कक्षा १० MANUSHYATA

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ह िं दी -2

कहि – मैहिलीशरण गुप्त


जन्म - झ ाँ सी (हिरग ाँ ि)
1886 में झ ाँ सी के करीब हिरग ाँ ि में जन्मे मैहिलीशरण गुप्त अपने
जीिनक ल में ी र ष्ट्रकहि के रूप में हिख्य त हुए। इनकी हशक्ष
दीक्ष घर पर ी हुई। सिंस्कृत, ब िं ग्ल , मर ठी और अिंग्रेजी पर
इनक सम न अहिक र ि ।
गुप्त जी र मभक्त कहि ैं । र म क कीहतिग न उनकी
हिरसिंहित अहभल ष र ी। इन्हिंने भ रतीय जीिन कह समग्रत में
समझने और प्रस्तुत करने क भी प्रय स हकय ।
भ ष पर सिंस्कृत क प्रभ ि ै । क व्य की कि िस्तु भ रतीय
इहत स के ऐसे अिंशहिं से ली गई ै जह भ रत के अतीत क स्वणि हित्र
प ठक के स मने उपस्थित करते ैं ।
गुप्त जी की प्रमुख कृहतय ाँ ैं – स केत, यशहिर , जयद्रि िि।
प्रकृति के अन्य प्रातिय ों की िुलना में मनुष्य में चेिना- शक्ति

की प्रबलिा ह िी ही है । वह अपने ही नही ों और ों के के

तहिातहि का भी खयाल रखने में, और ों के तलए भी कुछ कर

सकने में समर्थ ह िा है । पशु चरागाह में जािे हैं , अपने-अपने

तहस्से का चर आिे हैं । पर मनुष्य ऐसा नही ों करिा। वह ज

कमािा है । ज भी कुछ उत्पातिि करिा है , वह और ों के तलए

भी करिा है , औोंर ों के सहय ग से करिा है ।


प्रस्तुि पाठ का कतव अपन ों के तलए जीन-मरने वाल ों क

मनुष्य ि मानिा है लेतकन यह मानने क िैयार नही ों है तक

ऐसे मनुष्य ों में मनुष्यिा के पूरे-पूरे लक्षि भी हैं । वह ि उन

मनुष्य ों क ही महान मानेगा तजनमें अपने और अपन ों के

तहि तचोंिन से कही ों पहले और सवोपरर िूसर ों का तहि तचोंिन

ह । उसमें वे गुि ह ों तजनके कारि क ई मनुष्य इस

मृत्यूल क से गमन कर जाने के बावजूि युग ों िक और ों की

याि ों में भी बना रह पािा है । उनकी मृत्यू भी सुमृत्यु ह जािी

है । आक्तखर क्या हैं व गुि?


हिि र लह हक मर्त्ि ह न मृर्त्ु से डरह कभी,
मरह, परिं तु यहिं मरह हक य द जह करें सभी।
हुई न यहिं सुमृर्त्ु तह िृि मरे , िृि हजए,
मर न ीिं ि ी हक जह हजय न आपके हलए।
ि ी पशु-प्रिृहि ै हक आप आप ी िरे ,
ि ी मनुष्य ै हक जह मनुष्य के हलए मरे ॥
हिि र लह हक मर्त्ि ह न मृर्त्ु से डरह कभी,
मरह, परिं तु यहिं मरह हक य द जह करें सभी।
मर्त्ि – मृर्त्ु / मरणशील
यहिं – ऐसे
हुई न यहिं सुमृर्त्ु तह िृि मरे , िृ ि हजए,
मर न ीिं ि ी हक जह हजय न आपके हलए
िृि – बेक र
आपके – अपने हलऐ
ि ी पशु – प्रिृहि ै हक आप आप ी िरे ,
ि ी मनुष्य ै हक जह मनुष्य के हलए मरे ॥

