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बहृ द ् पराशर होरा शास्तर्

पूर्वार्धम – अध्याय ३
ग्रहस्वरूपाध्यायः
(ग्रह परिचय)
अध्याय ३: श्लोक – १, २
ग्रहस्वरूपाध्यायः
पराशर जी बोले हे विप्र ! सूर्य काल पुरुष (उत्पन्न पुरुष) की आत्मा, चद्रमा मन,
पराशर उवाच –
मङ्गल सत्व, बुध वाणी है। ॥१॥
कालात्मा च दिवानाथो मनः कु मुदबान्धवः ।
गुरु ज्ञान और सुख एवं शुक्र बल के तथा शनि दुःख के स्वामी हैं। ॥२॥
सत्त्वं कु जो विजानीयाद् बुधो वाणीप्रदायकः ॥१॥

देवेज्यो ज्ञानसुखदो भृगुवीर्यप्रदायकः ।


विचार्यतामिदं सर्वं छायासूनुश्‍च दुःखद: ॥२॥
ग्रहों में जीवात्मादि तत्व
ग्रहस्वरूपाध्यायः

ग्रह कारकत्व
व्याख्या:
सूर्य आत्मा जो ग्रह जन्म समय मे बली हो तदनुसार जातक का वही गुण प्रबल होता है।
चंद्र मन
निर्बल होने से आत्मादि दुःख पर्यन्त तत्वों की निर्बलता समझनी चहिए।
मंगल सत्व (पराक्रम, शूरता)
लेकिन शनि के समबन्ध में विपरीत क्रम अपनाना चहिए। हीन बली
बुध वाणी
दुःखकारी तथा बली सुखकारी होता है। कल्याण वर्मा ने भी कहा है
गुरु ज्ञान व सुख 'विपरीतं शनेः समृतम्'।

शुक्र काम शक्ति (कामना)


शनि दु:ख
अध्याय ३: श्लोक – ३, ४
ग्रहस्वरूपाध्यायः
ग्रहों में सूर्य और चन्द्रमा राजा, मंगल नेता, बुध राजकु मार, गुरु और शुक्र मन्त्री है।
राजानौ भानुहिमगू नेता ज्ञेयो धरात्मजः ।
॥३॥
बुधो राजकु मारश्‍च सचिवौ गुरुभार्गवौ ॥३॥
शनि दास और सेना राहु तथा के तु है। इस प्रकार ग्रहों से विचार करना। ॥४॥

प्रेष्यको रविपुत्रश्च सेना स्वर्भानुपुच्छकौ ।


एवं क्रमेण वै विप्र । सुर्यादीनान्च विचिन्तयेत् ॥४॥
ग्रहों की पदवी
ग्रहस्वरूपाध्यायः

ग्रह कारकत्व
व्याख्या:
सूर्य राजा जो ग्रह अधिक बली हो उसी प्रकार की प्रवृत्ति व स्वभाव व्यक्ति का होता है।
चंद्र राजा (रानी)
मंगल सेनापति
बुध राजकु मार
गुरु सचिव (मन्त्रि)
शुक्र सचिव (मन्त्रि)
शनि सेवक, दास
राहु-के तु सेना
अध्याय ३: श्लोक – ५, ६
ग्रहस्वरूपाध्यायः
हे द्विज श्रेष्ठ ! सूर्य का श्यामल रक्तवर्ण, चद्रमा का गौरवर्ण, मङ्गल का ऊं चा शरीर
रक्तश्यामो दिवाधीशो गौर्गात्रो निशाकरः ।
और रक्तवर्ण, बुध का दुर्वा के समान श्यामवर्ण है। ॥५॥
अत्युच्चाङ्गो रक्तभौमो दूर्वाश्यामो बुधस्तथा ॥५॥
गुरु का गौरवर्ण, शुक्र का श्याम वर्ण और शनि का काला वर्ण है। ॥६॥

गौरगात्रो गुरुर्ज्ञेयः शुक्रः श्यामस्तथैव च ।


कृ ष्णदेहो रवैः पुत्रो ज्ञायते द्विजसत्तमः ॥६॥
ग्रहों का वर्ण (रंग)
ग्रहस्वरूपाध्यायः

ग्रह वर्ण (रंग) व्याख्या:


ये ग्रहों के नैसर्गिक वर्ण (शारीरिक रंग) है।
सूर्य श्यामल रक्तवर्ण शरीर (लाल)
चंद्र गौर (गोरा) वर्ण शरीर उपर्युक्त वर्णों के अतिरिक्त फलादेश, प्रश्‍न या नष्ट कु ण्डली निर्माण के प्रसंग
मे इनके वर्णाधिपत्य का विचार आवश्‍यक है।
मंगल रक्तवर्ण और ऊं चा शरीर (चटकीला लाल)
बुध दुर्वा के समान श्यामवर्ण शरीर (हरेपन से युक्त) इस स्थिति मे सूर्य ताम्र वर्ण का, चन्द्रमा श्‍वेत, मंगल लाल, बुध हरा, गुरु
पीला रंग का, शुक्र कर्बुर रंग (चितकबरा) तथा शनि काले रंग का स्वामी
गुरु गौर (गोरा) वर्ण शरीर होता है।
शुक्र श्यामवर्ण (श्यामल) शरीर
शनि काला वर्ण शरीर
अध्याय ३: श्लोक – ७
ग्रहस्वरूपाध्यायः
सूर्य के अग्नि, चन्द्रमा के जल, भौम के स्वामी कर्तिक, बुध के विष्णु, गुरु के इन्द्र,
बह्न्यम्बुशिखिजा विष्णुर्विडौजशचिका द्विज ।
शुक्र के इन्द्राणी और शनि के ब्रह्मा स्वामी है। ॥७॥
सूर्यादीनां खगान्च नाथा: ज्ञेया क्रमेण च ॥७॥
ग्रहों के स्वामी देवता
ग्रहस्वरूपाध्यायः

ग्रह ग्रह स्वामी (देवता)


