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कन्याकुमारी के

दर्शनीय स्थल
- Hindi Activity
Vivekananda Rock Memorial
◦ Vivekananda Rock Memorial भारत के  तमिलनाडु  के  कन्याकु मारी में समुद्र में स्थित एक स्मारक है। यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन गया है। यह भुमि-तट से
लगभग ५०० मीटर अन्दर समुद्र में स्थित दो चट्टानों में से एक के उपर निर्मित किया गया है।एकनाथ रानडे ने विवेकानंद शिला पर विवेकानंद स्मारक मन्दिर बनाने में विशेष कार्य
किया। एकनाथ रानडे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह थे।
◦ समुद्र तट से पचास फु ट ऊं चाई पर निर्मित यह भव्य और विशाल प्रस्तर कृ ति विश्व के पर्यटन मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण आकर्षण के न्द्र बनकर उभर आई है। इसे बनाने के लिए लगभग
७३ हजार विशाल प्रस्तर खण्डों को समुद्र तट पर स्थित कार्यशाला में कलाकृ तियों से सज्जित करके समुद्री मार्ग से शिला पर पहुंचाया गया। इनमें कितने ही प्रस्तर खण्डों का भार 13
टन तक था। स्मारक के विशाल फर्श के लिए प्रयुक्त प्रस्तर खण्डों के आंकड़े इसके अतिरिक्त हैं। इस स्मारक के निर्माण में लगभग ६५० कारीगरों ने २०८१ दिनों तक रात-दिन श्रमदान
किया। कु ल मिलाकर ७८ लाख मानव घंटे इस तीर्थ की प्रस्तर काया को आकार देने में लगे। २ सितम्बर, १९७० को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डा. वी.वी. गिरि ने तमिलनाडु  के
तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणानिधि की अध्यक्षता में आयोजित एक विराट समारोह में इस स्मारक का उद्घाटन हुआ।
सन 1963 को विवेकानन्द जन्मशताब्दी समारोह में तमिल नाडु  में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक दत्ताजी दिदोलकर को प्रेरणा हुई कि इस शिला का नाम 'विवेकानन्द
शिला' रखना चाहिए और उसपर स्वामीजी की एक प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। कन्याकु मारी के हिन्दुओं में भारी उत्साह हुआ और उन्होंने एक समिति गठित करली। 
स्वामी चिद्भवानन्द इस कार्य में जुट गये। पर इस मांग से तमिलनाडु का कै थोलिक चर्च घबरा उठा, और डरने लगा कहीं यह काम हिन्दुओं में हिंदुत्व की भावना न भर दे, मिशन की
राह में यह प्रस्ताव चर्च को बड़ा रोड़ा लगा। चर्च ने उस शिला को विवेकानन्द शिला की बजाय ‘सेंट जेवियर रॉक’ नाम दे दिया और मिथक गढ़ा कि सोलहवीं शताब्दी में सेंट जेवियर
इस शिला पर आये थे। शिला पर अपना अधिकार सिद्ध करने के लिए वहां चर्च के प्रतीक चिन्ह ‘क्रॉस’ की एक प्रतिमा भी स्थापित कर दी और चट्टान पर क्रॉस के चिन्ह बना दिए।
Nagaraja Temple
◦ नाग देवताओं (नागराज) के श्रद्धालुओं के लिए तीर्थ यात्रा का एक बहुत प्राचीन और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्ञात कें द्र है।
यह के रल में नाग की पूजा करनेवाले सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। इस अतिप्राचीन मंदिर का उपवन भारी पेड ऑर
घूमा टेढा लताओं से भरा है जो इसे रहस्यमय ऑर जादु परिवेश देता है।
◦ मंदिर की रास्ता भर ३०००० से अधिक सापों की चित्र दर्शया गया है। उर्वरता कि मांग में दिन भर बहुत सी महिलाऑँ यहाँ
पूजा करने के लिए आते है ऑर उपलब्दी के बाद यहाँ फिर से आकर पूजा करते हैं। एक विशेष हल्दी से बनाया हुआ साँपों
का शिल्प लाते है ऑर इसे प्रसाद के रूप में लाकर देता है, कहता है की इससे बच्चे के रोगनाशक शक्ति बढती है।
कई पीढियों के बाद वसुदेव ऑर श्रीदेवी की परिवार बेऑलाद के दुःख में गिर पडा। उन्होंने अपनी दुःख दूरी के लिए नागराज की पूजा करने लगा। इसी समय जंगल में अचानक
आग बढ गई। बहुत सी नाग उस आग में उत्पीडित हुआ ऑर नागों बडी मुशकिल से अपने आप को आग से बचाने के लिए गड्ढों में छिपने लगा। वसुदेव ऑर श्रीदेवी उस नागों की
देख-भाल की उनके घाव पर शहद ऑर तेल की साथ चंद्न का मरहम लगाया। उसके बाद बरगाद के पेड के पैर में डाल दिया। वैदिक मंत्रों का जब निविदा नारियल के साथ सर्प
