाता िूाँ गुरु जी
गुरु जी-

(गोबधतन दास थचल्िाता िै ,

प्यादे िोग उस को पकड कर िे जाते िैं)

(पटािेप)
छठा दृश्य

(स्िान श्मशान)

(गोबधतन दास को पकडे िुए चार लसपाहियों का प्रवेश)

गो. दा. : िाय बाप रे ! मुझे बेकसूर िी फााँसी दे ते िैं। अरे


भाइयो, कुछ तो धरम प्रवचारो! अरे मझ
ु गरीब को फााँसी दे कर
तम
ु िोगों को क्या िाभ िोगा? अरे मझ
ु े छोड दो। िाय! िाय!
(रोता िै और छुडाने का यत्न करता िै )

1 लसपािी : अबे, चुप रि-राजा का िुकुम भिा निीं टि सकता


िै ? यि तेरा आणखरी दम िै , राम का नाम िे-बेफाइदा क्यों शोर
करता िै ? चप
ु रि-

गो. दा. : िाय! मैं ने गुरु जी का किना न माना, उसी का यि


फि िै । गुरु जी ने किा िा कक ऐसे-नगर में न रिना चाहिए,
यि मैंने न सुना! अरे ! इस नगर का नाम िी अंधेरनगरी और
राजा का नाम चौपट्ट िै , तब बचने की कौन आशा िै । अरे ! इस
नगर में ऐसा कोई धमातत्मा निीं िै जो फकीर को बचावै। गरु

जी! किााँ िौ? बचाओ-गुरुजी-गरु
ु जी-(रोता िै , लसपािी िोग उसे
घसीटते िुए िे चिते िैं)

(गुरु जी और नारायण दास आरोि)

गरु
ु . : अरे बच्चा गोबधतन दास! तेरी यि क्या दशा िै ?
गो. दा. : (गुरु को िाि जोडकर) गरु
ु जी! दीवार के नीचे बकरी
दब गई, सो इस के लिये मझ
ु े फााँसी दे ते िैं, गरु
ु जी बचाओ।

गुरु. : अरे बच्चा! मैंने तो पहििे िी किा िा कक ऐसे नगर में


रिना ठीक निीं, तैंने मेरा किना निीं सुना।

गो. दा. : मैंने आप का किा निीं माना, उसी का यि फि


लमिा। आप के लसवा अब ऐसा कोई निीं िै जो रिा करै । मैं
आप िी का िूाँ, आप के लसवा और कोई निीं (पैर पकड कर
रोता िै)।

मिन्त : कोई थचन्ता निीं, नारायण सब समित िै । (भौं चढाकर


लसपाहियों से) सुनो, मुझ को अपने लशष्ट्य को अजन्तम उपदे श
दे ने दो, तम
ु िोग तननक ककनारे िो जाओ, दे खो मेरा किना न
मानोगे तो तुम्िारा भिा न िोगा।

लसपािी : निीं मिाराज, िम िोग िट जाते िैं। आप बेशक


उपदे श कीजजए।

(लसपािी िट जाते िैं। गरु


ु जी चेिे के कान में कुछ समझाते िैं)

गो. दा. : (प्रगट) तब तो गरु


ु जी िम अभी फााँसी चढें गे।

मिन्त : निीं बच्चा, मुझको चढने दे ।

गो. दा. : निीं गुरु जी, िम फााँसी पडेंग।े

मिन्त : निीं बच्चा िम। इतना समझाया निीं मानता, िम बूढे


भए, िमको जाने दे ।
गो. दा. : स्वगत जाने में बूढा जवान क्या? आप तो लसद्ध िो,
आपको गनत अगनत से क्या? मैं फााँसी चढूाँगा।

(इसी प्रकार दोनों िुज्जत करते िैं-लसपािी िोग परस्पर चककत


िोते िैं)

1 लसपािी : भाई! यि क्या माजरा िै , कुछ समझ में निीं


पडता।

2 लसपािी : िम भी निीं समझ सकते िैं कक यि कैसा गबडा


िै ।

(राजा, मंत्री कोतवाि आते िैं)

राजा : यि क्या गोिमाि िै ?

1 लसपािी : मिाराज! चेिा किता िै मैं फााँसी पडूंगा, गरु


ु किता
िै मैं पडूंगा; कुछ मािूम निीं पडता कक क्या बात िै ?

राजा : (गुरु से) बाबा जी! बोिो। कािे को आप फााँसी चढते िैं?

मिन्त : राजा! इस समय ऐसा साइत िै कक जो मरे गा सीधा


बैकंु ठ जाएगा।

मंत्री : तब तो िमी फााँसी चढें गे।

गो. दा. : िम िम। िम को तो िुकुम िै।

कोतवाि : िम िटकैं गे। िमारे सबब तो दीवार थगरी।


राजा : चुप रिो, सब िोग, राजा के आछत और कौन बैकुण्ठ
जा सकता िै। िमको फााँसी चढाओ, जल्दी जल्दी।

मिन्त :

जिााँ न धमत न बुद्थध नहिं, नीनत न सुजन समाज।

ते ऐसहि आपुहि नसे, जैसे चौपटराज॥

(राजा को िोग हटकठी पर खडा करते िैं)

(पटािेप)

॥ इनत ॥

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