Hindi-Mobile-Murli (8-July-2024)

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08-07-2024 प्रात: मुरली ओम्

शान्ति "बापदादा" मधुबन


“मीठे बच्चे - बाप समान
अपकारिय ों पि भी उपकाि
किना सीख , ननोंदक क भी
अपना नमत्र बनाओ”
प्रश्न:- बाप की कौन-सी दृष्टि पक्की
है ? तुम बच्चों कच कौन-सी पक्की
करनी है ?
उत्ति:- बाप की दृष्टि पक्की है ष्टक
जच भी आत्मायें हैं सब मेरे बच्े हैं
इसष्टलए बच्े-बच्े कहते रहते हैं ।
तुम कभी भी ष्टकसी कच बच्े-बच्े
नहीों कह सकते हच। तुम्हें यह दृष्टि
पक्की करनी है ष्टक यह आत्मा
हमारा भाई है । भाई कच दे खच, भाई
से बात करच, इससे रूहानी प्यार
रहे गा। ष्टिष्टमनल ख्यालात खत्म हच
जायेंगे। ष्टनोंदा करने वाला भी ष्टमत्र
बन जायेगा।
ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ
समझाते हैं । रूहानी बाप का नाम
क्या है ? जरूर कहें गे ष्टशव। वह
सबका रूहानी बाप है , उनकच ही
भगवान् कहा जाता है । तुम बच्चों
में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार
समझते हैं । यह जच आकाशवाणी
कहते हैं , अब आकाशवाणी
ष्टकसकी ष्टनकलती है ? ष्टशवबाबा
की। इस मुख कच आकाश तत्व
कहा जाता है । आकाश के तत्व से
वाणी तच सब मनुष्चों की ष्टनकलती
है । जच भी सब आत्मायें हैं , अपने
बाप कच भूल गई हैं । अनेक प्रकार
के गायन करते रहते हैं । जानते
कुछ भी नहीों। गायन भी यहााँ करते
हैं । सुख में तच कचई भी बाप कच
याद नहीों करते। सभी कामनायें
वहााँ पूरी हच जाती है । यहााँ तच
कामनायें बहुत रहती हैं । बरसात
नहीों हचती तच यज्ञ रचते हैं । ऐसे
नहीों ष्टक सदै व यज्ञ करने से
बरसात पड़ती है । नहीों, कहााँ
फैमन पड़ता है भल यज्ञ करते हैं ,
परिु यज्ञ करने से कुछ हचता नहीों
है । यह तच ड्रामा है । आफतें जच
आनी हैं वह तच आती ही रहती हैं ।
ष्टकतने ढे र मनुष् मरते हैं , ष्टकतने
जानवर आष्टद मरते रहते हैं । मनुष्
ष्टकतने दु :खी हचते हैं । क्या बरसात
कच बोंद करने के ष्टलए भी यज्ञ है ?
जब एकदम मूसलधार बरसात
हचगी तच यज्ञ करें गे? इन सब बातचों
कच अभी तुम समझते हच और क्या
जानें।
बाप खुद बैठ समझाते हैं , मनुष्
बाप की मष्टहमा भी करते हैं और
गाली भी दे ते हैं । वन्डर है , बाबा की
ग्लाष्टन कब से शुरू हुई? जब से
रावण राज्य शुरू हुआ है । मुख्य
ग्लाष्टन की है जच ईश्वर कच सवथव्यापी
कहा है , इसी से ही ष्टगर पड़े हैं ।
गायन है ष्टनोंदा हमारी जच करे ष्टमत्र
हमारा सच। अब सबसे जास्ती
ग्लाष्टन ष्टकसने की है ? तुम बच्चों ने।
अब ष्टफर ष्टमत्र भी तुम बनते हच। यूाँ
तच ग्लाष्टन सारी दु ष्टनया करती है ।
उनमें भी नम्बरवन तुम हच ष्टफर
तुम ही ष्टमत्र बनते हच। सबसे
नज़दीक वाले ष्टमत्र हैं बच्े। बेहद
का बाप कहते हैं हमारी ष्टनोंदा तुम
बच्चों ने की है । अपकारी भी तुम
बच्े बनते हच। ड्रामा कैसा बना
हुआ है । यह है ष्टवचार सागर मोंर्न
करने की बातें। ष्टवचार सागर मोंर्न
का ष्टकतना अर्थ ष्टनकलता है । कचई
समझ न सके। बाप कहते हैं ष्टक
तुम बच्े पढ़कर उपकार करते
हच। गायन भी है यदा-यदाष्टह....
