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ईदगाह

प्रेमचंद
(1)

रमज़ान के परू े तीस रोजों के ब़ाद आज ईद आई। ककतनी सह


ु ़ानी
और रं गीन सब्ु ह है। बच्चे की तरह परु -तबस्सम
ु दरख़्तों पर कुछ
अ’जीब हररय़ावल है । खेतों में कुछ अ’जीब रौनक़ है । आसम़ान
पर कुछ अ’जीब किज़ा है । आज क़ा आित़ाब दे ख ककतऩा प्य़ाऱा
है । गोय़ा दनु नय़ा को ईद की खुशी पर मुब़ारकब़ाद दे रह़ा है । ग़ााँव
में ककतनी चहल-पहल है । ईदग़ाह ज़ाने की धम
ू है । ककसी के कुरते
में बटन नह ं हैं तो सुई-त़ाग़ा लेने दौड़े ज़ा रह़ा है । ककसी के जूते
सख़्त हो गए हैं। उसे तेल और प़ानी से नमम कर रह़ा है । जल्द -
जल्द बैलों को स़ानी-प़ानी दे दें । ईदग़ाह से लौटते लौटते दोपहर
हो ज़ाएगी। तीन कोस क़ा पैदल ऱास्त़ा, किर सैंकड़ों ररश्ते, क़ऱाबत
व़ालों से ममलऩा ममल़ाऩा। दोपहर से पहले लौटऩा ग़ैर-मम्ु ककन है ।

लड़के सब से ज़्य़ाद़ा खुश हैं। ककसी ने एक रोज़ा रख़ा, वो भी


दोपहर तक। ककसी ने वो भी नह ं, लेककन ईदग़ाह ज़ाने की खुशी
इनक़ा हहस्स़ा है। रोजे बड़े-बढ़
ू ों के मलए होंगे, बच्चों के मलए तो
ईद है। रोज ईद क़ा ऩाम रटते थे, आज वो आ गई। अब जल्द
पड़ी हुई है कक ईदग़ाह कयूाँ नह ं चलते। उन्हें घर की किक़्रों से
कय़ा व़ास्त़ा? सेवइयों के मलए घर में दध
ू और शकर, मेवे हैं य़ा
नह ं, इसकी उन्हें कय़ा किक्र? वो कय़ा ज़ानें अब्ब़ा कयूाँ बद-हव़ास
ग़ााँव के मह़ाजन चौधर क़़ामसम अल के घर दौड़े ज़ा रहे हैं, उनकी
अपनी जेबों में तो क़़ारून क़ा खज़ाऩा रकख़ा हुआ है । ब़ार-ब़ार जेब
से खज़ाऩा ननक़ाल कर गगनते हैं। दोस्तों को हदख़ाते हैं और खश

हो कर रख लेते हैं। इन्ह ं दो-च़ार पैसों में दनु नय़ा की स़ात नेमतें
ल़ाएाँगे। खखलौने और ममठ़ाईय़ााँ और बबगुल और खुद़ा ज़ाने कय़ा
कय़ा।

सब से ज़्य़ाद़ा खश
ु है ह़ाममद। वो च़ार स़ाल क़ा ग़र ब खब
ू सरू त
बच्च़ा है, म्जसक़ा ब़ाप पपछले स़ाल है ज़ा की नज़्र हो गय़ा थ़ा और
म़ााँ न ज़ाने कयूाँ जदम होती-होती एक हदन मर गई। ककसी को पत़ा
न चल़ा कक बीम़ार कय़ा है । कहती ककस से? कौन सुनने व़ाल़ा
थ़ा? हदल पर जो गज
ु रती थी, सहती थी और जब न सह़ा गय़ा
तो दनु नय़ा से रुख़्सत हो गई। अब ह़ाममद अपनी बढ़
ू द़ाद अमीऩा
की गोद में सोत़ा है और उतऩा ह खुश है । उसके अब्ब़ा ज़ान बड़ी
दरू रुपये कम़ाने गए थे और बहुत सी थैमलय़ााँ लेकर आएाँगे। अकमी
ज़ान अल्ल़ाह ममय़ााँ के घर ममठ़ाई लेने गई हैं। इसमलए ख़ामोश
है । ह़ाममद के प़ााँव में जत
ू े नह ं हैं। सर पर एक परु ़ानी धरु ़ानी
टोपी है म्जसक़ा गोट़ा स्य़ाह हो गय़ा है किर भी वो खुश है । जब
उसके अब्ब़ा ज़ान थैमलय़ााँ और अकम़ााँ ज़ान नेमतें लेकर आएाँगे,
तब वो हदल के अरम़ान ननक़ालेग़ा। तब दे खेग़ा कक महमूद और
मोहमसन आजर और समी कह़ााँ से इतने पैसे ल़ाते हैं। दनु नय़ा में
मुसीबतों की स़ार िौज लेकर आए, उसकी एक ननग़ाह-ए-म़ासूम
उसे प़ाम़ाल करने के मलए क़ािी है ।

ह़ाममद अंदर ज़ा कर अमीऩा से कहत़ा है , “तम


ु डरऩा नह ं अकम़ााँ!
मैं ग़ााँव व़ालों क़ा स़ाथ न छोड़ूाँग़ा। बबल्कुल न डरऩा लेककन अमीऩा
क़ा हदल नह ं म़ानत़ा। ग़ााँव के बच्चे अपने-अपने ब़ाप के स़ाथ ज़ा
रहे हैं। ह़ाममद कय़ा अकेल़ा ह ज़ाएग़ा। इस भीड़-भ़ाड़ में कह ं खो
ज़ाए तो कय़ा हो? नह ं अमीऩा इसे तन्ह़ा न ज़ाने दे गी। नन्ह सी
ज़ान। तीन कोस चलेग़ा तो प़ााँव में छ़ाले न पड़ ज़ाएाँगे?