पशु-प्रिृहि – ज निरहिं की
तर व्यि र
आप आप – केिल अपने हलए
प्रस्तुत कहित म री प ठ्य पुस्तक
‘स्पशि भ ग – 2’ से ली गई ै । इसके
कहि मैहिलीशरण गुप्त ैं । इन पिंस्क्तंिं
में कहि बत न ि त ैं हक मनुष्यहिं कह
कैस जीिन जीन ि ह ए।
कहि क त ै हक में य ज न लेन ि ह ए हक मृर्त्ु
से न ीिं डरन ि ह ए। में कुछ ऐस करन ि ह ए हक
लहग में मरने के ब द भी य द रखे। उनक जीन और
मरन दहनहिं बेक र ै जह मनुष्य दू सरहिं के हलए कुछ भी
न कर सकें।
मर कर भी ि मनुष्य कभी न ीिं मरत जह अपने हलए
न ीिं दू सरहिं के हलए जीत ै , क्हिंहक अपने हलए तह
ज निर भी जीते ैं । कहि के अनुस र मनुष्य ि ी ै जह
दु सरे मनुष्यहिं के हलए मरे अि ि त जह मनुष्य दू सरहिं की
हििंत करे ि ी असली मनुष्य क ल त ै ।
उसी उद र की कि सरस्वती बख नती,
उसी उद र से िर कृत िि भ ि म नत ।
उसी उद र की सद सजीि कीहति कूजती,
ति उसी उद र कह समस्त सृहष्ट् पूजती।
अखिंड आत्म भ ि जह असीम हिश्व में भरे ,
ि ी मनुष्य ै हक जह मनुष्य के हलए मरे ॥
उसी उद र की कि सरस्वती बख नती,
उसी उद र से िर कृत िि भ ि म नत ।
उद र – म न, श्रेष्ठ, द नशील,
बख नती – गुण ग न करन
िर – िरती
कृत िि – ऋणी , आभ री, िन्य
उसी उद र की सद सजीि कीहति कूजनी,
ति उसी उद र कह समस्त सृहष्ट् पूजती।
सजीि – जीहित
कीहति- यश
कूजती – करन , मिुर ध्वहन
करती
समस्त - पूरी, सभी
अखिंड आत्म भ ि जह असीम हिश्व में भरे ,
ि ी मनुष्य ै हक जह मनुष्य के हलए मरे ।

अखिंड – हजसके टु कडे न


हकए ज सकें
असीम - पुर
प्रस्तुत कहित म री प ठ्य पुस्तक ‘स्पशि
भ ग – 2’ से ली गई ै । इसके कहि
मैहिलीशरण गुप्त ै । इन पिंस्क्तंिं में कहि
बत न ि त ै हक जह मनुष्य दु सरहिं के
हलए जीते ैं उनक गुणग ण युगहिं – युगहिं
तक हकय ज त ै ।
कहि क त ै हक जह मनुष्य अपने पुरे जीिन में दू सरहिं
की हििंत करत ै उस म न व्यस्क्त की कि क गुण
ग न सरस्वती अि ि त पुस्तकहिं में हकय ज त ैं । पूरी
िरती उस म न व्यस्क्त की आभ री र ती ैं ।
उस व्यस्क्त की ब तिीत मेश जीहित व्यस्क्त की
तर की ज ती ै और पूरी सृहष्ट् उसकी पूज करती ैं ।
कहि क त ै हक जह व्यस्क्त पुरे सिंस र कह अखिंड
भ ि और भ ईि रे की भ िन में ब ाँ ित ै ि व्यस्क्त
स ी म यने में मनुष्य क ल ने यहग्य हत ै ।
क्षुि ति रिं हतदे ि ने हदय करथि ि ल भी,
ति दिीहि ने हदय पर िि अस्थिज ल भी।
उशीनर हक्षतीश ने स्वम िं स द न भी हकय ,
स षि िीर कणि ने शरीर-िमि भी हदय ।
अहनर्त् दे के हलए अन हद जीि क् डरे ?
ि ी मनुष्य ै हक जह मनुष्य के हलए मरें ॥
क्षुि ति रिं हतदे ि ने हदय करथि ि ल भी,
ति दिीहि ने हदय पर िि अस्थिज ल भी।
 क्षुि ति – भूख से परे श न
 रिं हतदे ि – एक परम द नी र ज
 करथि – ि की, ि में पकड
हुआ/हलय हुआ
 पर िि – पूर , जह दू सरहिं के हलए ह
 दिीहि – एक प्रहसद्ध ऋषी हजनकी
हियहिं से इिं द्र क व्रज बन ि
 अस्थिज ल – हियहिं क समू
उशीनर हक्षतीश ने स्वम िं स द न भी हकय ,
स षि िीर कणि ने शरीर-िमि भी हदय ।
उशीनर हक्षतीश – उशीनर(गिंि र)
दे श के र ज हशहब
स्वम िं स – अपने शरीर क म िं स
कणि – द न दे ने के हलए प्रहसद्ध
कुिंती पुत्र
स षि – खुशी से
शरीर िमि – शरीर क किि
अहनर्त् दे के हलए अन हद जीि क् डरे ?
ि ी मनुष्य ै हक जह मनुष्य के हलए मरें ॥

