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Jaliyaabala Baag Mei Vasant 8
Jaliyaabala Baag Mei Vasant 8
नौएडा-44
विषय – हिंदी, कक्षा-8
ऑनलाइन शिक्षण
प्रायोजक -हिंदी विभाग
आज का सुविचार
परिचय- हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका, राष्ट्रीय चेतना की सजग कवयित्री, स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहीं,
अपनी अनुभूतियों को कहानी में व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली, भाषा सरल तथा काव्यात्मक, रचना की सादगी हृदयग्राही।
सुभद्रा कु मारी चौहान हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह
प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी कविता के कारण है।
कहानी संग्रह
बिखरे मोती (१९३२)
उन्मादिनी (१९३४)
सीधे साधे चित्र (१९४७)
कविता संग्रह
मुकु ल
त्रिधारा
प्रसिद्ध पंक्तियाँ
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकु टी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी
थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के
सुभद्रा कु मारीजलियांवाला
चौहान ने बसंत बाग़सेमें आह्वान
रोलेट एक्ट,
करते अंग्रे
हुए जों
कहाकीहै दमनकारी
कि यदि वसंत नीतियों
जलियाँवाला बाग में आए तो
वह किस प्रकारव दो नेताओंक्योंकि
से आए? सत्यपाल और सैफ़ु द्दीन
जलियाँवाला बागकिचलू
शोक काकीप्रतीकगिरफ्तारीहै औरके बसंत (नई उमंग नए
उत्साह) खुशियोंविरोध
का।मेंकवयित्री
एक सभाकोरखी गई, जिसमेंबागकु छमें नेता
जलियाँवाला बसंतभाषणका आना देने वाले
अच्छा नहीं लगता लेकिन,
कविता के बसंत को आनेथे।सेब्रिटिश सरकार
कोई नहीं रोक केसकता कई अधिकारियों
इसलिए कवयित्री को यहबसंत 1857 के गदर करते हुए यह प्रार्थना कर
को संबोधित
बारे में .... की पुनरावृत्ति
रही है कि हे बसंत...! जब कभीजैसी भी परिस्थिति लग रही थीबागजिसे
तुम जलियाँवाला न होनेतोदेनेबिल्कु
में आओ के ल शांति से आना, क्योंकि
यहाँ इतना कु छलिएघटित
और हुआकु चलने के लिएजिसमें
है जिससे वो कु छछोटे-छोटे
भी करनेपुरुष,
के लिएस्त्रियाँ,
तैयारबच्चे,
थे। मौत की गोद में सो गए थे।
आपका इस बाग में स्वागत है लेकिन आप जब भी इस बाग में आओ तो इस बात का ध्यान रखना कि
इस स्थान पर क्या हुआ था।
कविता
वाचन
एवं
भावार्थ
यहां कोकिला नहीं, काक है शोर मचाते।
काले-काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।।
कलियां भी अधखिली, मिली है कं टक कु ल से।
वे पौधे, वे पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे।।
भावार्थ
भावार्थ
(प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवयित्री कहना चाहती है कि इस बाग में कोयल की नहीं कौवों की आवाज सुनाई दे रही है उड़ते हुए
काले- काले कीड़ों से भंवरों के होने का भ्रम उत्पन्न हो रहा है। पेड़-पौधों को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वह सब मुरझाए हुए हैं
और पेड़ों से टू टकर कलियाँ नीचे गिरी हुई है।)
शब्दार्थ
कोकिला–कोयल
भ्रमर– भँवरा
कं टक– काँटा
शुष्क– सूखे
झुलसे– आधे जले
परिमल-हीन पराग दाग- सा बना पड़ा है।
हा ! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।।
आओ, प्रिय ऋतुराज ! किं तु धीरे से आना।
यह है शोक स्थान, यहां पर शोर मत मचाना।।