मगर वो चल ज़ाए तो यह़ााँ सेवइय़ााँ कौन पक़ाएग़ा, भूक़ा प्य़ास़ा


दोपहर को लौटे ग़ा, कय़ा उस वक़्त सेवइय़ााँ पक़ाने बैठेगी। रोऩा तो
ये है कक अमीऩा के प़ास पैसे नह ं हैं। उसने िहमीन के कपड़े
मसए थे। आठ आने पैसे ममले थे। उस अठन्नी को ईम़ान की तरह
बच़ाती चल आई थी इस ईद के मलए। लेककन घर में पैसे और
न थे और ग्व़ामलन के पैसे और चढ़ गए थे, दे ने पड़े। ह़ाममद के
मलए रोज दो पैसे क़ा दध
ू तो लेऩा पड़त़ा है । अब कुल दो आने
पैसे बच रहे हैं। तीन पैसे ह़ाममद की जेब में और प़ााँच अमीऩा के
बटवे में। यह बबस़ात है । अल्ल़ाह ह बेड़़ा प़ार करे ग़ा। धोबन,
मेहतऱानी और ऩाइन भी आएाँगी। सब को सेवइय़ााँ च़ाहहएाँ। ककस-
ककस से माँह
ु छुप़ाए? स़ाल भर को त्यौह़ार है । म्जंदगी खैररयत से
रहे । उनकी तक़द र भी तो उसके स़ाथ है। बच्चे को खुद़ा सल़ामत
रकखे, ये हदन भी यूाँ ह कट ज़ाएाँगे।

ग़ााँव से लोग चले और ह़ाममद भी बच्चों के स़ाथ थ़ा। सब के सब


दौड़ कर ननकल ज़ाते। किर ककसी दरख़्त के नीचे खड़े हो कर
स़ाथ व़ालों क़ा इंनतज़ार करते। ये लोग कयूाँ इतने आहहस्त़ा-
आहहस्त़ा चल रहे हैं।

शहर क़ा मसऱा शरू


ु हो गय़ा। सड़क के दोनों तरि अमीरों के ब़ाग़
हैं, पुख़्त़ा चह़ार-द व़ार हुई है । दरख़्तों में आम लगे हुए हैं। ह़ाममद
ने एक कंकर उठ़ा कर एक आम पर ननश़ाऩा लग़ाय़ा। म़ाल अदं र
ग़ाल दे त़ा हुआ ब़ाहर आय़ा... बच्चे वह़ााँ एक िल़ाांग पर हैं। खूब
हाँस रहे हैं। म़ाल को खब
ू उल्लू बऩाय़ा।

बड़ी-बड़ी इम़ारतें आने लगीं। ये अद़ालत है । ये मदरस़ा है । ये


कलब-घर है। इतने बड़े मदरसे में ककतने स़ारे लड़के पढ़ते होंगे।
लड़के नह ं हैं जी, बड़े-बड़े आदमी हैं। सच उनकी बड़ी-बड़ी मूाँछें
हैं। इतने बड़े हो गए, अब तक पढ़ने ज़ाते हैं। आज तो छुट्ट है
लेककन एक ब़ार जब पहले आए थे। तो बहुत से द़ाढ़ मूाँछों व़ाले
लड़के यह़ााँ खेल रहे थे। न ज़ाने कब तक पढ़ें गे। और कय़ा करें गे
इतऩा पढ़ कर। ग़ााँव के दे ह़ाती मदरसे में दो तीन बड़े -बड़े लड़के
हैं। बबल्कुल तीन कौड़ी के... क़ाम से जी चुऱाने व़ाले। ये लड़के भी
इसी तरह के होंगे जी। और कय़ा नह ं... कय़ा अब तक पढ़ते होते।
वो कलब-घर है। वह़ााँ ज़ाद ू क़ा खेल होत़ा है । सुऩा है मदों की
खोपडड़य़ााँ उड़ती हैं। आदमी बेहोश कर दे ते हैं। किर उससे जो कुछ
पछ
ू ते हैं, वो सब बतल़ा दे ते हैं और बड़े-बड़े तम़ाशे होते हैं और
मेमें भी खेलती हैं। सच, हम़ार अकम़ााँ को वो दे दो । कय़ा
कहल़ात़ा है । ‘बैट’ तो उसे घुम़ाते ह लढ़
ु क ज़ाएाँ।

मोहमसन ने कह़ा “हम़ार अकमी ज़ान तो उसे पकड़ ह न सकें।


ह़ाथ क़ााँपने लगें । अल्ल़ाह क़सम”

ह़ाममद ने उससे इम्ख़्तल़ाि ककय़ा। “चलो, मनों आट़ा पीस ड़ालती


हैं। जऱा सी बैट पकड़ लेंगी तो ह़ाथ क़ााँपने लगेग़ा। सैंकड़ों घड़े
प़ानी रोज ननक़ालती हैं। ककसी मेम को एक घड़़ा प़ानी ननक़ालऩा
पड़े तो आाँखों तले अंधेऱा आ ज़ाए।”

मोहमसन, “लेककन दौड़ती तो नह ं। उछल-कूद नह ं सकतीं।”


ह़ाममद, “क़ाम आ पड़त़ा है तो दौड़ भी लेती हैं। अभी उस हदन
तक
ु ह़ार ग़ाय खल
ु गई थी और चौधर के खेत में ज़ा पड़ी थी तो
तुकह़ार अकम़ााँ ह तो दौड़ कर उसे भग़ा ल़ाई थीं। ककतनी तेजी
से दौड़ी थीं। हम तुम दोनों उनसे पीछे रह गए।”