सूर्य अग्नि देव
चंद्र जल
मंगल स्वामी कार्तिक
बुध विष्णु
गुरु इन्द्र देव
शुक्र इन्द्राणी
शनि ब्रह्मा
अध्याय ३: श्लोक – ८
ग्रहस्वरूपाध्यायः
बुध और शनि ये नपुंसक, चन्द्रमा और शुक्र स्त्री ग्रह और शेष सूर्य, भौम और गुरु
क्लीबौ द्वौ सौम्यसौरी च युवतीन्दुभृगुर्द्विज ।
ये पुरुष ग्रह है। ॥८॥
नराः शेषाश्‍च विज्ञेया भानुर्भौमो गुरुस्तथा ॥८॥
ग्रहों का स्त्री-पुरूष संज्ञा
ग्रहस्वरूपाध्यायः
ग्रह संज्ञा ग्रह
पुरूष सूर्य, मंगल, गुरु
स्त्री चन्द्र, शुक्र
नपुंसक बुध, शनि
अध्याय ३: श्लोक – ९
ग्रहस्वरूपाध्यायः
भौमादि ग्रहों मे क्रम से अग्नि, भूमि, आकाश, जल, वायु ये तत्व हैं। ॥९॥
अग्‍निभूमिनभस्तोयवायवः क्रमतो द्विज ।
भौमादीनां ग्रहाणां च तत्त्वाश्‍चामी प्रकीर्त्तिताः ॥९॥
ग्रहों की पंचतत्व संज्ञा (प्रकृ ति)
ग्रहस्वरूपाध्यायः
पंचतत्व संज्ञा ग्रह
अग्‍नि तत्व सूर्य, मंगल
पृथ्वी (भुमि) तत्व बुध
जल तत्व चन्द्र, शुक्र
वायु तत्व शनि
आकाश तत्व गुरु
अध्याय ३: श्लोक – १०
ग्रहस्वरूपाध्यायः
गुरु, शुक्र का ब्राह्मण वर्ण, भौम, सूर्य का क्षत्रिय वर्ण, चन्द्रमा, बुध का वैश्य वर्ण
गुरुशुक्रौ विप्रवर्णौ कु जार्कौ क्षत्रियौ द्विज ।
और शनि का शूद्र वर्ण है। ॥१०॥
शशिसौम्यो वैश्यवर्णौ शनिः शूद्रौ द्विजोत्तम ॥१०॥
ग्रहों का वर्ण संज्ञा
ग्रहस्वरूपाध्यायः
वर्ण संज्ञा ग्रह
ब्राह्मण वर्ण (ज्ञानी, पंडित) गुरु, शुक्र
क्षत्रिय वर्ण (योद्धा) सूर्य, मंगल
वैश्य वर्ण (व्यापारी) चन्द्र, बुध
शूद्र वर्ण (निम्न वर्ण) शनि
चान्डाल राहु
वर्ण शंकर के तु
अध्याय ३: श्लोक – ११
ग्रहस्वरूपाध्यायः
चन्द्र, सूर्य, गुरु इनका सतोगुणी स्वभाव, बुध, शुक्र का रजोगुणी स्वभाव और
चन्द्रसूर्यगुरुसौम्या भृग्वारशनयो द्विज ।
भौम, शनि का तमोगुणी स्वभाव है। ॥११॥
सत्त्वं रजस्तम इति स्वभावो ज्ञायते क्रमात् ॥११॥
ग्रहों की त्रिगुण संज्ञा
ग्रहस्वरूपाध्यायः
त्रिगुण संज्ञा ग्रह
सतोगुण (सत्व गुण) सूर्य, चन्द्र, गुरु
रजोगुण (रजस गुण) बुध, शुक्र
तमोगुण (तमस गुण) मंगल, शनि
अध्याय ३: श्लोक – १२
ग्रहस्वरूपाध्यायः
सूर्य ग्रह – मधु के सदृष्य पीले नेत्रो वाला, चौखूटा शरीर, स्वच्छ कन्ति वाल,
मधुपिङ्गलदृक्सूर्यश्‍चतुरस्त्रः शुचिर्द्विजः ।
पित्त प्रकृ ति, दर्शनीय, पुरुष ग्रह, थोडे बालों से युक्त स्वरूप वाला है। ॥१२॥
पित्तप्रकृ तिको श्रीमान् पुमानल्पकचो द्विज ॥१२॥
अध्याय ३: श्लोक – १३
ग्रहस्वरूपाध्यायः
चन्द्रमा ग्रह – वायु और कफ से युक्त, बुद्धिमान, गोल शरीर, सुन्दर नेत्र, मीठे
बहुवातकफः प्राज्ञश्‍चन्द्रो वृत्ततनुर्द्विज ।
वचन बोलने वाला, चंचल और कामी है। ॥१३॥
शुभदृङ्मधुवाक्यश्‍च चन्चलो मदनातुरः ॥१३॥
अध्याय ३: श्लोक – १४
ग्रहस्वरूपाध्यायः
भौम (मंगल) ग्रह – क्रू र स्वभाव, रक्तवर्ण की दृष्टि, चपल, उदार स्वभाव, पित्त
क्रू ररक्ते क्षणो भौमश्‍चपलोदारमूर्तिकः ।
प्रकृ ति, क्रोधी, पतले मध्यम कद का शरीर वाला है। ॥१४॥
पित्तप्रकृ तिकः क्रोधी कृ शमध्यतनुर्द्विजः ॥१४॥
अध्याय ३: श्लोक – १५
ग्रहस्वरूपाध्यायः
बुध – सुन्दर शरीर, तोतली बोली वाला, अत्यन्त हास्यप्रिय, पित्त-कफ-वायु से
वपुः श्रेष्ठो श्लिष्टवाक्य ह्यतिहास्यरुचिर्बुधः ।
युक्त प्रकृ ति वाला है।
पित्तवान कफवान् विप्र मारुतप्रकृ तिकस्तथा ॥१५॥ ॥१५॥
अध्याय ३: श्लोक – १६
ग्रहस्वरूपाध्यायः
गुरु ग्रह – लम्बा शरीर, शिर के पीले के श और दृष्टि वाला, कफ प्रकृ ति, बुद्धिमान्,
बृहद्रात्रो गुरुश्‍चैव पिङ्गलो मुर्धजेक्षणः ।
सभी शास्त्रों का जानने वाला है। ॥१६॥
कफप्रकृ तिको धीमान् सर्वशास्त्रविशारदः ॥१६॥
अध्याय ३: श्लोक – १७
ग्रहस्वरूपाध्यायः
शुक्र ग्रह – सुन्दर शरीर, सुखी, अच्छे सुन्दर नेत्रों वाला, कविता करने वाला,
सुखी कान्तवपुः श्रेष्ठः सुलोचनो भृगोः सुतः ।
कफ-वायु मिश्रित प्रकृ ति, घुंघराले बालों वाला है। ॥१७॥
काव्यकर्त्ता कफाधिक्यानिलात्मा वक्रमूर्धजः ॥१७॥
अध्याय ३: श्लोक – १८
ग्रहस्वरूपाध्यायः
शनि ग्रह – दुर्बल, लम्बा शरीर, पीले नेत्र, वायु प्रकृ ति, मोटे दांत, आलसी, पंगु,
कृ शदीर्घतनुः सौरिः पिङ्गदृष्ट्यनिलात्मकः ।
रूखे रोम और बालों वाला है। ॥१८॥
स्थूलदन्तोअलसो पङ्गुः खररोमकचो द्विज ॥१८॥
अध्याय ३: श्लोक – १९
ग्रहस्वरूपाध्यायः
धूएं के सदृश वर्ण, नीले रंग का शरीर, जंगल के रहने वाला, भयंकर, वायु प्रकृ ति
धूम्राकारो नीलतनुर्वनस्थोअपि भयङ्करः ।
और बुद्धिमान् है। के तु का स्वरूप भी राहु के समान ही है। ॥१९॥
वातप्रकृ तिको धीमान् स्वर्भानुः शिखी ॥१९॥
अध्याय ३: श्लोक – २०
ग्रहस्वरूपाध्यायः
सूर्य आदि ग्रह क्रम से अस्थि (हड्डी), रक्त, मज्जा, त्वक (चर्म), वसा, वीर्य, स्‍नायु
अस्थिररक्तस्तथा मज्जा त्वक्‍वसावीर्यस्‍नायवः ।
(नस) के स्वामी है।॥१९॥
तासामीशा क्रमेणोक्ता ज्ञेयाः सूर्यादयो द्विज ॥२०॥
ग्रहों की शारीरिक धातु
ग्रहस्वरूपाध्यायः

