वो थोड़ा झुक कर चलती है, वही हाल “जिंदगी” में इंसान का है..!! नशा- प्रश्नोत्तर प्रश्न १- कहानी के मुख्य पात्रों के नाम बताइए। उत्तर- प्रश्न ये१-कहानी बीर और ईश्वरी की है। इन दो पात्रों के अलावा कहानी में रियासत अली, रामहरख तथा ठाकु र ने भी भूमिका निभाई है।
प्रश्न २- लेखक ईश्वरी के घर जाने को क्यों तैयार हो गया ?
उत्तर- दशहरे की छु ट्टियों में हॉस्टल के सभी छात्र घर जा रहे थे परंतु लेखक के पास घर जाने के लिए किराये के पैसे न थे। वह पैसे माँग कर अपने गरीब घरवालों को परेशान नहीं करना चाहता था और न ही भूतों की तरह हॉस्टल में अके ला रहना चाहता था इसलिए ईश्वरी के एक बार कहने पर वह उसके घर जाने को तैयार हो गया। साथ ही उसे लगा ईश्वरी एक मेधावी छात्र है, उसके साथ पढ़कर वह अपनी परीक्षा की तैयारी भी कर लेगा। प्रश्न ३- वह क्या कहकर ज़मीदारों की निंदा करता था? उत्तर- वह जमींदारी की बुराई उन्हें हिंसक पशु और ख़ून चूसने वाली जोंक और वृक्षों की चोटी पर फू लने वाला बंझा कहकर करता था।
प्रश्न ४- लेखक को जलपान-गृह में भोजन स्वाधीन क्यों लगा ?
उत्तर- जलपान गृह में ख़ानसामे जिस तत्परता और विनय से ईश्वरी की सेवा कर रहे थे उतनी आवभगत लेखक की नहीं कर रहे थे। ख़ानसामे समझ गए थे कि मालिक कौन है और पिछलग्गू कौन। खानसामों का यह भेद-भाव लेखक को पसंद नहीं आया इसलिए उसे वहाँ खाना स्वादहीन लगा। प्रश्न ५- ईश्वरी को क्या यह अनुमान था कि उसका मित्र उसके घर जाकर बदल जाएगा ? उत्तर- हाँ ईश्वरी को यह अनुमान था कि ईश्वरी वहाँ जाकर कु छ और हो जाएगा तभी जब लेखक ने पूछा कि क्या तुम्हें लगता है कि मैं वहाँ जाकर कु छ और हो जाऊँ गा तो ईश्वरी ने कहा था हाँ मुझे तो यही लगता है।
प्रश्न ६- लेखक की आर्थिक स्थिति कै सी थी ?
उत्तर- लेखक की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय थी। वह एक मामूली क्लर्क का बेटा था जिसके पास मेहनत-मज़दूरी के अलावा कोई उपाय न था। लेखक इतना गरीब था कि दशहरे की छु ट्टियों में घर जाने के लिए उनके पास किराये के भी पैसे नहीं थे। प्रश्न ७- लेखक आदर्शवादी सोच रखता था लेकिन अपने मित्र ईश्वरी के घर पहुँचकर उसके व्यवहार में क्या परिवर्तन आया तथा क्यों ?स्पष्ट कीजिए। उत्तर- लेखक आदर्शवादी सोच रखता था और मानता था कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति को सामान अधिकार मिलने चाहिए और सभी को अपना काम स्वयं करना चाहिए । उसे ज़मीदारों के रौब व अत्याचार से एतराज़ था परंतु जब वह ईश्वरी के घर पहुँचा तो ईश्वरी ने उन्हें वहाँ खानदानी रईस बताकर सभी से परिचित करवाया। लेखक वहाँ जाकर अपने सभी कार्य नौकरों से करवाने लगा तथा नौकरों को काम देर से होने पर डाँटने-फटकारने लगा। लेखक के व्यव्हार में इस परिवर्तन का यह कारण था कि लेखक का लोकप्रेम व आदर्श सिद्धांतों पर नहीं, निजी दशाओं