किर आगे चले। हलव़ाइयों की दक


ु ़ानें शरू
ु हो गईं। आज खब
ू सजी
हुई थीं।

इतनी ममठ़ाइय़ााँ कौन ख़ात़ा है ? दे खो न एक एक दक


ु ़ान पर मनों
होंगी। सुऩा है ऱात को एक म्जन्ऩात हर एक दक
ु ़ान पर ज़ात़ा है ।
म्जतऩा म़ाल बच़ा होत़ा है , वो सब खर द लेत़ा है और सच-मच

के रुपये दे त़ा है । बबल्कुल ऐसे ह च़ााँद के रुपये।

महमूद को यक़ीन न आय़ा। ऐसे रुपये म्जन्ऩात को कह़ााँ से ममल


ज़ाएाँगे।

मोहमसन, “म्जन्ऩात को रुपयों की कय़ा कमी? म्जस खज़ाने में


च़ाहें चले ज़ाएाँ। कोई उन्हें दे ख नह ं सकत़ा। लोहे के दरव़ाजे तक
नह ं रोक सकते। जऩाब आप हैं ककस खय़ाल में । ह रे -जव़ाहऱात
उनके प़ास रहते हैं। म्जससे खुश हो गए, उसे टोकरों जव़ाहऱात दे
हदए। प़ााँच ममनट में कहो, क़ाबल
ु पहुाँच ज़ाएाँ।”

ह़ाममद, “म्जन्ऩात बहुत बड़े होते होंगे।

मोहमसन, “और कय़ा एक एक आसम़ान के बऱाबर होत़ा है । जमीन


पर खड़़ा हो ज़ाए, तो उसक़ा सर आसम़ान से ज़ा लगे। मगर च़ाहे
तो एक लोटे में घुस ज़ाए।”

समी सुऩा है चौधर स़ाहब के क़ब्जे में बहुत से म्जन्ऩात हैं। कोई
चीज चोर चल ज़ाए, चौधर स़ाहब उसक़ा पत़ा बत़ा दें गे और
चोर क़ा ऩाम तक बत़ा दें गे। जुमेऱाती क़ा बछड़़ा उस हदन खो
गय़ा थ़ा। तीन हदन है ऱान हुए, कह ं न ममल़ा, तब झक म़ार कर
चौधर के प़ास गए। चौधर ने कह़ा, मवेशी-ख़ाने में है और वह ं
ममल़ा। म्जन्ऩात आ कर उन्हें सब खबरें दे ज़ाय़ा करते हैं।

अब हर एक की समझ में आ गय़ा कक चौधर क़़ामसम अल के


प़ास कयूाँ इस क़दर दौलत है और कयूाँ उनकी इतनी इज़्जत है।
म्जन्ऩात आ कर उन्हें रुपये दे ज़ाते हैं। आगे चमलए, ये पुमलस
ल़ाइन है । यह़ााँ पुमलस व़ाले क़व़ाएद करते हैं। ऱाइट, मलप, ि़ाम,
िो।

नूर ने तस्ह ह की, “यह़ााँ पुमलस व़ाले पहऱा दे ते हैं। जब ह तो


उन्हें बहुत खबर है । अजी हजरत ये लोग चोररय़ााँ कऱाते हैं। शहर
के म्जतने चोर ड़ाकू हैं, सब उनसे ममले रहते हैं। ऱात को सब एक
महल्ले में चोरों से कहते हैं और दस
ू रे महल्ले में पक
ु ़ारते हैं ज़ागते
रहो। मेरे म़ामूाँ स़ाहब एक थ़ाने में मसप़ाह हैं। बीस रुपये मह ऩा
प़ाते हैं लेककन थैमलय़ााँ भर-भर घर भेजते हैं। मैंने एक ब़ार पूछ़ा
थ़ा, “म़ामूाँ, आप इतऩा रुपये ल़ाते कह़ााँ से हैं?” हाँस कर कहने
लगे, “बेट़ा... अल्ल़ाह दे त़ा है ।” किर आप ह आप बोले, हम च़ाहें
तो एक ह हदन में ल़ाखों ब़ार रुपये म़ार ल़ाएाँ। हम तो उतऩा ह
लेते हैं म्जसमें अपनी बदऩामी न हो और नौकर बनी रहे ।

ह़ाममद ने तअ’ज्जब
ु से पछ
ू ़ा, “ये लोग चोर कऱाते हैं तो इन्हें
कोई पकड़त़ा नह ं?” नरू ने उसकी कोत़ाह-िहमी पर रहम ख़ा
कर कह़ा, “अरे अहमक़! उन्हें कौन पकड़ेग़ा, पकड़ने व़ाले तो ये
खुद हैं, लेककन अल्ल़ाह उन्हें सज़ा भी खूब दे त़ा है । थोड़े हदन हुए।
म़ामूाँ के घर में आग लग गई। स़ाऱा म़ाल-मत़ा जल गय़ा। एक
बतमन तक न बच़ा। कई हदन तक दरख़्त के स़ाये के नीचे सोए,
अल्ल़ाह क़सम किर न ज़ाने कह़ााँ से क़जम ल़ाए तो बतमन भ़ााँडे
आए।”

बस्ती घनी होने लगी। ईदग़ाह ज़ाने व़ालों के मजमे नजर आने
लगे। एक से एक जक़म-बक़म पोश़ाक पहने हुए। कोई त़ााँगे पर सव़ार,
कोई मोटर पर चलते थे तो कपड़ों से इत्र की खश्ु बू उड़ती थी।