ग्रह शरीर धातु सूर्य हड्डियों का अधिपति है। चन्द्रमा खून का मंगल मज्जा का, बुध खाल
सूर्य अस्थि (हड्डी) (त्वचा का), गुरु मेद (चर्बी का), शुक्र वीर्य का तथा शनि नाडियों, नसों व
स्‍नायु तन्त्र का अधिपति है।
चन्द्र रक्त
मंगल मज्जा (मांस पेशीयॉं) जन्म के समय जो ग्रह बली हो, जिसकी लग्‍न या लग्नेश पर दृष्टी हो, उन सब
बुध त्वचा (चर्म, खाल) ग्रहों के बलाबल के आधार पर मनुष्य की प्रधान धातु का निर्णय किया जाता
है।
गुरु वसा (मेद, चर्बी)
शुक्र वीर्य
शनि स्‍नायुतन्त्र, नाडियों, नसों पर
अध्याय ३: श्लोक – २१
ग्रहस्वरूपाध्यायः
सूर्य आदि ग्रह के क्रम से देवालय, जलाशय, अग्निस्थान, क्रीडास्थान, कोश
देवालय-जलं वह्निक्रीडादीनां तथैव च ।
(खजाना), शय्या स्थान, उसर भूमि ये स्थान हैं। ॥२१॥
कोशशय्या ह्युत्करणामीशाः सूर्यादयः क्रमात् ॥२१॥
ग्रहों का भूमि पर स्थान अधिपत्य
ग्रहस्वरूपाध्यायः
ग्रह स्थान
सूर्य देवालय
चन्द्र जलाशय
मंगल अग्निस्थान
बुध क्रीडास्थान
गुरु कोश (खजाना), धन
शुक्र शय्या स्थान
शनि उसर (बंजर) भूमि
अध्याय ३: श्लोक – २२
ग्रहस्वरूपाध्यायः
सूर्य आदि ग्रह क्रम से अयन, क्षण (मुहूर्त), वासर (दिन), ऋतु, मास, पक्ष, वर्ष
अयनक्षणवासरर्तुमासपक्षसमा द्विज ।
के स्वामी है। ॥२२॥
सूर्यादीनां क्रमाज्ज्ञेया निर्विशङ्क द्विजोत्तमम् ॥२२॥
ग्रहों का काल (समय) अधिपत्य
ग्रहस्वरूपाध्यायः

ग्रह काल (समय, ऋतु) व्याख्या:


सूर्य अयन सूर्य अयन का अधिपति है, चद्रमा मुहूर्त का, मंगल दिन का, बुध ऋतु
का, शुक्र पक्ष का तथा शनि संवत् का अधिष्ठाता है। आशय यह है कि घटी
चन्द्र क्षण (मुहूर्त) पलात्मक सूक्ष्म समय विभाग को सम्मिलित किए बिना, स्थूल रूप से
मंगल वासर (दिन) काल के सात खण्ड अयनादिक वर्षादिक होते हैं। उनमें सातों प्रमुख ग्रहों
बुध ऋतु का अधिपत्य उपर्युक्त प्रकार से समझना चहिए।
गुरु मास
शुक्र पक्ष
शनि वर्ष (संवत्)
अध्याय ३: श्लोक – २३
ग्रहस्वरूपाध्यायः
सूर्य आदि ग्रह क्रम से कटु, लवण, तिक्त, मिश्रित, मधुर, खट्टा और कसैला ये रस
कटुलवणतिक्तमिश्र मधुरश्‍च कषायकाः ।
है। ॥२३॥
क्रमेण सर्वे विज्ञेया सूर्यादीनां द्विजोत्तम ॥२३॥
ग्रहों का रसों (स्वाद) पर अधिपत्य
ग्रहस्वरूपाध्यायः
ग्रह रस (स्वाद)
सूर्य कटु (कडवा)
चन्द्र लवण (नमक)
मंगल तिक्त (तीखा)
बुध मिश्रित
गुरु मधुर (मीठा)
शुक्र खट्टा
शनि कसैला (कच्चे फल का स्वाद)
अध्याय ३: श्लोक – २४
ग्रहस्वरूपाध्यायः
बुध और गुरु पूर्व दिशा (लग्‍न में), सूर्य और भौम दक्षिण दिशा (दशम भाव में),
बुधेज्यौ बलिनौ पूर्वे रविभौमो च दक्षिणे ।
शनि पश्चिम (सप्तम भाव में), शुक्र और चन्द्रमा उत्तर (चतुर्थ भाव में) बली होते
वारुणे सूर्यपुत्रश्च सितचन्द्रौ तथोत्तरे ॥२४॥ है। ॥२४॥
ग्रहों का दिगबल (दिशा) बल
ग्रहस्वरूपाध्यायः

दिशा बल भाव ग्रह


पूर्व दिशा लग्न भाव बुध और गुरु
दक्षिण दिशा दशम भाव सूर्य और मंगल
पश्चिम दिशा सप्तम भाव शनि
उत्तर दिशा चतुर्थ भाव शुक्र और चन्द्रमा
अध्याय ३: श्लोक – २५
ग्रहस्वरूपाध्यायः
चन्द्रमा, भौम, शनि ये रात में बली, बुध दिन-रात्रि दोनों मे बली और सूर्य, गुरु,
निशायां बलिनश्चन्द्रकु जसौरा भवन्ति हि ।
शुक्र दिन में बली होते हैं। ॥२५॥
सर्वदा ज्ञौ बली ज्ञेयो दिनशेषा द्विजोत्तम ॥२५॥
दिवाबली और रात्रिबली ग्रह
ग्रहस्वरूपाध्यायः

दिवा-रात्रि ग्रह बल ग्रह


दिवाबली सूर्य, गुरु, शुक्र
रात्रिबली चन्द्रमा, मंगल, शनि
दिवा-रात्रि बली बुध
अध्याय ३: श्लोक – २६
ग्रहस्वरूपाध्यायः
कृ ष्णपक्ष में पाप ग्रह और शुक्लपक्ष में शुभ ग्रह बली होते हैं। उत्तरायण में शुभग्रह
कृ ष्णे च बलिनः क्रू राः सौम्याः विर्ययुता सिते ।
और दक्षिणायन में पापग्रह बली होते है।॥२६॥
सौम्यायने सौम्यखेटो बली याम्यायनेअपरः ॥२६॥
ग्रह पक्षबल
ग्रहस्वरूपाध्यायः

