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चेरी का बगीचा( 1903)

एं तोन चेखव

अनुवादक- राजेन्द्र यादव


ऐततहातिक िंदर्भ 1850 के पूवभ
• रहस्योद् घाटनों का युग

• तकभ की अपेक्षा कल्पना को महत्त्व

• व्यतकतवाद की महत्त्ता

• िुखद अंत
ऐततहातिक िंदर्भ 1850 के पश्चात
*यथाथभवाद

*प्रथम तवश्वयुद्ध की आहट

*रूि में िंकट का िमय

*कोरे आदर्भवादी दर्भन की उपेक्षा


एन्तोन चे ख व िं त क्षप्त पररचय
*जन्म दतक्षण रूि के तगानरोग में 29 जनवरी 1860 में एक
दू कानदार के पररवार में हुआ था।
*१८६८ िे १८७९ तक चेखव ने हाई स्कूल की तर्क्षा ली। * १८७९ िे
१८८४ तक चेखव ने मास्को के मेतिकल कालेज में तर्क्षा पूरी की
और िाक्टरी करने लगे।
* १८८० में चेखव ने अपनी पहली कहानी प्रकातर्त की और १८८४ में
इनका प्रथम कहानीिंग्रह तनकला।
* ९०१ में चेखव ने तवनप्पेर नामक अतर्नेत्री िे तववाह तकया। इनकी
पत्नी उि प्रगततर्ील तथयेटर की अतर्नेत्री थी जहााँ चेखव के अनेक
नाटकों का मंचन तकया गया था। *१९०४ में चेखव के नाटक 'चेरी के
पेडों का बाग' का प्रथम बार अतर्नय हुआ।

*१९०४ के जून में बीमारी (तपेतदक) जोर िे फैल जाने के कारण


चेखव इलाज के तलए जमभनी गए। वहीं बादे नवैलर नगर में इनका
स्वगभवाि हुआ। चेखव की िमाति मास्को में है ।
लेखन र्ैली
*मुख्य प्रकार् चररत्रों,िामातजक वगभ(स्तर),दे र्काल
और वातावरण
*अपने नाटकों में चमोत्कर्भ के प्रर्ाव की अतत महत्त्ता
को न्यून करते हुए परम्परागत नाटकों में होने वाली
चमोत्कर्भ की प्रिानता या महत्त्ता को कम तकया
*स्मृतत: पीडा और आनंद के स्रोत के रूप में
*परं परागत बनाम आिुतनक रुि
*यथाथभवाद का उदय
तवर्य वस्तु
• स्मृततयों िे िंघर्भ
1-चेरी का बगीचा में प्रकृतत दो रूपों में तवद्यमान है -व्यक्तिगत पहचान के रूप में और
तनाव अथवा दबाव के रूप में जो खुर्ी और आनंद में बािा बनती है ।
2-प्रत्येक पात्र स्मृतत िंघर्भ िे जुडा है ।महत्त्वपूणभ यह है तक िर्ी पात्र अपने जीवन के
कुछ अंर् को र्ुलाने के तलए िंघर्भरत हैं ।

• आिुतनकता बनाम परम्परागत रूि


1-उन्नीिवी िदी का िम्पूणभ रूिी िातहत्य परम्परागत रूि और आिुतनक रूि के
मूल्ों के बीच िंघर्भ की कथा है ।
2-आिुतनकता अथाभ त पाश्चात्य िंस्कृतत का प्रर्ाव।
3-गायेव और रै तनवस्क्. तथा लोपाक्तखन और त्रोतफमोव के बीच का द्वन्द्द्व पुराने िामंती
आदे र्ों और पतश्चमीकरण के बीच तववादों के प्रतीक िे रूप में स्पष्ट है ।

(एं तोन चेखव ने इि एक नाटक में तजि तवराट ऐततहातिक िचाई को पकडा है , वह
र्ायद बहुत बडे उपन्याि का तवर्य था। इिी िचाई के रे र्ों िे बुना चेरी का बगीचा
िमूचे दे र् का प्रतीक बन उठा है । चेरी के बगीचे की मालतकन श्रीमती रै तनकव्स्स्काया
अपने आप में ही िूबी है । आर्ा, तनरार्ा, िुख-दु ख की यह तनजी दु तनया बाहरी दबावों
में और र्ी तिकुडती चली जाती है , लेतकन इि कैद िे छूट कर बाहर आया एक छोटे -
तवख्यात रं गकमी रॉतबन दाि के तवचार
1-‘‘यह धरती हमारा ‘चेरी ऑचचर्च’ है और हमें मालू म है कि यह
धरती िुछ अकिवायच पररवतचि ों से गुजरिे जा रही है –
पयाचवरण िे कलहाज से भी, राजिीकति, सामाकजि और
भौकति कलहाज़ से भी।इि पररवतचि ों िे पररणाम किकित रूप
से बहुत सुखद िही ों ह ग
ों े।

2-इस िाटि िा हर पात्र जोंगल में ख ई किसी रूह-सा है


सुोंदर, आिर्चि… लेकिि ख या हुआ। आज 21वी ों सदी में हम
सब भी उसी तरह ख ए हुए ल ग हैं या किर अभी भी हमारे
पास किसी बेहतर िल िे किमाचण िा मौिा बचा है ?’’
ये बातें
चमोत्कर्भ

रै तनवस्काया: “क्या चेरी का बगीचा तबक गया”?

लोपाक्तखन: “हााँ ।”

रै तनवस्काया: “तकिने खरीदा?”

लोपाक्तखन: “मैंने”
प्रतीकवाद
• चेरी का बगीचा(
• प्रकृतत
Thee
मुख्य पात्र

• रै तनवस्काया चेरी के बगीचा की मालतकन


(
• “
?

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