अहनर्त् दे – नश्वर शरीर


अन हद जीि – मनुष्य
प्रस्तुत कहित म री प ठ्य पुस्तक
‘स्पशि भ ग – 2’ से ली गई ै । इसके
कहि मैहिलीशरण गुप्त ैं । इन पिंस्क्तंिं
में कहि ने म न पुरुषहिं के उद रण
हदए ै हजनकी म नत के क रण उन्ें
य द हकय ज त ै ।
कहि क त ै हक पौर हणक कि ए ऐसे व्यस्क्तंिं के
उद रणहिं से भरी पडी ैं हजन्हिंने अपन पूर जीिन दू सरहिं के
हलए र्त् ग हदय हजस क रण उन्े आज तक य द हकय ज त
ै । भूख से परे श न रहतदे ि ने अपने ि की आखरी ि ली भी
द न कर दी िी और म हषि दिीहि ने तह अपने पुरे शरीर की
हिय ाँ िज्र बन ने के हलए द न कर दी िी।
उशीनर दे श के र ज हशहब ने कबूतर की ज न बि ने के हलए
अपन पूर म िं स द न कर हदय ि । कहि क न ि त ै हक
मनुष्य इस नश्वर शरीर के हलए क्हिं डरत ै क्हिंहक मनुष्य
ि ी क ल त ै जह दू सरहिं के हलए अपने आप कह र्त् ग दे त
ै।
स नुभूहत ि ह ए, म हिभूहत ै य ी,
िशीकृत सदै ि ै बनी हुई स्वयिं म ी।
हिरुद्धभ ि बुद्ध क दय -प्रि मे ब ,
हिनीत लहक िगि क् न स मने झुक र ?
अ ! ि ी उद र ै परहपक र जह करे
ि ी मनुष्य ै हक जह मनुष्य के हलए मरे ॥
स नुभूहत ि ह ए, म हिभूहत ै य ी,
िशीकृत सदै ि ै बनी हुई स्वयिं म ी ।
 स नुभूहत – दय , करुण
 म हिभूहत – सब से बडी
सिंम्पहत
 िशीकृत – िश में करने ि ल
 म ी – ईश्वर
हिरुद्धभ ि बुद्ध क दय -प्रि में ब ,
हिनीत लहक िगि क् न स मने झुक र ?
हिरुद्धभ ि – स्खल फ हन
हिरुद्धभ ि बुद्ध क दय -
प्रि में ब – बुद्ध ने
करुण िश उस समय की
प रिं प ररक म न्यत ंिं क
हिरहि हकय ि
अ ! ि ी उद र ै परहपक र जह करे ,
ि ी मनुष्य ै हक जह मनुष्य के हलए मरे ॥

उद र – दय लु
परहपक र – दू सरहिं पर हकय
गय उपक र
प्रस्तुत कहित म री प ठ्य पुस्तक
‘स्पशि भ ग – 2’ से ली गई ै । इसके
कहि मैहिलीशरण गुप्त ै । इन पिंस्क्तंिं
में कहि ने म त्म बुद्ध क उद रण
दे ते हुए दय , करुण कह सबसे बड
बत य ै ।
कहि क त ै हक मनुष्यहिं के मन में दय ि करुण
क भ ि हन ि ह ए, य ी सबसे बड िन ै । स्वयिं
ईश्वर भी ऐसे लहगह के स ि र ते ैं । इसक सबसे
बड उद रण म त्म बुद्ध ैं । हजनसे लहगहिं क दु :ख
न ीिं दे ख गय तह िे लहग कल्य ण के हलए दु हनय ाँ के
हनयमहिं के हिरुद्ध िले गए।
इसके हलए क् पूर सिंस र उनके स मने न ीिं झुकत
अि ि त उनके दय भ ि ि परहपक र करत ै ि ी
मनुष्य, मनुष्य क ल त ै जह मनुष्यहिं के हलए जीत ै
और मरत ै ।
1) ‘मनुष्यत ’ कहित में कहि ने हकन म न
व्यस्क्तयहिं क उद रण हदय ै और उनके म ध्यम
से क् सिंदेश दे न ि ै?
2) ‘मनुष्यत ’ कहित के म ध्यम से कहि ने हकन गुणहिं
कह अपन ने क सिंकेत हदय ै ? तकि-सह त उिर
हदहजए।
3) मैहिलीशरण गुप्त ने गििरह त जीिन हबत ने के
हलए क् तकि हदए ैं ?
4) मैहिलीशरण गुप्त ने उद र व्यस्क्त के क् -क्
लक्षण बत ए ैं ? स्पष्ट् कीहजए।
मनुष्यत कहित के आि र पर हकन्ीिं तीन
म निीय गुणहिं के ब रे में हलस्खए।
कहि ने दिीहि, कणि और रिं हतदे ि के न महिं क
उल्लेख करके में हकस ब त की प्रेरण दी ैं ?
मनुष्यत कहित में हकस व्यस्क्त कह उद र क
गय ै और उसक क् प्रभ ि बत य गय ैं ?
मनुष्यत कहित में व्यस्क्त कह हकस प्रक र क
जीिन व्यतीत करने की सल दी गई ैं ?
मनुष्यत कहित में कहि ने में परहपक र के हलए
कैसे प्रेररत हकय ै ?
कहि ने कैसी मृर्त्ू कह सुमृर्त्ु क ै?

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