ग्रह पक्ष बल ग्रह प्रकार ग्रह व्याख्या :


सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु (बृहस्पति), शुक्र (शुक्राचार्य), शनि,
शुक्लपक्ष बली ग्रह शुभ ग्रह पूर्ण चन्द्र, गुरु, पापसंगरहित बुध, शुक्र राहु व के तु, ये नौ ग्रह होते है।
कृ ष्णपक्ष बली ग्रह पाप ग्रह क्षीण चन्द्र, के तु, शनि, राहु, मंगल, सूर्य
अपने शील व स्थिति के आधार पर इनमें शुभ व पाप ग्रहों का
विभाग है; जैसे - क्षीण चन्द्र, के तु, शनि, राहु, मंगल और सूर्य ये
पाप ग्रह हैं। यदि बुध पाप ग्रह से युक्त हो तो पाप ग्रह माना जात है।

पूर्ण चन्द्र, गुरु, पापसंगरहित बुध, तथा शुक्र ये सौम्य ग्रह होते है।
ग्रह अयन बल
ग्रहस्वरूपाध्यायः

ग्रह पक्ष बल ग्रह प्रकार ग्रह व्याख्या :


क्षीण चन्द्र, के तु, शनि, राहु, मंगल और सूर्य ये पाप ग्रह हैं। यदि
उत्तरायन बली ग्रह शुभ ग्रह पूर्ण चन्द्र, गुरु, पापसंगरहित बुध, शुक्र बुध पाप ग्रह से युक्त हो तो पाप ग्रह माना जात है।
दक्षिणायन बली ग्रह पाप ग्रह क्षीण चन्द्र, के तु, शनि, राहु, मंगल, सूर्य
पूर्ण चन्द्र, गुरु, पापसंगरहित बुध, तथा शुक्र ये सौम्य (शुभ) ग्रह
होते है।
अध्याय ३: श्लोक – २७
ग्रहस्वरूपाध्यायः
जो ग्रह जिस दिन का, वर्ष का, होरा का और मास का स्वामी होता है वह अपने
स्वदिवससमहोरामासपैः कालवीर्यकम् ।
दिन, वर्ष, होरा, मास मे बली होता है।
शकु बुगुशुचरद्या बुध्दितो वीर्यवत्तराः ॥२७॥
शनि, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, चन्द्र और सूर्य यथोत्तत बली होते हैं। अर्थात् शनि
से भौम, भौम से बुध, बुध से गुरु, गुरु से शुक्र, शुक्र से चन्द्रमा और चन्द्र से सूर्य
बली होत्त है। ॥२७॥

सूर्य > चन्द्र > शुक्र > गुरु > बुध > मंगल > शनि

विशेष:
सभी ग्रहों मे शनि वृद्ध (निर्बल) है किन्तु निसर्ग आयु साधन मे बहुत वर्ष को देता
है।
अध्याय ३: श्लोक – २८, २९
ग्रहस्वरूपाध्यायः
स्थूल (विशाल, भारी) वृक्षों का कारक सूर्य है। दुष्ट वृक्षों का कारक शनि, दूधवाले
स्थूलाञ् जनयति सूर्यो दुर्भगान् सूर्यपुत्रकः ।
वृक्षों का कारक चन्द्रमा, कॉंटेवाले वृक्षों का कारक भौम है। ॥२८॥
क्षीरोपेतांस्तथा चन्द्रः कण्टकाद्यान् धरासुतः ॥२८॥
फल वाले वृक्षों का कारक गुरु व बुध, फू ल वाले वृक्षों का कारक शुक्र और नीरस
वृक्षों का कारक शनि है। ॥२९॥
गुरुज्ञौ सफलान् विप्र पुष्पवृक्षान् भृगोः सुतः ।
नीरसान् सूर्यपुत्रश्‍च एमं ज्ञेया खगाः द्विज ॥२९॥
वृक्षों के कारक ग्रह
ग्रहस्वरूपाध्यायः
कारक ग्रह वृक्ष का प्रकार
सूर्य स्थूल (विशाल, भारी) वृक्ष
चन्द्र दूधवाले वृक्ष
मंगल कॉंटेवाले वृक्ष
बुध फलवाले वृक्ष
गुरु फलवाले वृक्ष
शुक्र फू लवाले वृक्ष
शनि दुष्ट व नीरस वृक्ष
अध्याय ३: श्लोक – ३०
ग्रहस्वरूपाध्यायः
राहु की चान्डाल जाति और के तु वर्णशंकर जाति का है। के तु, राहु और शनि का
राहुश्‍चाण्डालजातिश्‍च के तुर्जात्यन्तरस्तथा ।
वल्मीक (बिमौट) स्थान है। ॥३०॥
शिखिस्वर्भानुमन्दामं वल्मीकं स्थानमुच्यते ॥३०॥
अध्याय ३: श्लोक – ३१
ग्रहस्वरूपाध्यायः
अनेक रंग के कपड़ों से कथरी (गुदरी) राहु का और के तु का छेदों से युक्त वस्त्र है।
चित्रकन्था फणीन्द्रस्य के तोश्छिद्रयुतो द्विज ।
राहु का शीशा और के तु का नीलमणी धातु है।॥३१॥
सीसं रहोर्नीलमणिः के तोर्ज्ञेयो द्विजोत्तम ॥३१॥
अध्याय ३: श्लोक – ३२, ३३
ग्रहस्वरूपाध्यायः
गुरु का पीताम्बर, शुक्र का रेशमी वस्त्र, सूर्य का लाल रंग का रेशमी, चन्द्रमा का
गुरोः पीताम्बरं विप्र ! भृगोः क्षौमं तथैव च ।
श्वेत रेशमी वस्त्र है।॥३२॥
रक्तक्षौमं भास्करस्य इन्दोः क्षौमं सितं द्विज ॥३२॥
बुध का काले रंग का, भौम का लाल रंग का वस्त्र और शनि का चित्रवर्ण पट्टवस्त्र
है। ॥३३॥
बुधस्य तु कृ ष्णक्षौमं रक्तवस्त्रं कु जस्य च।
वस्त्रं चित्रं शनेर्विप्र ! पत्तवस्त्रं तथैव च ॥३३॥
ग्रहों का वस्त्रों पर कारकत्व
ग्रहस्वरूपाध्यायः
ग्रह वस्त्र धातु स्थान जाति
सूर्य लाल रंग का रेशमी वस्त्र देवालय क्षत्रिय
चन्द्र श्वेत रेशमी वस्त्र जलाशय वैश्य
मंगल लाल रंग का वस्त्र अग्निस्थान क्षत्रिय
बुध काले रंग का वस्त्र क्रीडास्थान वैश्य
गुरु पीताम्बर वस्त्र कोश (खजाना), धन स्थान ब्राह्मण
शुक्र रेशमी वस्त्र शय्या स्थान ब्राह्मण
शनि चित्रवर्ण पट्टवस्त्र वल्मीक (बिमौट)
राहु अनेक रंग के कथरी (गुदरी) शीशा वल्मीक (बिमौट) चान्डाल
कपड़े
के तु छेदों से युक्त वस्त्र नीलमणी वल्मीक (बिमौट) वर्णशंकर
अध्याय ३: श्लोक – ३४, ३५
ग्रहस्वरूपाध्यायः
शुक्र की वसन्तऋतु, भौम और रवि की ग्रिष्मऋतु, चन्द्रमा की वर्षा ऋतु, बुध की
भृगोर्ऋ तुवसन्तश्‍च कु जभान्वोश्‍च ग्रीष्मकः ।
शरद् ऋतु है ॥॥३४॥
चन्द्रस्य वर्षा विज्ञेया शरच्चैव तथा विदः ॥३४॥
गुरु की ह्र्मन्त ऋतु और शनि की शिशिर ऋतु है। राहु का ८ मास और के तु का ३
मास है। ॥३५॥
हेमन्तोऽप्रि गुरोर्ज्ञेयः शनेस्तु शिशिरो द्विज ।
अष्टौ मासाशच स्वर्भानोः के तोर्मासत्रयं द्विज ! ॥३५॥
ग्रहों की ऋतु

