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'Idgah'
'Idgah'
प्रेमचंद
(1)
सब से ज़्य़ाद़ा खश
ु है ह़ाममद। वो च़ार स़ाल क़ा ग़र ब खब
ू सरू त
बच्च़ा है, म्जसक़ा ब़ाप पपछले स़ाल है ज़ा की नज़्र हो गय़ा थ़ा और
म़ााँ न ज़ाने कयूाँ जदम होती-होती एक हदन मर गई। ककसी को पत़ा
न चल़ा कक बीम़ार कय़ा है । कहती ककस से? कौन सुनने व़ाल़ा
थ़ा? हदल पर जो गज
ु रती थी, सहती थी और जब न सह़ा गय़ा
तो दनु नय़ा से रुख़्सत हो गई। अब ह़ाममद अपनी बढ़
ू द़ाद अमीऩा
की गोद में सोत़ा है और उतऩा ह खुश है । उसके अब्ब़ा ज़ान बड़ी
दरू रुपये कम़ाने गए थे और बहुत सी थैमलय़ााँ लेकर आएाँगे। अकमी
ज़ान अल्ल़ाह ममय़ााँ के घर ममठ़ाई लेने गई हैं। इसमलए ख़ामोश
है । ह़ाममद के प़ााँव में जत
ू े नह ं हैं। सर पर एक परु ़ानी धरु ़ानी
टोपी है म्जसक़ा गोट़ा स्य़ाह हो गय़ा है किर भी वो खुश है । जब
उसके अब्ब़ा ज़ान थैमलय़ााँ और अकम़ााँ ज़ान नेमतें लेकर आएाँगे,
तब वो हदल के अरम़ान ननक़ालेग़ा। तब दे खेग़ा कक महमूद और
मोहमसन आजर और समी कह़ााँ से इतने पैसे ल़ाते हैं। दनु नय़ा में
मुसीबतों की स़ार िौज लेकर आए, उसकी एक ननग़ाह-ए-म़ासूम
उसे प़ाम़ाल करने के मलए क़ािी है ।
समी सुऩा है चौधर स़ाहब के क़ब्जे में बहुत से म्जन्ऩात हैं। कोई
चीज चोर चल ज़ाए, चौधर स़ाहब उसक़ा पत़ा बत़ा दें गे और
चोर क़ा ऩाम तक बत़ा दें गे। जुमेऱाती क़ा बछड़़ा उस हदन खो
गय़ा थ़ा। तीन हदन है ऱान हुए, कह ं न ममल़ा, तब झक म़ार कर
चौधर के प़ास गए। चौधर ने कह़ा, मवेशी-ख़ाने में है और वह ं
ममल़ा। म्जन्ऩात आ कर उन्हें सब खबरें दे ज़ाय़ा करते हैं।
ह़ाममद ने तअ’ज्जब
ु से पछ
ू ़ा, “ये लोग चोर कऱाते हैं तो इन्हें
कोई पकड़त़ा नह ं?” नरू ने उसकी कोत़ाह-िहमी पर रहम ख़ा
कर कह़ा, “अरे अहमक़! उन्हें कौन पकड़ेग़ा, पकड़ने व़ाले तो ये
खुद हैं, लेककन अल्ल़ाह उन्हें सज़ा भी खूब दे त़ा है । थोड़े हदन हुए।
म़ामूाँ के घर में आग लग गई। स़ाऱा म़ाल-मत़ा जल गय़ा। एक
बतमन तक न बच़ा। कई हदन तक दरख़्त के स़ाये के नीचे सोए,
अल्ल़ाह क़सम किर न ज़ाने कह़ााँ से क़जम ल़ाए तो बतमन भ़ााँडे
आए।”
बस्ती घनी होने लगी। ईदग़ाह ज़ाने व़ालों के मजमे नजर आने
लगे। एक से एक जक़म-बक़म पोश़ाक पहने हुए। कोई त़ााँगे पर सव़ार,
कोई मोटर पर चलते थे तो कपड़ों से इत्र की खश्ु बू उड़ती थी।
(2)
नम़ाज खत्म हो गई है , लोग ब़ाहम गले ममल रहे हैं। कुछ लोग
मोहत़ाजों और स़ाइलों को खैऱात कर रहे हैं। जो आज यह़ााँ हज़ारों