दहक़़ानों की ये मुख़्तसर सी टोल अपनी बे सर-ओ-स़ाम़ानी से बे-


हहस अपनी खस्त़ा ह़ाल में मगर स़ाबबर-ओ-श़ाककर चल ज़ाती
थी। म्जस चीज की तरि त़ाकते त़ाकते रह ज़ाते और पीछे से
ब़ार ब़ार हॉनम की आव़ाज होने पर भी खबर न होती थी। मोहमसन
तो मोटर के नीचे ज़ाते ज़ाते बच़ा।

वो ईदग़ाह नजर आई। जम़ा’अत शरू


ु हो गई है । ऊपर इमल के
घने दरख़्तों क़ा स़ाय़ा है , नीचे खल
ु ़ा हुआ पख़्
ु त़ा िशम है । म्जस पर
ज़ाम्जम बबछ़ा हुआ है और नम़ाम्जयों की क़त़ारें एक के पीछे दस
ू रे
खुद़ा ज़ाने कह़ााँ तक चल गई हैं। पुख़्त़ा िशम के नीचे ज़ाम्जम भी
नह ं। कई क़त़ारें खड़ी हैं जो आते ज़ाते हैं, पीछे खड़े होते ज़ाते
हैं। आगे अब जगह नह ं रह । यह़ााँ कोई रुत्ब़ा और ओहद़ा नह ं
दे खत़ा। इस्ल़ाम की ननग़ाह में सब बऱाबर हैं। दहक़़ानों ने भी वजू
ककय़ा और जम़ा’अत में श़ाममल हो गए। ककतनी ब़ा-क़़ाएद़ा
मुनज़्जम जम़ा’अत है , ल़ाखों आदमी एक स़ाथ झुकते हैं, एक
स़ाथ दो ज़ानू बैठ ज़ाते हैं और ये अ’मल ब़ार-ब़ार होत़ा है । ऐस़ा
म़ालूम हो रह़ा है गोय़ा बबजल की ल़ाखों बपिय़ााँ एक स़ाथ रौशन
हो ज़ाएाँ और एक स़ाथ बुझ ज़ाएाँ।

ककतऩा परु -एहनतऱाम रौब-अंगेज नज़ाऱा है । म्जसकी हम-आहं गी


और वस
ु अ’त और त़ा’द़ाद हदलों पर एक पवजद़ानी कैकियत पैद़ा
कर दे ती है। गोय़ा उखुव्वत क़ा ररश्त़ा इन तम़ाम रूहों को मुंसमलक
ककए हुए है ।

(2)

नम़ाज खत्म हो गई है , लोग ब़ाहम गले ममल रहे हैं। कुछ लोग
मोहत़ाजों और स़ाइलों को खैऱात कर रहे हैं। जो आज यह़ााँ हज़ारों
जम़ा हो गए हैं। हम़ारे दहक़़ानों ने ममठ़ाई और खखलौनों की दक
ु ़ानों
पर यरू रश की। बढ़
ू े भी इन हदलचम्स्पयों में बच्चों से कम नह ं हैं।

ये दे खो हहंडोल़ा है , एक पैस़ा दे कर आसम़ान पर ज़ाते म़ालूम


होंगे। कभी जमीन पर गगरते हैं, ये चख़ी है , लकड़ी के घोड़े, ऊाँट,
ह़ाथी झड़ों से लटके हुए हैं। एक पैस़ा दे कर बैठ ज़ाओ और
पच्चीस चककरों क़ा मज़ा लो। महमूद और मोहमसन दोनों हहंडोले
पर बैठे हैं। आजर और समी घोड़ों पर।

उनके बुजुगम इतने ह नतफ़्ल़ाऩा इम्श्तय़ाक़ से चख़ी पर बैठे हैं।


ह़ाममद दरू खड़़ा है । तीन ह पैसे तो उसके प़ास हैं। जऱा स़ा चककर
ख़ाने के मलए वो अपने खज़ाने क़ा सल
ु स
ु नह ं सिम कर सकत़ा।
मोहमसन क़ा ब़ाप ब़ार-ब़ार उसे चख़ी पर बल
ु ़ात़ा है लेककन वो ऱाजी
नह ं होत़ा। बूढ़े कहते हैं इस लड़के में अभी से अपऩा-पऱाय़ा आ
गय़ा है । ह़ाममद सोचत़ा है , कयूाँ ककसी क़ा एहस़ान लाँ ?
ू उसरत ने
उसे जरूरत से ज़्य़ाद़ा जकी-उल-हहस बऩा हदय़ा है ।

सब लोग चख़ी से उतरते हैं। खखलौनों की खर द शुरू होती है।


मसप़ाह और गुजररय़ा और ऱाज़ा-ऱानी और वकील और धोबी और
मभश्ती बे-इम्कतय़ाज ऱान से ऱान ममल़ाए बैठे हैं। धोबी ऱाज़ा-ऱानी
की बग़ल में है और मभश्ती वकील स़ाहब की बग़ल में । व़ाह ककतने
खब
ू सरू त, बोल़ा ह च़ाहते हैं। महमूद मसप़ाह पर लट्टू हो ज़ात़ा
है । ख़ाकी वदी और पगड़ी ल़ाल, कंधे पर बंदक़
ू , म़ालूम होत़ा है
अभी क़व़ाएद के मलए चल़ा आ रह़ा है ।