ऋतु ग्रह
ग्रीष्म सूर्य, मंगल, राहु सूर्य, मंगल तथा राहु की ग्रीष्म ऋतु है। चन्द्रमा की वर्षा ऋतु, बुध की शरद, गुरु की
हेमन्त, शुक्र की वसन्त एवं शनि की शिशिर ऋतु होती है।
वर्षा चन्द्र
शरद बुध प्रश्न लग्न या नष्ट लग्न के समय जो द्रेष्काण हो उसी के अधिपति ग्रह की ऋतु से
हेमन्त गुरु प्रश्नकर्ता की कार्य सिद्धि का समय अथवा उसकी जन्म ऋतु आदि का परिज्ञान किया
जात है।
वसन्त शुक्र
शिशिर शनि
अध्याय ३: श्लोक – ३६, ३७
ग्रहस्वरूपाध्यायः
राहु, भौम (मंगल), शनि और चन्द्रमा धातु के स्वामी, सूर्य-शुक्र मूल के स्वामी
राह्वारपङ्गुचन्द्राश्च विज्ञेया धातुखेचराः ।
और शेष बुध, गुरु, के तु जीव के स्वामी है। ॥३६॥
मूलग्रहौ सूर्यशुक्रौ अपरा जीवसंज्ञकाः ॥३६॥
सभी ग्रहों में शनि वृद्ध (निर्बल) है किन्तु निसर्ग आयु साधन करने में बहुत वर्ष को
देता है । ॥३७॥
ग्रहेषु मन्दो वृद्धोऽस्ति आयुर्वृद्धिप्रदायकः ।
नैसर्गिके बहुसमान् ददाति द्विजसत्तम ॥३७॥
ग्रहों का धातु, मूल और जीव पर अधिपत्य
ग्रहस्वरूपाध्यायः

तत्व स्पष्टीकरण ग्रह


धातु जमीन के ऊपर की वस्तु या पदार्थ चन्द्र, मंगल, शनि, राहु
मूल जमीन के नीचे की वस्तु, जड़, खेती , फसल सूर्य, शुक्र
जीव प्राण शरीर धारी गुरु, के तु
अध्याय ३: श्लोक – ३८, ३९
ग्रहस्वरूपाध्यायः
मेष, वृष, मकर, कन्या, कर्क , मीन, तुला राशियों में १०, ३, २८, १५, ५,
ग्रहाणामुच्चनीचमाह –
२७, २० अंश सूर्यादि ग्रहों (सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि) के उच्च
अजो वृषो मृगः कन्या कु लीरझषतौलिकाः । होते है। ॥३८॥
सूर्यादीनां क्रमादेतास्तुङ्गसंज्ञा प्रकिर्त्तिताः ॥३८॥
और अपने उच्च राशि से सातवीं राशि में उतने ही अंश तक नीच होता है। ॥३९॥

दिग्‍गुणाष्टयमा भागा तिथिभूतर्क्षन्खा समा ।


स्वोच्चात्सप्तमभं नीचं पूर्वोक्तांशैः प्रकीर्तितम् ॥३९॥
ग्रहों की उच्च और नीच राशि तथा अंश
ग्रह उच्च राशि अंश नीच राशि
सूर्य मेष १०॰ तुला
चन्द्र वृष ३॰ वृश्चिक
मंगल मकर २८॰ कर्क
बुध कन्या १५॰ मीन
गुरु कर्क ५॰ मकर
शुक्र मीन २७॰ कन्या
शनि तुला २०॰ मेष

मेष, वृष, मकर, कन्या, कर्क , मीन, तुला राशियों में १०॰, ३॰, २८॰, १५॰, ५॰, २७॰, २०॰ अंश
सूर्यादि ग्रहों (सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि) के उच्च होते है। और ग्रह अपने उच्च राशि से सातवीं
राशि में उतने ही अंश तक नीच होता है।
अध्याय ३: श्लोक – ४०, ४१, ४२, ४३
ग्रहस्वरूपाध्यायः
ग्रहाणां मूलत्रिकोणमाह – सूर्य का सिंह राशि में २०॰ अंश तक मूल त्रिकोण है, शेष १०॰ अंश स्वराशि है।
चन्द्रमा का वृष राशि के आरम्भ से ३॰ अंश तक उच्च है, इसके बाद के अंश मूल
विंशतिरंशाः सिंहे कोणमपरे स्वभवनमर्क स्य । त्रिकोण हैं। ॥४०॥
उच्चं भ्हगत्रितयं वृषमिन्दोः शेषांशाः स्युस्त्रिकोणकाः ॥४०॥
भौम (मंगल) का मेष राशि में १२॰ अंश तक मूल त्रिकोण है शेष अंश स्वराशि है। बुध
द्वादशभागा मेषे त्रिकोणमपरे स्वभं तु भौमस्य । का कन्या राशि मे १५॰ अंश तक उच्च इसके बाद ५॰ अंश तक मूल त्रिकोण और शेष
उच्चफलं च कन्यायां बुधस्य तिथ्यंशकैः सदा भवेत् ॥४१। अंश स्वराशि है। ॥४१॥

ततस्त्रिकोणजाते पञ्‍चभिरंशैः स्वराशिजं परतः । गुरु का धनु राशि मे १०॰ अंश तक मूलत्रिकोण तथा शेष अंश स्वराशि है। ॥४२॥
दशभिर्भागैर्जीवस्य त्रिकोणफलं स्वयं परं चापे ॥४२॥
तुला राशि में १५॰ अंश तक शुक्र का मूलत्रिकोण और शेष अंश स्वराशि है। कु म्भ राशि
शुक्रस्य तु तिथयोंऽशास्त्रिकोणमपरे तुले स्वराशिश्‍च । में २०॰ अंश तक शनि का मूलत्रिकोण है तथा शेष अंश स्वराशि है। ॥४३॥
शनैः कु म्भे नखाशास्त्रिकोणं परतस्तु स्वराशिजं ज्ञेयम् ॥४३॥
ग्रहों की मूलत्रिकोण राशियां