जम़ा हो गए हैं। हम़ारे दहक़़ानों ने ममठ़ाई और खखलौनों की दक
ु ़ानों
पर यरू रश की। बढ़
ू े भी इन हदलचम्स्पयों में बच्चों से कम नह ं हैं।
ये बबस़ाती की दक
ु ़ान है , तरह-तरह की जरूर चीजें, एक च़ादर
बबछी हुई है । गें द, सीहटय़ााँ, बबगुल, भाँवरे , रबड़ के खखलौने और
हज़ारों चीजें। मोहमसन एक सीट लेत़ा है , महमद
ू गें द, नरू रबड़
क़ा बत
ु जो चाँू-चाँू करत़ा है और समी एक खंजर । उसे वो बज़ा-
बज़ा कर ग़ाएग़ा। ह़ाममद खड़़ा हर एक को हसरत से दे ख रह़ा है ।
जब उसक़ा रिीक़ कोई चीज खर द लेत़ा है तो वो बड़े इम्श्तय़ाक़
से एक ब़ार उसे ह़ाथ में लेकर दे खने लगत़ा है , लेककन लड़के इतने
दोस्त-नव़ाज नह ं होते। ख़ासकर जब कक अभी हदलचस्पी त़ाज़ा
है । बेच़ाऱा यूाँ ह म़ायूस होकर रह ज़ात़ा है ।
महमद
ू बोल़ा, “तम
ु इस से मत बोलो, ह़ाममद मेरे प़ास आओ। ये
गल
ु ़ाब ज़ामन
ु ले लो।”
हलव़ाइयों की दक
ु ़ानों के आगे कुछ दक
ु ़ानें लोहे की चीजों की थीं
कुछ गलट और मुलकम़ा के जेवऱात की। लड़कों के मलए यह़ााँ
हदलचस्पी क़ा कोई स़ाम़ान न थ़ा। ह़ाममद लोहे की दक
ु ़ान पर एक
लकहे के मलए रुक गय़ा। दस्त-पऩाह रखे हुए थे। वो दस्त-पऩाह
खर द लेग़ा। म़ााँ के प़ास दस्त-पऩाह नह ं है । तवे से रोहटय़ााँ
उत़ारती हैं तो ह़ाथ जल ज़ात़ा है । अगर वो दस्त-पऩाह ले ज़ा कर
अकम़ााँ को दे दे तो वो ककतनी खश
ु होंगी। किर उनकी उाँ गमलय़ााँ
कभी नह ं जलेंगी, घर में एक क़ाम की चीज हो ज़ाएगी। खखलौनों
से कय़ा ि़ाएद़ा। मुफ़्त में पैसे खऱाब होते हैं। जऱा दे र ह तो खुशी
होती है किर तो उन्हें कोई आाँख उठ़ा कर कभी नह ं दे खत़ा। य़ा
तो घर पहुाँचते-पहुाँचते टूट-िूट कर बब़ामद हो ज़ाएाँगे य़ा छोटे बच्चे
जो ईदग़ाह नह ं ज़ा सकते हैं म्जद कर के ले लेंगे और तोड़ ड़ालेंग।े
दस्त-पऩाह ककतने ि़ाएदे की चीज है । रोहटय़ााँ तवे से उत़ार लो,
चल्
ू हे से आग ननक़ाल कर दे दो। अकम़ााँ को िुसमत कह़ााँ है ब़ाज़ार
आएाँ और इतने पैसे कह़ााँ ममलते हैं। रोज ह़ाथ जल़ा लेती हैं।
उसके स़ाथी आगे बढ़ गए हैं। सबील पर सबके सब प़ानी पी रहे
हैं। ककतने ल़ालची हैं। सबने इतनी ममठ़ाइय़ााँ ल ं, ककसी ने मुझे
एक भी न द । इस पर कहते हैं मेरे स़ाथ खेलो। मेर तख़्ती धो
ल़ाओ। अब अगर यह़ााँ मोहमसन ने कोई क़ाम करने को कह़ा तो
खबर लाँ ग
ू ़ा, ख़ाएाँ ममठ़ाई आप ह मुाँह सड़ेग़ा, िोड़े िंु मसय़ााँ
ननकलेंगी। आप ह जब़ान चटोर हो ज़ाएगी, तब पैसे चुऱाएाँगे और
म़ार ख़ाएाँगे। मेर जब़ान कयूाँ खऱाब होगी।
उसने डरते-डरते दक
ु ़ानद़ार से पूछ़ा, “ये दस्त-पऩाह बेचोगे?”