मोहमसन को मभश्ती पसंद आय़ा। कमर झक


ु ी हुई है , उस पर मश्क
क़ा दह़ाऩा एक ह़ाथ से पकड़े हुए है । दस
ू रे ह़ाथ में रस्सी है ,
ककतऩा बश्श़ाश चेहऱा है , श़ायद कोई गीत ग़ा रह़ा है। मश्क से
प़ानी टपकत़ा हुआ म़ालम
ू होत़ा है। नरू को वकील से मन
ु ़ामसबत
है । ककतनी आमलम़ाऩा सूरत है , मसय़ाह चुग़़ा। नीचे सिेद अचकन,
अचकन के सीने की जेब में सुनहर जंजीर, एक ह़ाथ में क़़ानून
की ककत़ाब मलए हुए है । म़ालूम होत़ा है , अभी ककसी अद़ालत से
म्जरह य़ा बहस कर के चले आ रहे हैं।

ये सब दो-दो पैसे के खखलौने हैं। ह़ाममद के प़ास कुल तीन पैसे


हैं। अगर दो क़ा एक खखलौऩा ले-ले तो किर और कय़ा लेग़ा? नह ं
खखलौने िुजूल हैं। कह ं ह़ाथ से गगर पड़े तो चूर-चूर हो ज़ाए। जऱा
स़ा प़ानी पड़ ज़ाए तो स़ाऱा रं ग धल
ु ज़ाए। इन खखलौनों को लेकर
वो कय़ा करे ग़ा, ककस मसरि के हैं?

मोहमसन कहत़ा है , “मेऱा मभश्ती रोज प़ानी दे ज़ाएग़ा सुब्ह श़ाम।”

नरू बोल , “और मेऱा वकील रोज मक़


ु द्दमे लड़ेग़ा और रोज रुपये
ल़ाएग़ा।”

ह़ाममद खखलौनों की मजकमत करत़ा है । ममट्ट के ह तो हैं, गगरें


तो चकऩाचरू हो ज़ाएाँ, लेककन हर चीज को ललच़ाई हुई नजरों से
दे ख रह़ा है और च़ाहत़ा है कक जऱा दे र के मलए उन्हें ह़ाथ में ले
सकत़ा।

ये बबस़ाती की दक
ु ़ान है , तरह-तरह की जरूर चीजें, एक च़ादर
बबछी हुई है । गें द, सीहटय़ााँ, बबगुल, भाँवरे , रबड़ के खखलौने और
हज़ारों चीजें। मोहमसन एक सीट लेत़ा है , महमद
ू गें द, नरू रबड़
क़ा बत
ु जो चाँू-चाँू करत़ा है और समी एक खंजर । उसे वो बज़ा-
बज़ा कर ग़ाएग़ा। ह़ाममद खड़़ा हर एक को हसरत से दे ख रह़ा है ।
जब उसक़ा रिीक़ कोई चीज खर द लेत़ा है तो वो बड़े इम्श्तय़ाक़
से एक ब़ार उसे ह़ाथ में लेकर दे खने लगत़ा है , लेककन लड़के इतने
दोस्त-नव़ाज नह ं होते। ख़ासकर जब कक अभी हदलचस्पी त़ाज़ा
है । बेच़ाऱा यूाँ ह म़ायूस होकर रह ज़ात़ा है ।

खखलौनों के ब़ाद ममठ़ाइयों क़ा नंबर आय़ा, ककसी ने रे वडड़य़ााँ ल


हैं, ककसी ने गल
ु ़ाब ज़ामन
ु , ककसी ने सोहन हलव़ा। मजे से ख़ा
रहे हैं। ह़ाममद उनकी बबऱादर से ख़ाररज है । कमबख़्त की जेब में
तीन पैसे तो हैं, कयूाँ नह ं कुछ लेकर ख़ात़ा। हर स ननग़ाहों से सब
की तरि दे खत़ा है।

मोहमसन ने कह़ा, “ह़ाममद ये रे वड़ी ले ज़ा ककतनी खश्ु बद


ू ़ार हैं।”
ह़ाममद समझ गय़ा ये महज शऱारत है । मोहमसन इतऩा िय्य़ाज-
तबअ न थ़ा। किर भी वो उसके प़ास गय़ा। मोहमसन ने दोने से
दो तीन रे वडड़य़ााँ ननक़ाल ं। ह़ाममद की तरि बढ़़ाईं। ह़ाममद ने ह़ाथ
िैल़ाय़ा। मोहमसन ने ह़ाथ खींच मलय़ा और रे वडड़य़ााँ अपने मुाँह में
रख ल ं। महमद
ू और नरू और समी खब
ू त़ामलय़ााँ बज़ा-बज़ा कर
हाँसने लगे। ह़ाममद खखसय़ाऩा हो गय़ा। मोहमसन ने कह़ा,

“अच्छ़ा अब जरूर दें गे। ये ले ज़ाओ। अल्ल़ाह क़सम।”

ह़ाममद ने कह़ा, “रखखए-रखखए कय़ा मेरे प़ास पैसे नह ं हैं?”

समी बोल़ा, “तीन ह पैसे तो हैं, कय़ा-कय़ा लोगे?”

महमद
ू बोल़ा, “तम
ु इस से मत बोलो, ह़ाममद मेरे प़ास आओ। ये
गल
ु ़ाब ज़ामन
ु ले लो।”

ह़ाममद, “ममठ़ाई कौन सी बड़ी नेमत है । ककत़ाब में उसकी बुऱाइय़ााँ


मलखी हैं।”
मोहमसन, “लेककन जी में कह रहे होगे कक कुछ ममल ज़ाए तो ख़ा
लें। अपने पैसे कयूाँ नह ं ननक़ालते?”