ग्रह मूलत्रिकोण राशि मूलत्रिकोण अंश स्वराशि अंश उच्च राशि


सूर्य सिंह ०॰ – २०॰ तक २०॰ – ३०॰ तक
चन्द्र वृष ४॰ – ३०॰ तक ०॰ – ३॰ तक
मंगल मेष ०॰ – १२॰ तक १३॰ – ३०॰ तक
बुध कन्या १६॰ – २०॰ तक २१॰ – ३०॰ तक ०॰ – १५॰ तक
गुरु धनु ०॰ – १०॰ तक ११॰ – ३०॰ तक
शुक्र तुला ०॰ – १५॰ तक १६॰ – ३०॰ तक
शनि कु म्भ ०॰ – २०॰ तक २१॰ – ३०॰ तक
ग्रहों की मूलत्रिकोण राशियां
सूर्य सिंह राशि में २०॰ अंश तक मूल त्रिकोण व शेष अंशो में स्वगृही होता है।

इसी तरह चन्द्र के वृष राशि मे ४॰ अंश से ३०॰ अंश तक कु ल २७॰ अंश मूल त्रिकोण के व आरम्भिक ०॰ अंश से ३॰ अंश तक उच्च का होता है।

मंगल का मेष राशि में ०॰ अंश से १२॰ अंश तक मूल त्रिकोण का व शेष १३॰ अंश से ३०॰ अंश तक स्वराशि का होता है।

बुध कन्या राशि में १६॰ अंश से २०॰ अंश तक मूल त्रिकोण का, आरम्भिक ०॰ अंश से १५॰ अंश तक उच्च का और अंतिम २१॰ अंश से ३०॰ तक स्वराशि का होता है।

गुरू धनु राशि में ०॰ अंश से १०॰ अंश तक मूल त्रिकोण का, शेष ११॰ – ३०॰ तक स्वराशि का होता है।

शुक्र तुला राशि में ०॰ अंश से १५॰ अंश तक मूल त्रिकोण का व शेष १६॰ अंश से ३०॰ अंश तक स्वराशि का होता है।

शनि कु म्भ राशि में ०॰ अंश से २०॰ अंश तक मूल त्रिकोण का व शेष २१॰अंश से ३०॰ अंश तक स्वराशि का होता है।

राहु व के तु की क्रमशः कन्या व मीन स्वराशि मानी जाती है तथा राहु क के तु की क्रमशः कु म्भ व सिंह राशि मूल त्रिकोण है। किसी-किसी मत में राहु को वृष में स्वगृही मानते है।
अध्याय ३: श्लोक – ४४, ४५, ४६
ग्रहस्वरूपाध्यायः
ग्रहाणां नैसर्गिकमित्रामित्रत्वमाह – सूर्य के बुध सम, शुक्र शनि शत्रु और शेष चन्द्रमा, मंगल, गुरु मित्र है। चन्द्रमा के कोई
शत्रु नहीं हैं, सूर्य, बुध मित्र है शेष ग्रह सम है। ॥४४॥
रवेः समो ज्ञः सितसूर्यपुत्रावरी परे ये सुहृदो भवन्ति ।
चन्द्रस्य नारी रविचन्द्रपुत्रौ स्मृतास्तु शेषग्रहाः समाः ॥४४॥ भौम (मंगल) के शुक्र, शनि सम है, बुध शत्रु और शेषग्रह मित्र है। बुध का चन्द्रमा शत्रु,
सूर्य-शुक्र मित्र और शेष ग्रह सम है। ॥४५॥

समौ सितार्की शशिजश्‍च शत्रुमित्राणि शेषाः पृथिवीसुतस्य । गुरु के बुध-शुक्र शत्रु, शनि सम और शेष ग्रह मित्र है। शुक्र के बुध-शनि मित्र, मंगल-गुरु
सम और शेष ग्रह शत्रु है। ॥४६॥
शत्रुः शशी सूर्यसितौ च मित्रे समा परेयुः शशिनन्दनस्य ॥४५॥

गुरोर्ज्ञशुक्रौ रिपुसंज्ञकौ तु शनिः समोऽन्ये सुहृदो भवन्ति ।


शुक्रस्य मित्रे बुधसूर्यपुत्रौ समौ कु जार्यावितरावरीतौ ॥४६॥
अध्याय ३: श्लोक – ४७
ग्रहस्वरूपाध्यायः
शनैः समो वाक्पतिरिन्दुसूनुशुक्रौ च मित्रे रिपवः परेऽपि । शनि का गुरु सम, बुध-शुक्र मित्र और शेष ग्रह शत्रु हैं। इस प्रकार से ब्रह्मा जी ने ग्रहों के
मित्र, सम, शत्रु को कहा है। ॥४७॥
ध्रुवं ग्रहाणां चतुराननेन शत्रुत्व-मित्रत्व-समत्वमुक्तम् ॥४७॥
ग्रहों के नैसर्गिक मित्र-सम-शत्रु सम्बन्ध
ग्रह मित्र सम शत्रु
सूर्य चन्द्र, मंगल, गुरु बुध शुक्र, शनि
चन्द्र सूर्य, बुध मंगल, गुरु, शुक्र, शनि
मंगल सूर्य, चन्द्र, गुरु शुक्र, शनि बुध
बुध सूर्य, शुक्र मंगल, गुरु, शनि चन्द्र
गुरु सूर्य, चन्द्र, मंगल शनि बुध, शुक्र
शुक्र बुध, शनि मंगल, गुरु सूर्य, चन्द्र
शनि बुध, शुक्र गुरु सूर्य, चन्द्र, मंगल