भावार्थ
(बसंत को संबोधित करते हुए कवयित्री कहना चाहती है कि हे बसंत...! यह पूरा बाग निर्दोष लोगों के खून से सना हुआ है, जिससे फू लों के पराग
सुगंधहीन हो गये हैं इसलिए हे बसंत...! जब भी तुम यहाँ पर शांतिपूर्वक आना क्योंकि यहाँ दुख और वेदना फै ली हुई है)।
शब्दार्थ परिमल–सुगंध
(कक्षा–चर्चा हेतु )
भावार्थ
(प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री कहना चाहती हैं कि वायु को भी यदि चलना है तो वह धीरे-धीरे चले, वह दुख भरी आंहों को
अपने साथ उड़ा कर ना ले जाए। कोयल गाए तो वह भी रोने का ही गीत गाए और भ्रमर के गुंजन में भी जलियांवाला बाग
का ही दुख हो।)
लाना संग में पुष्प, न हो वे अधिक सजीले।
हो सुगंध की मंद, ओस से कु छ-कु छ गीले।।
किं तु न तुम उपहार भाव आकर दरसाना।
स्मृति में पूजा हेतु यहां थोड़े बिखराना।।
भावार्थ
(बसंत को संबोधित करते हुए कवयित्री कहती है कि तुम अपने साथ कु छ हल्के रंग के पुष्पों को लेकर आना जिनमें, अधिक खुशबू ना हो और वे
आंसू रूपी ओंस के कारण नम हो। अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि हे बसंत...! तुम जब भी आओ अपने फू लों को उपहार के रूप में ना लाना
बल्कि उन्हें शहीदों को स्मृति स्वरूप अर्पण करने हेतु लाना।)
कोमल बालक मरे यहां, गोली खा-खा कर।
कलियां उनके लिए गिराना, थोड़ी लाकर।।
आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं।
अपने प्रिय, परिवार देश से भिन्न हुए हैं।।
भावार्थ
(यहां पर कवयित्री कह रही हैं कि छोटे-छोटे कोमल बालक भी अंग्रेजों की गोलियाँ खा- खाकर
मरे हैं। इसलिए उनकी याद में बच्चों रुपी छोटी-छोटी कलियाँ यहाँ पर गिरा देना। यहाँ पर जो लोग
आए थे उनके मन में देश को आजाद कराने की कु छ आशाएँ थी लेकिन अब वे शहीद हो गए हैं
अपने देश और परिवार से दूर हो चुके हैं इसलिए कु छ कलियाँ तुम उनकी याद में यहां पर चढ़ा
देना।)
भावार्थ
(कवयित्री कहती है कि हे बसंत तुम वह सब करना जो प्रकृ ति ने उसे करने के लिए कहा
कु छ कलियां अधखिली, यहां इसलिए चढ़ाना। है लेकिन, जब वह जलियांवाला बाग में आए तो वह धीरे से आए क्योंकि यह एक शोक
करके उनकी याद अश्रु की ओस बहाना।। स्थान है।)
तड़प- तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खाकर।
शुष्क-पुष्प कु छ, यहां गिरा देना तुम जाकर।।
शिक्षा- जलियाँवाला बाग कविता के माध्यम से हमें यह सीख मिलती है कि हमारे देश के
शहीदों ने अपनी जान की कु र्बानी देकर हमें आजादी दिलाई है इसलिए हमें उन शहीदों
का हमेशा सम्मान करना चाहिए।
भावार्थ
(बसंत ऋतु को सम्बोधित करते हुए कवयित्री कहती हैं कि हे बसंत तुम उन सभी शहीदों और परिवार के
लोगों के लिए कु छ कलियाँ यहाँ पर लाकर चढ़ा देना जो अपने परिवार से दूर हो गए हैं। कु छ सूखे फू ल तुम
उन वृद्ध लोगों की याद में यहाँ चढ़ाना जिन्होंने यहाँ अपने प्राणों का बलिदान दिया है।)
(कक्षा–चर्चा हेतु )
लिखित–प्रश्न
2. कोयल और भौरों को क्या निर्देश दिया है ?
उत्तर– संके त–बिंदु – कोयल वसंत में मधुर गीत ना गाकर रोने का राग सुनाए और भँवरे भी फू लों पर
मँडराते हुए कष्टों की कथा सुनाए।
उत्तर–पुस्तिका में लिखिए।
लिखित–प्रश्न नोट :- पुस्तक में प्रश्न 3 की जगह 4 दिया हुआ है |