महमूद, “इसकी होमशय़ार मैं समझत़ा हूाँ। जब हम़ारे स़ारे पैसे


खचम हो ज़ाएाँगे, तब ये ममठ़ाई लेग़ा और हमें गचढ़़ा-गचढ़़ा कर
ख़ाएग़ा।”

हलव़ाइयों की दक
ु ़ानों के आगे कुछ दक
ु ़ानें लोहे की चीजों की थीं
कुछ गलट और मुलकम़ा के जेवऱात की। लड़कों के मलए यह़ााँ
हदलचस्पी क़ा कोई स़ाम़ान न थ़ा। ह़ाममद लोहे की दक
ु ़ान पर एक
लकहे के मलए रुक गय़ा। दस्त-पऩाह रखे हुए थे। वो दस्त-पऩाह
खर द लेग़ा। म़ााँ के प़ास दस्त-पऩाह नह ं है । तवे से रोहटय़ााँ
उत़ारती हैं तो ह़ाथ जल ज़ात़ा है । अगर वो दस्त-पऩाह ले ज़ा कर
अकम़ााँ को दे दे तो वो ककतनी खश
ु होंगी। किर उनकी उाँ गमलय़ााँ
कभी नह ं जलेंगी, घर में एक क़ाम की चीज हो ज़ाएगी। खखलौनों
से कय़ा ि़ाएद़ा। मुफ़्त में पैसे खऱाब होते हैं। जऱा दे र ह तो खुशी
होती है किर तो उन्हें कोई आाँख उठ़ा कर कभी नह ं दे खत़ा। य़ा
तो घर पहुाँचते-पहुाँचते टूट-िूट कर बब़ामद हो ज़ाएाँगे य़ा छोटे बच्चे
जो ईदग़ाह नह ं ज़ा सकते हैं म्जद कर के ले लेंगे और तोड़ ड़ालेंग।े
दस्त-पऩाह ककतने ि़ाएदे की चीज है । रोहटय़ााँ तवे से उत़ार लो,
चल्
ू हे से आग ननक़ाल कर दे दो। अकम़ााँ को िुसमत कह़ााँ है ब़ाज़ार
आएाँ और इतने पैसे कह़ााँ ममलते हैं। रोज ह़ाथ जल़ा लेती हैं।
उसके स़ाथी आगे बढ़ गए हैं। सबील पर सबके सब प़ानी पी रहे
हैं। ककतने ल़ालची हैं। सबने इतनी ममठ़ाइय़ााँ ल ं, ककसी ने मुझे
एक भी न द । इस पर कहते हैं मेरे स़ाथ खेलो। मेर तख़्ती धो
ल़ाओ। अब अगर यह़ााँ मोहमसन ने कोई क़ाम करने को कह़ा तो
खबर लाँ ग
ू ़ा, ख़ाएाँ ममठ़ाई आप ह मुाँह सड़ेग़ा, िोड़े िंु मसय़ााँ
ननकलेंगी। आप ह जब़ान चटोर हो ज़ाएगी, तब पैसे चुऱाएाँगे और
म़ार ख़ाएाँगे। मेर जब़ान कयूाँ खऱाब होगी।

उसने किर सोच़ा, अकम़ााँ दस्त-पऩाह दे खते ह दौड़ कर मेरे ह़ाथ


से ले लेंगी और कहें गी। मेऱा बेट़ा अपनी म़ााँ के मलए दस्त-पऩाह
ल़ाय़ा है , हज़ारों दआ
ु एाँ दें गी। किर उसे पड़ोमसयों को हदख़ाएाँगी।
स़ारे ग़ााँव में व़ाह-व़ाह मच ज़ाएगी। उन लोगों के खखलौनों पर कौन
उन्हें दआ
ु एाँ दे ग़ा। बुजग
ु ों की दआ
ु एाँ सीधी खद
ु ़ा की दरग़ाह में
पहुाँचती हैं और िौरन क़ुबूल होती हैं। मेरे प़ास बहुत से पैसे नह ं
हैं। जब ह तो मोहमसन और महमूद यूाँ ममज़ाज हदख़ाते हैं। मैं भी
उनको ममज़ाज हदख़ाऊाँग़ा। वो खखलौने खेलें, ममठ़ाइय़ााँ ख़ाएाँ। मैं
ग़र ब सह । ककसी से कुछ म़ााँगने तो नह ं ज़ात़ा। आखखर अब्ब़ा
कभी न कभी आएाँगे ह । किर उन लोगों से पूछूाँग़ा ककतने खखलौने
लोगे? एक-एक को एक टोकर दाँ ू और हदख़ा दाँ ू कक दोस्तों के स़ाथ
इस तरह सल
ु क
ू ककय़ा ज़ात़ा है ।

म्जतने ग़र ब लड़के हैं सब को अच्छे -अच्छे कुरते हदलव़ा दाँ ग


ू ़ा और
ककत़ाबें दे दाँ ग
ू ़ा, ये नह ं कक एक पैसे की रे वडड़य़ााँ लें तो गचढ़़ा-
गचढ़़ा कर ख़ाने लगें । दस्त-पऩाह दे ख कर सब के सब हाँसेंग।े
अहमक़ तो हैं ह सब।

उसने डरते-डरते दक
ु ़ानद़ार से पूछ़ा, “ये दस्त-पऩाह बेचोगे?”

दक
ु ़ानद़ार ने उसकी तरि दे ख़ा और स़ाथ कोई आदमी न दे ख कर
कह़ा, वो तुकह़ारे क़ाम क़ा नह ं है।

“बबक़ाऊ है य़ा नह ं?”

“बबक़ाऊ है जी और यह़ााँ कयाँू ल़ाद कर ल़ाए हैं”

“तो बतल़ाते कयूाँ नह ं? कै पैसे क़ा दोगे?”