सूर्य ग्रह – चन्द्र-मंगल-गुरु को मित्र, बुध को सम और शुक्र-शनि को अपना शत्रु मानते हैं।
चन्द्र ग्रह – सूर्य-बुध को मित्र, मंगल-गुरु-शुक्र-शनि को सम और किसी भी ग्रह को अपना शत्रु नही मानते हैं।
मंगल ग्रह – सूर्य-चन्द्र-गुरु को मित्र , शुक्र-शनि को सम और बुध को अपना शत्रु मानते हैं।
बुध ग्रह – सूर्य-शुक्र को मित्र, मंगल-गुरु-शनि को सम और चन्द्र को अपना शत्रु मानते हैं।
शुक्र ग्रह – बुध-शनि को मित्र, मंगल-गुरु को सम और सूर्य-चन्द्र को अपना शत्रु मानते हैं।
शनि ग्रह – बुध-शुक्र को मित्र, गुरु को सम और सूर्य-चन्द्र-मंगल को अपना शत्रु मानते हैं।
अध्याय ३: श्लोक – ४८
ग्रहस्वरूपाध्यायः
तात्कालिकमित्रशत्रुत्वमाह – जो ग्रह जिस ग्रह से २ । ३ । ४ । १० । ११ । १२ वें स्थान में होता है वह ग्रह उस ग्रह
का तात्कालिक मित्र होता है एवं शेष स्थानों में शत्रु होता है। ॥४८॥
दशायबन्धुसहजस्वान्त्यस्थास्ते परस्परम् ।
तत्काले सुहृदो ज्ञेयं शेषस्थाने त्वमित्रकम् ॥४८॥
अध्याय ३: श्लोक – ४९, ५०
ग्रहस्वरूपाध्यायः
पञ्चधामैत्रीमाह – जो ग्रह जिस का तात्कालिक और निसर्ग में मित्र होता है, वह उस ग्रह का अधिमित्र
होता है। तत्काल में मित्र और निसर्ग में सम हो तो वह मित्र होता है, तात्कालिक शत्रु
तात्कालिके निसर्गे च मित्रत्वे त्वधिमित्रकम् । और नैसर्गिक सम हो तो शत्रु होता है। ॥४९॥
द्वयोर्मित्रसमत्वे च मित्रं शत्रुः शत्रुसमत्वके ॥४९॥
नैसर्गिक मित्र और तात्कालिक शत्रु या नैसर्गिक शत्रु और तात्कालिक मित्र हो तो सम
होता है। तात्कालिक शत्रु और नैसर्गिक सम हो तो शत्रु होता है और तात्कालिक शत्रु
समौ तु शत्रुमित्रत्वे शत्रुशत्रौ त्वधिशत्रुकम् । और नैसर्गिक शत्रु हो तो अधिशत्रु होता है। इस प्रकार ग्रहों की पॉंच प्रकार की मैत्री होती
है। ॥५०॥
एवं पञ्चप्रकाराः स्युः ग्रहाणां मित्रता बुधैः ॥५०॥
उदाहरण : पञ्चधा मैत्री चक्र
ग्रहस्वरूपाध्यायः

जन्माङ्गम्

तात्कालिक + नैसर्गिक = नैसर्गिक + तात्कालिक

मित्र + मित्र = अधिमित्र


मित्र + सम = मित्र
मित्र + शत्रु = सम
शत्रु + सम = शत्रु
शत्रु + शत्रु = अधिशत्रु
उदाहरण : पञ्चधा मैत्री चक्र
ग्रहस्वरूपाध्यायः
जन्माङ्गम् तात्कालिक मैत्रीचक्रम्‌

ग्रह सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि


मित्र चन्द्र, बुध, सूर्य, बुध, शनि सूर्य, चन्द्र, सूर्य, चन्द्र, सूर्य, बुध, मंगल, बुध,
गुरु, शुक्र गुरु शुक्र शुक्र, शनि गुरु, गुरु,
शत्रु मंगल, शनि मंगल, शुक्र, सूर्य, चन्द्र, मंगल, गुरु, बुध, मंगल चन्द्र, मंगल, सूर्य, चन्द्र,
शनि बुध, गुरु, शनि शनि शुक्र,
शुक्र
उदाहरण : पञ्चधा मैत्री चक्र
ग्रहस्वरूपाध्यायः
नैसर्गिक मैत्रीचक्रम्‌

ग्रह सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि


मित्र चन्द्र, मंगल, गुरु सूर्य, बुध सूर्य, चन्द्र, गुरु सूर्य, शुक्र सूर्य, चन्द्र, मंगल बुध, शनि बुध, शुक्र

सम बुध मंगल, गुरु, शुक्र, शुक्र, शनि मंगल, गुरु, शनि शनि मंगल, गुरु गुरु
शनि
शत्रु शुक्र, शनि बुध चन्द्र बुध, शुक्र सूर्य, चन्द्र सूर्य, चन्द्र, मंगल
उदाहरण : पञ्चधा मैत्री चक्र
पञ्चधा मैत्री चक्रम् ग्रहस्वरूपाध्यायः
ग्रह सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि
अधिमित्र चन्द्र, गुरु सूर्य, बुध सूर्य, शुक्र सूर्य, चन्द्र बुध बुध
मित्र बुध गुरु शनि शनि गुरु गुरु
सम मंगल, शुक्र सूर्य, चन्द्र, गुरु चन्द्र मंगल, शुक्र सूर्य, शनि मंगल, शुक्र

शत्रु शुक्र, शनि, मंगल शुक्र मंगल, गुरु, शनि मंगल


अधिशत्रु शनि बुध बुध चन्द्र सूर्य, चन्द्र
अध्याय ३: श्लोक – ५१, ५२
ग्रहस्वरूपाध्यायः
ग्रहाणामुच्चादिबलमाह – यदि ग्रह अपने उच्च राशि में हो तो सम्पूर्ण शुभ बल (१००%), अपने मूलत्रिकोण राशि
में हो तो 3 चरण बल (७५%), अपने राशि में हो तो आधा बल ( ५०%), अपने
स्वोच्चे शुभं बलं पूर्णं त्रिकोणे पादवर्जितम् । मित्र के राशि में हो तो १ चरण बल (२५%) होता है। ॥५१॥
स्वर्क्षे दलं मित्रगेहे पादमात्रं प्रकिर्त्तितम् ॥५१॥
सम की राशि मे आधा चरण बल (१२.५%) बल प्राप्त करता है। नीच, अस्त और शत्रु
की राशि में हो तो शुन्य बल (०%) पाता है। इसके विपरीत शेष अशुभ बल पाता है। ॥
पादार्थं समभे प्रोक्तं व्यर्थं नीचास्तशत्रुभे । ५२॥

तद्वद् दुष्टबलं ब्रूयाद् व्यत्ययेन विचक्षणः ॥५२॥


ग्रह बल चक्रम्
ग्रहस्वरूपाध्यायः

ग्रह क्षेत्र चरण बल प्रतिशत (%) बल


उच्च राशि १ १००%
मूल त्रिकोण राशि ३ ७५%
स्वराशि २ ५०%
मित्र राशि १ २५%
सम राशि ०.५ १२.५%
शत्रु राशि ० ०%
नीच या अस्त ० ०%
अध्याय ३: श्लोक – ५३
ग्रहस्वरूपाध्यायः
धूमाद्यप्रकाशग्रहानयन माह – धूम स्पष्ट :
सूर्य में ४ राशि १३ अंश २० कला जोड़ देने से धूम नाम का महादोष होता है, जो
सदाक़ चतुर्भैः विश्‍वांशैः नखलिप्ताधिको रविः । सभी कर्यों का विनाशक होता है। ॥५३॥
धूमो नाम महादोषः सर्व-कर्मविनाशकः ॥५३॥
उदाहरण:
सूर्य स्पष्ट मकर राशि में ११ अंश २९ कला ३० विकला है।
धूम स्पष्ट वृष राशि में २४ अंश ३५ कला और ३० विकला है।
अध्याय ३: श्लोक – ५४
ग्रहस्वरूपाध्यायः
धूमो मण्डलतः शुद्धो व्यतीपातोऽत्र दोषदः । व्यतीपात स्पष्ट:
धूम को १२ राशि में घटा देने से शेष व्यतीपात नाम का दोष होता है।
सषड्भेऽअत्र व्यतीपाते पर्वेषस्तु दोषदः ॥५४॥ परिवेष स्पष्ट:
व्यतीपात में ६ राशि जोड़ देने से परिवेष नाम का दोष होता है।॥५४॥