दक
ु ़ानद़ार ने उसकी तरि दे ख़ा और स़ाथ कोई आदमी न दे ख कर
कह़ा, वो तुकह़ारे क़ाम क़ा नह ं है।
महमद
ू , “तो ये दस्त-पऩाह कोई खखलौऩा है ?”
मेल़ा बहुत दरू पीछे छूट चुक़ा थ़ा। दस बज रहे थे। घर पहुाँचने
की जल्द थी। अब दस्त-पऩाह नह ं ममल सकत़ा थ़ा। अब ककसी
के प़ास पैसे भी तो नह ं रहे , ह़ाममद है बड़़ा होमशय़ार। अब दो
िर क़ हो गए, महमद
ू , मोहमसन और नरू एक तरि, ह़ाममद तन्ह़ा
दस
ू र तरि। समी ग़ैर ज़ाननब-द़ार है , म्जसकी ित्ह दे खेग़ा उसकी
तरि हो ज़ाएग़ा।
मुऩाजऱा शुरू हो गय़ा। आज ह़ाममद की जब़ान बड़ी सि़ाई से चल
रह है। इपिह़ाद-ए-सल़ास़ा उसके ज़ारे ह़ाऩा अ’मल से परे श़ान हो
रह़ा है। सल़ास़ा के प़ास त़ा’द़ाद की त़ाक़त है , ह़ाममद के प़ास हक़
और अखल़ाक़, एक तरि ममट्ट रबड़ और लकड़ी की चीजें, दस
ू र
ज़ाननब अकेल़ा लोह़ा जो उस वक़्त अपने आप को िौल़ाद कह
रह़ा है। वो सि-मशकन है । अगर कह ं शेर की आव़ाज क़ान में आ
ज़ाए तो ममय़ााँ मभश्ती के औस़ान खत़ा हो ज़ाएाँ। ममय़ााँ मसप़ाह
मटकी बंदक़
ू छोड़कर भ़ागें । वकील स़ाहब क़ा स़ाऱा क़़ानून पेट में
सम़ा ज़ाए। चुग़े में , मुाँह में छुप़ा कर लेट ज़ाएाँ। मगर बह़ादरु , ये
रुस्तम-ए-हहंद लपक कर शेर की गदम न पर सव़ार हो ज़ाएग़ा और
उसकी आाँखें ननक़ाल लेग़ा।
महमद
ू ने कह़ा, “ये मसप़ाह बंदक़
ू व़ाल़ा।”
ग्य़ारह बजे स़ारे ग़ााँव में चहल-पहल हो गई। मेले व़ाले आ गए।
मोहमसन की छोट बहन ने दौड़ कर मभश्ती उसके ह़ाथ से छीन
मलय़ा और म़ारे खुशी जो उछल तो ममय़ााँ मभश्ती नीचे आ रहे
और आलम-ए-ज़ावेद़ानी को मसध़ारे । इस पर भ़ाई बहन में म़ार
पीट हुई। दोनों खूब रोए