“छः पैसे लगेग़ा”

ह़ाममद क़ा हदल बैठ गय़ा। कलेज़ा मजबत


ू कर के बोल़ा, तीन पैसे
लोगे? और आगे बढ़़ा कक दक
ु ़ानद़ार की घुरककय़ााँ न सुने, मगर
दक
ु ़ानद़ार ने घुरककय़ााँ न द ं। दस्त-पऩाह उसकी तरि बढ़़ा हदय़ा
और पैसे ले मलए। ह़ाममद ने दस्त-पऩाह कंधे पर रख मलय़ा, गोय़ा
बंदक़
ू है और श़ान से अकड़त़ा हुआ अपने रिीक़ों के प़ास आय़ा।
मोहमसन ने हाँसते हुए कह़ा, “ये दस्त-पऩाह ल़ाय़ा है। अहमक़ इसे
कय़ा करोगे?”

ह़ाममद ने दस्त-पऩाह को जमीन पर पटक कर कह़ा, “जऱा अपऩा


मभश्ती जमीन पर गगऱा दो, स़ार पम्स्लय़ााँ चूर-चूर हो ज़ाएाँगी बच्चू
की।”

महमद
ू , “तो ये दस्त-पऩाह कोई खखलौऩा है ?”

ह़ाममद, “खखलौऩा कयूाँ नह ं है ? अभी कंधे पर रख़ा, बंदक़


ू हो गय़ा,
ह़ाथ में ले मलय़ा िक़ीर क़ा गचमट़ा हो गय़ा, च़ाहूाँ तो इससे तुकह़ार
ऩाक पकड़ लाँ ।ू एक गचमट़ा दाँ ू तो तुम लोगों के स़ारे खखलौनों की
ज़ान ननकल ज़ाए। तुकह़ारे खखलौने ककतऩा ह जोर लग़ाएाँ, इसक़ा
ब़ाल ब़ाक़ा नह ं कर सकते। मेऱा बह़ादरु शेर है ये दस्त-पऩाह।”

समी मुतअ’म्स्सर होकर बोल़ा, “मेर खंजर से बदलोगे? दो आने


की है।”

ह़ाममद ने खंजर की तरि हहक़़ारत से दे ख कर कह़ा, “मेऱा दस्त-


पऩाह च़ाहे तो तुकह़ार खंजर क़ा पेट ि़ाड़ ड़ाले। बस एक चमड़े
की खझल्ल लग़ा द , ढब-ढब बोलने लगी। जऱा स़ा प़ानी लगे तो
खत्म हो ज़ाए। मेऱा बह़ादरु दस्त-पऩाह तो आग में , प़ानी में ,
आाँधी में , ति
ू ़ान में बऱाबर डट़ा रहे ग़ा।”

मेल़ा बहुत दरू पीछे छूट चुक़ा थ़ा। दस बज रहे थे। घर पहुाँचने
की जल्द थी। अब दस्त-पऩाह नह ं ममल सकत़ा थ़ा। अब ककसी
के प़ास पैसे भी तो नह ं रहे , ह़ाममद है बड़़ा होमशय़ार। अब दो
िर क़ हो गए, महमद
ू , मोहमसन और नरू एक तरि, ह़ाममद तन्ह़ा
दस
ू र तरि। समी ग़ैर ज़ाननब-द़ार है , म्जसकी ित्ह दे खेग़ा उसकी
तरि हो ज़ाएग़ा।
मुऩाजऱा शुरू हो गय़ा। आज ह़ाममद की जब़ान बड़ी सि़ाई से चल
रह है। इपिह़ाद-ए-सल़ास़ा उसके ज़ारे ह़ाऩा अ’मल से परे श़ान हो
रह़ा है। सल़ास़ा के प़ास त़ा’द़ाद की त़ाक़त है , ह़ाममद के प़ास हक़
और अखल़ाक़, एक तरि ममट्ट रबड़ और लकड़ी की चीजें, दस
ू र
ज़ाननब अकेल़ा लोह़ा जो उस वक़्त अपने आप को िौल़ाद कह
रह़ा है। वो सि-मशकन है । अगर कह ं शेर की आव़ाज क़ान में आ
ज़ाए तो ममय़ााँ मभश्ती के औस़ान खत़ा हो ज़ाएाँ। ममय़ााँ मसप़ाह
मटकी बंदक़
ू छोड़कर भ़ागें । वकील स़ाहब क़ा स़ाऱा क़़ानून पेट में
सम़ा ज़ाए। चुग़े में , मुाँह में छुप़ा कर लेट ज़ाएाँ। मगर बह़ादरु , ये
रुस्तम-ए-हहंद लपक कर शेर की गदम न पर सव़ार हो ज़ाएग़ा और
उसकी आाँखें ननक़ाल लेग़ा।

मोहमसन ने एड़ी चोट क़ा जोर लग़ा कर कह़ा, “अच्छ़ा तुकह़ाऱा


दस्त-पऩाह प़ानी तो नह ं भर सकत़ा। ह़ाममद ने दस्त-पऩाह को
सीध़ा कर के कह़ा कक ये मभश्ती को एक ड़ााँट पपल़ाएग़ा तो दौड़़ा
हुआ प़ानी ल़ा कर उसके दरव़ाजे पर नछड़कने लगेग़ा। जऩाब इससे
च़ाहे घड़े मटके और कूाँडे भर लो।

मोहमसन क़ा ऩानतक़़ा बंद हो गय़ा। नूर ने कुमुक पहुाँच़ाई, “बच्च़ा


गगरफ़्त़ार हो ज़ाएाँ तो अद़ालत में बंधे-बंधे किरें गे। तब तो हम़ारे
वकील स़ाहब ह पैरवी करें गे। बोमलए जऩाब”
ह़ाममद के प़ास इस व़ार क़ा दिईह इतऩा आस़ान न थ़ा, दिअ’तन
उसने जऱा मोहलत प़ा ज़ाने के इऱादे से पूछ़ा, “इसे पकड़ने कौन
आएग़ा?”