उदाहरण:
सूर्य स्पष्ट मकर राशि में ११ अंश २९ कला ३० विकला है।
धूम स्पष्ट वृष राशि में २४ अंश ३५ कला और ३० विकला है।
व्यतीपात स्पष्ट कु म्भ राशि में ०५ अंश २४ कला और ३० विकला है।
अध्याय ३: श्लोक – ५४
ग्रहस्वरूपाध्यायः
धूमो मण्डलतः शुद्धो व्यतीपातोऽत्र दोषदः । परिवेष स्पष्ट:
व्यतीपात में ६ राशि जोड़ देने से परिवेष नाम का दोष होता है।॥५४॥
सषड्भेऽत्र व्यतीपाते पर्वेषस्तु दोषदः ॥५४॥
उदाहरण:
सूर्य स्पष्ट मकर राशि में ११ अंश २९ कला ३० विकला है।
धूम स्पष्ट वृष राशि में २४ अंश ३५ कला और ३० विकला है।
व्यतीपात स्पष्ट कु म्भ राशि में ५ अंश २४ कला और ३० विकला है।
परिवेष स्पष्ट सिंह राशि में ०५ अंश २४ कला और ३० विकला है।
अध्याय ३: श्लोक – ५५
ग्रहस्वरूपाध्यायः
परिवेषश्‍च्युतश्‍चक्रादिन्द्रचापस्तु दोषदः । इन्द्रचाप स्पष्ट:
परिवेष को १२ राशि में घटाने से इन्द्रचाप नामक दोष होता है। ॥ ५५॥
त्र्यंशोनात्यष्ट्यंशा युतश्‍चापः के तुग्रहो भवेत् ॥५५॥
उदाहरण:
सूर्य स्पष्ट मकर राशि में ११ अंश २९ कला ३० विकला है।
धूम स्पष्ट वृष राशि में २४ अंश ३५ कला और ३० विकला है।
व्यतीपात स्पष्ट कु म्भ राशि में ५ अंश २४ कला और ३० विकला है।
परिवेष स्पष्ट सिंह राशि में ०५ अंश २४ कला और ३० विकला है।
इन्द्रचाप स्पष्ट वृश्‍चिक राशि में ०७ अंश २४ कला और ३५ विकला है।
अध्याय ३: श्लोक – ५५
ग्रहस्वरूपाध्यायः
परिवेषश्‍च्युतश्‍चक्रादिन्द्रचापस्तु दोषदः । के तु (उपके तु) स्पष्ट:
१७ अंश में अंश का तृतीयांश २० कला घटाने से शेष १६ अंश ४० कला इन्द्रचाप में
त्र्यंशोनात्यष्ट्यंशा युतश्‍चापः के तुग्रहो भवेत् ॥५५॥ जोड़ने से के तु नाम का दोष होता है। ॥५५॥
उदाहरण:
सूर्य स्पष्ट मकर राशि में ११ अंश २९ कला ३० विकला है।
धूम स्पष्ट वृष राशि में २४ अंश ३५ कला और ३० विकला है।
व्यतीपात स्पष्ट कु म्भ राशि में ५ अंश २४ कला और ३० विकला है।
परिवेष स्पष्ट सिंह राशि में ०५ अंश २४ कला और ३० विकला है।
इन्द्रचाप स्पष्ट वृश्‍चिक राशि में ०७ अंश २४ कला और ३५ विकला है।
उपके तु स्पष्ट धनु राशि में ११ अंश १५ कला और ३० विकला है।
अध्याय ३: श्लोक – ५६
ग्रहस्वरूपाध्यायः
एकराशियुते के तौ सूर्यः स्यात्पूर्ववत्समः । सूर्य स्पष्ट:
के तु में १ राशि जोड़ देनें से पूर्वोक्त सूर्य के तुल्य हो जात है। यही अप्रकाश ग्रह हैं जो
अप्रकाशग्रहाश्‍चैते दोषाः पापग्रहाः स्मृताः ॥५६॥ कि दोषरूप पाप ग्रह है। ॥५६॥
उदाहरण:
सूर्य स्पष्ट मकर राशि में ११ अंश २९ कला ३० विकला है।
धूम स्पष्ट वृष राशि में २४ अंश ३५ कला और ३० विकला है।
व्यतीपात स्पष्ट कु म्भ राशि में ५ अंश २४ कला और ३० विकला है।
परिवेष स्पष्ट सिंह राशि में ०५ अंश २४ कला और ३० विकला है।
इन्द्रचाप स्पष्ट वृश्‍चिक राशि में ०७ अंश २४ कला और ३५ विकला है।
उपके तु स्पष्ट धनु राशि में ११ अंश १५ कला और ३० विकला है।
सूर्य स्पष्ट मकर राशि में ११ अंश २९ कला ३० विकला है।
अध्याय ३: श्लोक – ५७
ग्रहस्वरूपाध्यायः
भान्विन्दुलग्‍नगेष्वेषु वंशायुर्ज्ञाननाशनम् । पूर्वोक्त धूम आदि ग्रह यदि सूर्य, चद्र, लग्न से युत हो तो क्रम से वंश, आयु और ज्ञान
का नाश करते है।
एषां बह्वर्क दोषाणां स्थितिः पद्मासनोदिताः ॥५७॥
अर्थात यदि सूर्य से युक्त हों तो वंश का नाश, चद्र से युत तो आयु का नाश और लग्न से
युक्त हो तो ज्ञान का नाश करते है।

इति पाराशरहोरायां पूर्वखण्डे सुबोधिन्यां ग्रहस्वरूपाध्यायः ॥३॥ इस प्रकार दोषकारक अप्रकाश ग्रहों की स्थिति ब्रह्मा ने कही है। ॥५७॥
अप्रकाश पाप ग्रह से युक्त होने पर नाश फल
ग्रहस्वरूपाध्यायः
ग्रह या स्थान अप्रकाश पाप ग्रह से युक्त होने पर नाश
सूर्य धूम, व्यतीपात, परिवेष, इन्द्र्चाप, उपके तु वंश नाश
चन्द्र धूम, व्यतीपात, परिवेष, इन्द्र्चाप, उपके तु आयु नाश
लग्न धूम, व्यतीपात, परिवेष, इन्द्र्चाप, उपके तु ज्ञान का नाश

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