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एं तोन चेखव
• व्यतकतवाद की महत्त्ता
• िुखद अंत
ऐततहातिक िंदर्भ 1850 के पश्चात
*यथाथभवाद
(एं तोन चेखव ने इि एक नाटक में तजि तवराट ऐततहातिक िचाई को पकडा है , वह
र्ायद बहुत बडे उपन्याि का तवर्य था। इिी िचाई के रे र्ों िे बुना चेरी का बगीचा
िमूचे दे र् का प्रतीक बन उठा है । चेरी के बगीचे की मालतकन श्रीमती रै तनकव्स्स्काया
अपने आप में ही िूबी है । आर्ा, तनरार्ा, िुख-दु ख की यह तनजी दु तनया बाहरी दबावों
में और र्ी तिकुडती चली जाती है , लेतकन इि कैद िे छूट कर बाहर आया एक छोटे -
तवख्यात रं गकमी रॉतबन दाि के तवचार
1-‘‘यह धरती हमारा ‘चेरी ऑचचर्च’ है और हमें मालू म है कि यह
धरती िुछ अकिवायच पररवतचि ों से गुजरिे जा रही है –
पयाचवरण िे कलहाज से भी, राजिीकति, सामाकजि और
भौकति कलहाज़ से भी।इि पररवतचि ों िे पररणाम किकित रूप
से बहुत सुखद िही ों ह ग
ों े।
लोपाक्तखन: “हााँ ।”
लोपाक्तखन: “मैंने”
प्रतीकवाद
• चेरी का बगीचा(
• प्रकृतत
Thee
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