महमद
ू ने कह़ा, “ये मसप़ाह बंदक़
ू व़ाल़ा।”

ह़ाममद ने मुाँह गचढ़़ाकर कह़ा, “ये बेच़ारे इस रुस्तम-ए-हहंद को


पकड़ लेंगे? अच्छ़ा ल़ाओ अभी जऱा मुक़़ाबल़ा हो ज़ाए। उसकी
सूरत दे खते ह बच्चे की म़ााँ मर ज़ाएगी, पकड़ेंगे कय़ा बेच़ारे ।”

मोहमसन ने त़ाज़ा-दम होकर व़ार ककय़ा, “तुकह़ारे दस्त-पऩाह क़ा


मुाँह रोज आग में जल़ा करे ग़ा।” ह़ाममद के प़ास जव़ाब तैय़ार थ़ा,
“आग में बह़ादरु कूदते हैं जऩाब। तुकह़ारे ये वकील और मसप़ाह
और मभश्ती डरपोक हैं। सब घर में घुस ज़ाएाँगे। आग में कूदऩा
वो क़ाम है जो रुस्तम ह कर सकत़ा है।”नरू ने इंनतह़ाई म्जद्दत
से क़ाम मलय़ा, “तुकह़ाऱा दस्त-पऩाह ब़ावच़ीख़ाने में जमीन पर पड़़ा
रहे ग़ा। मेऱा वकील श़ान से मेज कुस़ी लग़ा कर बैठेग़ा।” इस जुमले
ने मुदों में भी ज़ान ड़ाल द , समी भी जीत गय़ा। “बे-शक बड़े
म़ारके की ब़ात कह , दस्त-पऩाह ब़ावच़ीख़ाऩा में पड़़ा रहे ग़ा।”
ह़ाममद ने ध़ााँधल की, “मेऱा दस्त-पऩाह ब़ावच़ीख़ाऩा में रहे ग़ा,
वकील स़ाहब कुस़ी पर बैठेंगे तो ज़ा कर उन्हें जमीन पर पटक
दे ग़ा और स़ाऱा क़़ानून उनके पेट में ड़ाल दे ग़ा।”

इस जव़ाब में बबल्कुल ज़ान न थी, बबल्कुल बेतक


ु ी सी ब़ात थी
लेककन क़़ानन
ू पेट में ड़ालने व़ाल ब़ात छ़ा गई। तीनों सरू म़ा माँह

तकते रह गए। ह़ाममद ने मैद़ान जीत मलय़ा, गो सल़ास़ा के प़ास
अभी गें द सीट और बत
ु ररजवम थे मगर इन मशीनगनों के स़ामने
उन बुजहदलों को कौन पूछत़ा है । दस्त-पऩाह रुस्तम-ए-हहंद है ।
इसमें ककसी को चाँू-गचऱा की गंज
ु ़ाइश नह ं।”

ि़ातेह को मितूहों से खुश़ामद क़ा ममज़ाज ममलत़ा है । वो ह़ाममद


को ममलने लग़ा और सब ने तीन तीन आने खचम ककए और कोई
क़ाम की चीज न ल़ा सके। ह़ाममद ने तीन ह पैसों में रं ग जम़ा
मलय़ा। खखलौनों क़ा कय़ा एनतब़ार। दो एक हदन में टूट-िूट ज़ाएाँगे।
ह़ाममद क़ा दस्त-पऩाह तो ि़ातेह रहे ग़ा। हमेश़ा सुल्ह की शतें तय
होने लगीं।
मोहमसन ने कह़ा, “जऱा अपऩा गचमट़ा दो। हम भी तो दे खें। तुम
च़ाहो तो हम़ाऱा वकील दे ख लो ह़ाममद! हमें इसमें कोई एनतऱाज
नह ं है। वो िय्य़ाज-तबअ ि़ातेह है । दस्त-पऩाह ब़ार -ब़ार से
महमूद, मोहमसन, नूर और समी सब के ह़ाथों में गय़ा और उनके
खखलौने ब़ार -ब़ार ह़ाममद के ह़ाथ में आए। ककतने खूबसूरत खखलौने
हैं, म़ालम
ू होत़ा है बोल़ा ह च़ाहते हैं। मगर इन खखलौनों के मलए
उन्हें दआ
ु कौन दे ग़ा? कौन इन खखलौनों को दे ख कर इतऩा खश

होग़ा म्जतऩा अकम़ााँ ज़ान दस्त-पऩाह को दे ख कर होंगी। उसे
अपने तजम-ए-अ’मल पर मुतलक़ पछत़ाव़ा नह ं है । किर अब दस्त-
पऩाह तो है और सब क़ा ब़ादश़ाह।

ऱास्ते में महमूद ने एक पैसे की ककडड़य़ााँ ल ं। इसमें ह़ाममद को


भी खखऱाज ममल़ा ह़ाल़ााँकक वो इंक़ार करत़ा रह़ा। मोहमसन और
समी ने एक-एक पैसे के ि़ालसे मलए, ह़ाममद को खखऱाज ममल़ा।
ये सब रुस्तम-ए-हहंद की बरकत थी।

ग्य़ारह बजे स़ारे ग़ााँव में चहल-पहल हो गई। मेले व़ाले आ गए।
मोहमसन की छोट बहन ने दौड़ कर मभश्ती उसके ह़ाथ से छीन
मलय़ा और म़ारे खुशी जो उछल तो ममय़ााँ मभश्ती नीचे आ रहे
और आलम-ए-ज़ावेद़ानी को मसध़ारे । इस पर भ़ाई बहन में म़ार
पीट हुई। दोनों खूब रोए

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