भारत की बात है । खेल दे खच कैसा
है ! ष्टशव जयिी अर्वा ष्टशव राष्टत्र
भी मनाते हैं । वास्तव में अवतार है
एक। अवतार कच भी ष्टठक्कर-
ष्टभत्तर में कह ष्टदया है । बाप
उल्हना दे ते हैं । गीता पाठी श्लचक
पढ़ते हैं परिु कहते हैं हमकच पता
नहीों।
तुम ही प्यारे ते प्यारे बच्े हच। कचई
से भी बात करें गे तच बच्े -बच्े ही
कहते रहें गे। बाप की तच वह दृष्टि
पक्की हच गई है । सब आत्मायें
हमारे बच्े हैं । तुम्हारे में से एक भी
नहीों हचगा ष्टजसके मुख से बच्ा
अक्षर ष्टनकले। यह तच जानते हैं
कचई ष्टकस मतथबे वाला है , क्या है ।
सब आत्मायें हैं । यह भी ड्रामा बना
हुआ है , इसष्टलए कुछ भी ग़म-
खुशी नहीों हचती। सब हमारे बच्े
हैं । कचई ने मेहतर का शरीर धारण
ष्टकया है , कचई ने फलाने का शरीर
धारण ष्टकया है । बच्े-बच्े कहने
की आदत पड़ गई है । बाबा की
नज़र में सब आत्मायें हैं । उनमें भी
गरीब बहुत अच्छे लगते हैं क्यचोंष्टक
ड्रामा अनुसार उन्चोंने बहुत ग्लाष्टन
की है । अब ष्टफर मेरे पास आ गये
हैं । ष्टसफथ यह लक्ष्मी-नारायण हैं
ष्टजनकी कभी ग्लाष्टन नहीों की
जाती। श्रीकृष्ण की भी बहुत ग्लाष्टन
की है । वन्डर है ना। श्रीकृष्ण ही
बड़ा बना तच उसकी ग्लाष्टन नहीों
है । यह ज्ञान ष्टकतना अटपटा है ।
ऐसी गुह्य बातें कचई समझ र्चड़े ही
सकते हैं , इसमें चाष्टहए सचने का
बतथन। वह याद की यात्रा से ही बन
सकता है । यहााँ बैठे भी यर्ार्थ याद
र्चड़े ही करते हैं । यह नहीों समझते
ष्टक हम छचटी आत्मा हैं , याद भी
बुन्ति से करना है । यह बुन्ति में
आता नहीों है । छचटी सी आत्मा वह
हमारा बाप भी है , टीचर भी है , यह
बुन्ति में आना भी असम्भव हच
जाता है । बाबा-बाबा तच कहते हैं ,
दु :ख में ष्टसमरण सब करते हैं ।
भगवानुवाच है ना - दु :ख में सब
याद करते हैं , सुख में करे न कचई।
दरकार ही नहीों याद करने की।
यहााँ तच इतने दु :ख आफतें आष्टद
आती हैं , याद करते हैं हे भगवान्
रहम करच, कृपा करच। अब भी
बच्े बनते हैं तच भी ष्टलखते हैं -
कृपा करच, शन्ति दच, रहम करच।
बाबा ष्टलखते हैं शन्ति आपेही
यचगबल से लच। अपने ऊपर कृपा
रहम आपेही करच। अपने कच
आपेही राजष्टतलक दच। युन्ति
बताता हाँ - कैसे दे सकते हच।
टीचर पढ़ने की युन्ति बताते हैं ।
स्टू ड्े न्ट का काम है पढ़ना,
ड्ायरे क्शन पर चलना। टीचर कचई
गुरू र्चड़े ही है जच कृपा आशीवाथ द
करे । जच अच्छे बच्े हचोंगे वह
दौड़ें गे। हर एक स्वतोंत्र है , ष्टजतना
दौड़ी लगानी है वह लगाये। याद
की यात्रा ही दौड़ी है ।
एक-एक आत्मा इन्तन्डपेन्डेन्ट है ।
भाई-बहन का भी नाता छु ड़ा
ष्टदया। भाई-भाई समझच ष्टफर भी
ष्टिष्टमनल आई छूटती नहीों है । वह
अपना काम करती रहती है । इस
समय मनुष्चों के अोंग सब
ष्टिष्टमनल हैं । ष्टकसकच लात मारी,
घूाँसा मारा तच ष्टिष्टमनल अोंग हुआ
ना। अोंग-अोंग ष्टिष्टमनल हैं । वहााँ
कचई भी अोंग ष्टिष्टमनल नहीों हचगा।
यहााँ अोंग-अोंग से ष्टिष्टमनल काम
करते रहते हैं । सबसे जास्ती