देवताओं की पेशकश की ऑर पूरि स्वास्थ्य के लिए नागों की पूजा किया। सर्वव्यापी नागराज उनसे बहुत प्रसन्न हुए ऑर उनके सामने प्रकट होकर आशिर्वाद दिया।
Thanumalayan Temple
◦ थानुमलायन मंदिर, दक्षिण भारत के सबसे ज्यादा भ्रमण किये जाने वाले मंदिरों में से एक है, और यह अनुमान लगाना कि क्यों, कोई कठिन नहीं।
मंदिर का गेट दूर से ही दिखाई पड़ता है क्योंकि 134 फिट की भव्य ऊं चाई वाला टावर खड़ा है। टावर की खासियत इस पर बनी हुई विभिन्न
हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां व नक्काशी है, जिस पर हिंदु पौराणिक कथाओं से चित्र व घटनाओं का चित्रण किया गया है। मंदिर के प्रवेश पर एक
नक्काशीयुक्त दरवाजा है, जो 24 फिट की भव्य ऊं चाई के साथ खड़ा है। मंदिर की बाहरी दीवार के ठीक बगल में ही एक गलियारा है। इस गलियारे
में इसकी लंबाई के अनुसार मंडपम व मंदिर फै ले हुए हैं।
मंदिर लगभग तीस हिन्दू देवी देवताओं को समर्पित है, इसलिए यह भगवान शिव एवं विष्णु दोनों के भक्तों
के बीच लोकप्रिय है। गर्भगृह में एक बड़े शिवलिंग के साथ ही इसके बगल में विष्णु की रखी गयी है।
Kumari Amman Temple
◦ कु मारी अम्मन मंदिर या कन्याकु मारी मंदिर कन्याकु मारी, तमिलनाडु में स्थित है। अगर आप कभी कन्याकु मारी की यात्रा
पर जाएं तो यहां एक जगह ऐसी है जो निश्चित रूप से आपको देखनी चाहिए वो है कु मारी अम्मन मंदिर, जिसे कन्याकु मारी
मंदिर भी कहा जाता है। भारत के कई लोग तीर्थयात्रा और कु मारी अम्मन मंदिर के दर्शन करने आते हैं। समुद्र तट के
किनारे स्थित यह शानदार मंदिर दुनिया के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। कु मारी अम्मन मंदिर 108 शक्तिपीठों में से
एक के रूप में माना जाता है, यह मंदिर देवी कन्या कु मारी का घर है, जिसे वर्जिन देवी के रूप में जाना जाता है।
3000 साल से भी ज्यादा पुराने इस मंदिर का न के वल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी है। कु मारी अम्मन मंदिर या कन्याकु मारी मंदिर समुद्र के किनारे स्थित है और भगवान शिव
से विवाह करने के लिए आत्मदाह करने वाली कुं वारी देवी पार्वती के अवतार के लिए जाना जाता है। कथाओं के अनुसार, भगवान शिव और देवी कन्याकु मारी के बीच शादी नहीं हुई थी,
इसलिए कन्याकु मारी ने कुं वारी रहने का फै सला किया। यह भी कहा जाता है कि शादी के लिए जो अनाज इकट्ठा किया गया था, उसे बिना पकाए छोड़ दिया गया और वे पत्थरों में बदल
गए। वर्तमान समय में, पर्यटक उन पत्थरों को खरीद सकते हैं जो अनाज की तरह दिखते हैं। मंदिर को आठवीं शताब्दी में पंड्या सम्राटों द्वारा स्थापित किया गया था और बाद में इसे
विजयनगर, चोल और नायक राजाओं द्वारा पुनर्निर्मित किया गया। तो चलिए आज हम आपको अपने आर्टिकल के जरिए ले चलते हैं कन्याकु मारी के कु मारी अम्मन मंदिर में और जानते हैं
मंदिर से जुड़ी कई और बातें।
Mandaikadu Bhagavathi Temple
◦ श्री पेरंबदूर को ‘भूतपुरी’ भी कहाँ जाता है क्योंकि पौराणिक काल में यहाँ पर शिवजी के भूतगणों ने तपस्या की थी। साथ ही उन्होंने यहाँ पर
‘आदि के शव पेरुमल मंदिर’ का निर्माण किया था। उन्होंने यहाँ पर तपस्या क्यों की इसके पीछे एक रोचक पौराणिक कहानी है, आइए जानते है
क्या है यह कहानी।
◦ कहते हैं सृष्टि के आरंभ में एक बार भगवान शंकर तांडव नृत्य कर रहे थे। उनका नृत्य देखकर कु छ भूतगण हंस पड़े। उन भूतगणों से नाराज होकर
भगवान शंकर ने अपने से अलग होने का श्राप दे दिया। इससे दुखी होकर सभी भूतगण ब्रह्माजी के पास गए।
◦ ब्रह्मा जी ने भूतगणों को वेंक्टेश्वर गिरि के दक्षिण सत्यव्रत तीर्थ में के शवनारायण की आराधना करने को कहा। वह कई वर्षों तक तप करते रहे। तब
भगवान के शव ने उन्हें दर्शन दिए।
ब्रह्मा जी ने भूतगणों को वेंक्टेश्वर गिरि के दक्षिण सत्यव्रत तीर्थ में के शवनारायण की आराधना करने को कहा। वह
कई वर्षों तक तप करते रहे। तब भगवान के शव ने उन्हें दर्शन दिए।
THANK YOU
- Rasika Kukade

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