ष्टिष्टमनल अोंग कौन सा है ? आों खे।
ष्टवकार की आश पूरी नहीों हुई तच
ष्टफर हार् चलाने लग पड़ते।
पहले-पहले है आों खे। तब सूरदास
की भी कहानी है । ष्टशवबाबा तच
कचई शास्त्र पढ़ा हुआ नहीों है । यह
रर् पढ़ा हुआ है । ष्टशवबाबा कच तच
ज्ञान का सागर कहा जाता है । यह
तुम समझते हच ष्टक ष्टशवबाबा कचई
पुस्तक नहीों उठाता। मैं तच
नॉलेजफुल हाँ , बीज-रूप हाँ । यह
सृष्टि रूपी झाड़ है , उसका
रचष्टयता है बाप, बीज। बाबा
समझाते हैं मेरा ष्टनवास स्र्ान
मूलवतन में है । अभी मैं इस शरीर
में ष्टवराजमान हाँ और कचई कह न
सके ष्टक मैं इस मनुष् सृष्टि का
बीजरूप हाँ । मैं परमष्टपता परमात्मा
हाँ , कचई कह नहीों सकेगा।
सेन्सीबुल कचई अच्छा हच, उनकच
कचई कहे ईश्वर सवथव्यापी है तच झट
पूछेगा क्या तुम भी ईश्वर हच? क्या
तुम अल्लाह-साों ई हच? हच नहीों
सकता। परिु इस समय कचई
सेन्सीबुल नहीों है । अल्लाह का भी
पता नहीों, खुद ही कहते हैं अल्लाह
हाँ । वह भी इों गष्टलश में कहते है
ओमनी प्रेजन्ट। अर्थ समझें तच
कभी नहीों कहें । बच्े अब जानते हैं
ष्टशवबाबा की जयिी सच नये ष्टवश्व
की जयिी। उसमें पष्टवत्रता-सुख-
शान्ति सब कुछ आ जाता है ।
ष्टशवजयिी सच श्रीकृष्ण जयिी,
सच दशहरा जयिी। ष्टशवजयिी
सच दीपमाला जयिी, ष्टशवजयिी
सच स्वगथ जयिी। सब जयन्तियाों
आ जाती हैं । यह सब नई बातें बाप
बैठ समझाते हैं । ष्टशव जयिी सच
ष्टशवालय जयिी, वेश्यालय
मरिी। सब नई बातें बाप बैठ
समझाते हैं । ष्टशव जयिी सच नये
ष्टवश्व की जयिी। चाहते हैं ना ष्टवश्व
में शान्ति हच। तुम ष्टकतना भी
अच्छी रीष्टत समझाते हच, जगते ही
नहीों। अज्ञान अोंधेरे में सचये पड़े हैं
ना। भन्ति करते सीढ़ी नीचे उतरते
जाते हैं । बाप कहते हैं मैं आकर
सबकी सद्गष्टत करता हाँ । स्वगथ और
नकथ का राज़ तुम बच्चों कच बाप
समझाते है । अखबारें जच तुम्हारी
ग्लाष्टन करती हैं उनकच ष्टलख दे ना
चाष्टहए - ष्टनोंदा हमारी जच करे ष्टमत्र
हमारा सचय। तुम्हारी भी सद्गष्टत हम
जरूर करें गे, ष्टजतनी चाष्टहए उतनी
गाली दच। ईश्वर की ग्लाष्टन करते हैं ,
हमारी की तच क्या हुआ। तुम्हारी
सद्गष्टत हम जरूर करें गे। नहीों
चाहें गे तच भी नाक से पकड़कर ले
जायेंगे। ड्रने की तच बात नहीों, जच
कुछ करते हैं कल्प पहले भी ष्टकया
है । हम बी.के. तच सबकी सद्गष्टत
करें गे। अच्छी तरह से समझाना
चाष्टहए। अबलाओों पर अत्याचार तच
कल्प पहले भी हुआ र्ा, यह बच्े
भूल जाते हैं । बाप कहते हैं बेहद
के बच्े सब हमारी ग्लाष्टन करते
हैं । सबसे प्यारे ष्टमत्र बच्े ही लगते
हैं । बच्े तच फूल हचते हैं । बच्चों कच
मााँ -बाप चुम्मन करते हैं , मार्े पर
चढ़ाते, उनकी सेवा करते हैं । बाबा
भी तुम बच्चों की सेवा करते हैं ।
अभी तुमकच यह नॉलेज ष्टमली हुई
है , जच तुम सार् ले जाते हच। जच
नहीों लेते उनका भी ड्रामा में पाटथ
है । वही पाटथ बजायेंगे। ष्टहसाब-
ष्टकताब चुिू कर घर चले जाते हैं ।
स्वगथ तच दे ख न सकें। सब र्चड़े ही
स्वगथ दे खेंगे। यह ड्रामा बना हुआ
है । पाप खूब करते हैं , आयेंगे भी
दे री से। तमचप्रधान बहुत दे री से
आयेंगे। यह राज़ भी बहुत अच्छा
समझने का है । अच्छे -अच्छे
महारर्ी बच्चों पर भी ग्रहचारी
बैठती है तच झट गुस्सा आ जाता है
ष्टफर ष्टचट्ठी भी नहीों ष्टलखते हैं । बाबा
भी कहते हैं ष्टक उनकी मुरली बोंद
कर दच। ऐसे कच बाप का खजाना
दे ने से फायदा ही क्या। ष्टफर कचई
की आों ख खुले तच कहें गे भूल हुई।
कचई तच परवाह नहीों करते। इतनी
ग़फलत नहीों करनी चाष्टहए। ऐसे
बहुत ढे र हैं , बाप कच याद भी नहीों
करते हैं , कचई कच आप समान भी
नहीों बनाते हैं । नहीों तच बाबा कच
ष्टलखना चाष्टहए - बाबा, हम हरदम
आपकच याद करते हैं । कई तच
ष्टफर ऐसे हैं जच सबका नाम ष्टलख
दे ते हैं - फलाने कच याद दे ना, यह
याद सच्ी र्चड़े ही है । झूठ चल न
सके। अन्दर ष्टदल खाती रहे गी।
बच्चों कच प्वाइों ट तच अच्छी-अच्छी
समझाते रहते हैं । ष्टदन-प्रष्टतष्टदन
बाबा गुह्य बातें समझाते रहते हैं ।
दु :ख के पहाड़ ष्टगरने वाले हैं ।
सतयुग में दु :ख का नाम नहीों।
अभी है रावण राज्य। मैसूर का
राजा भी रावण आष्टद बनाकर
दशहरा बहुत मनाते हैं । राम कच
भगवान् कहते हैं । राम की सीता
चचरी हुई। अब वह तच
सवथशन्तिमान् ठहरा, उसकी चचरी
कैसे हच सकती। यह सब है
अन्धश्रधा। इस समय हर एक में 5
ष्टवकारचों की गन्दगी है । ष्टफर
भगवान् कच सवथव्यापी कहना यह
बहुत बड़ा झूठ है , तब तच बाप
कहते हैं - यदा यदाष्टह.....। मैं
आकर सचखण्ड, सच्ा धमथ
स्र्ापन करता हाँ । सचखण्ड
सतयुग कच, झूठ खण्ड कष्टलयुग
कच कहा जाता है । अभी बाप
झूठखण्ड कच सचखण्ड बनाते हैं ।
अच्छा!
मीठे -मीठे ष्टसकीलधे बच्चों प्रष्टत
मात-ष्टपता बापदादा का याद-प्यार
और गुड्मॉष्टनथग। रूहानी बाप की
रूहानी बच्चों कच नमस्ते।
धािणा के निए मुख्य साि:-
1) इस गुह्य वा अटपटे ज्ञान कच
समझने के ष्टलए बुन्ति कच याद
की यात्रा से सचने का बतथन
बनाना है । याद की रे स करनी
है ।
2) बाप के ड्ायरे क्शन पर चलकर,
पढ़ाई कच ध्यान से पढ़कर
अपने ऊपर आपेही कृपा वा
आशीवाथ द करनी है , अपने कच
राजष्टतलक दे ना है । ष्टनोंदक कच
अपना ष्टमत्र समझ उनकी भी
सद्गष्टत करनी है ।
विदान:- ऊपि से अवतरित ह
अवताि बन सेवा किने वािे
साक्षात्काि मूतत भव
जैसे बाप सेवा के ष्टलए वतन से
नीचे आते हैं , ऐसे हम भी सेवा के
प्रष्टत वतन से आये हैं , ऐसे अनुभव
कर सेवा करच तच सदा न्यारे और
बाप समान ष्टवश्व के प्यारे बन
जायेंगे। ऊपर से नीचे आना माना
अवतार बन अवतररत हचकर सेवा
करना। सभी चाहते हैं ष्टक अवतार
आयें और हमकच सार् ले जायें। तच
सच्े अवतार आप हच जच सबकच
मुन्तिधाम में सार् ले जायेंगे। जब
अवतार समझकर सेवा करें गे तब
साक्षात्कार मूतथ बनेंगे और अनेकचों
की इच्छायें पूणथ हचोंगी।
स्ल गन:- आपकच कचई अच्छा दे
या बुरा आप सबकच स्नेह दच,
सहयचग दच, रहम करच।
ओम् शान्ति।

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