पर टिके हुए थे। प्रश्न ८- लेखक एवं ईश्वरी के व्यवहार में क्या अंतर था ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए। उत्तर- ईश्वरी प्रकृ ति से ही विलासी और ऐश्वर्य-प्रिय था। वह नौकरों से वह सीधे मुँह बात नहीं करता था। अमीरों में जो एक बेदर्दी और उद्दण्डता होती है, इसमें उसे भी प्रचुर भाग मिला था। नौकर ने बिस्तर लगाने में जरा भी देर की, दूध ज़रूरत से ज़्यादा गर्म या ठंडा हुआ, साइकिल अच्छी तरह साफ़ नहीं हुई, तो वह आपे से बाहर हो जाता। सुस्ती या बदतमीज़ी उसे ज़रा भी बर्दाश्त न थी, पर दोस्तों से और विशेषकर लेखक से उसका व्यवहार सौहार्द और नम्रता से भरा हुआ होता था। वह कभी भी लेखक से बहस में जीतने का प्रयास नहीं किया करता था। लेखक आदर्शवादी सोच रखता था परंतु उनके आदर्श व लोकप्रेम निजी दशाओं पर आधारित थे। ईश्वरी के घर जाकर उन्हें सुख समृद्धि का ऐसा नशा चढ़ा कि वह भी नौकरों व गरीबों को छोटा मानने लगा और उनके साथ कठोर व्यवहार करने लगा। उसने छोटे-छोटे काम देर से होने पर ईश्वरी के घर नौकरों को खूब डाँटा तथा ट्रेन में तो एक गरीब को बेवजह घमंड में मार भी दिया। प्रश्न ९- लेखक का नशा कब और कै से उतरा ? उत्तर- ईश्वरी के घर जाकर लेखक के व्यवहार में बहुत अधिक परिवर्तन हुआ। उसे 'सुख समृद्धि' का झूठा नशा हो गया था। दुर्गापूजा की छु ट्टियों के बाद वापस आते हुए ईश्वरी तथा लेखक को तीसरे दर्जे में ही बड़ी मुश्किल से जगह मिल पाई थी। वहाँ एक गरीब व्यक्ति अपना गट्ठर लिए बार-बार हवा लेने के लिए खिड़की के पास आ जाता। लेखक को उसका वहाँ आना और गट्ठर का उससे रगड़ना पसंद न आ रहा था। नाराज़ होकर लेखक ने उसे मार दिया जिसे वहाँ उपस्थित लोगों ने आड़े हाथों लिया और लेखक को खूब खरी-खोटी सुनाई। ईश्वरी को भी यह बात अच्छी न लगी और उसने लेखक से कहा,"व्हाट एन ईडियट यू आर बीर। " ईश्वरी की यह बात सुनकर लेखक का 'ऐश्वर्य और विलासिता' का झूठा नशा उतर गया। प्रश्न १०- कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए। उत्तर- 'नशा' का अर्थ होता है 'किसी भी चीज़ की अधिकता से आपका मानसिक क्षमता कम हो जाए और आप सोचने समझने की शक्ति खो दो और आपकी कथनी तथा करनी में अंतर आ जाए'। लेखक की आदर्शवादी सोच ईश्वरी के घर जाकर सुख समृद्धि के नशे में गायब ही हो गई थी। वह सोचने-समझने की शक्ति ही खो बैठा और उसका व्यवहार लोगों के प्रति गलत होने लगा। नशा के वल मादक पदार्थ से नहीं होता अपितु किसी भी वस्तु की अति जो आपको आपके आदर्श से भटका दे, एक नशा ही है इसलिए इस कहानी का यह शीर्षक उचित है। प्रश्न ११- 'सभी मनुष्य बराबर नहीं होते, छोटे-बड़े होते रहते हैं और होते रहेंगे।' यह कथन किसने कहा, किससे कहा। इस विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए। उत्तर- 'सभी मनुष्य बराबर नहीं होते, छोटे-बड़े होते रहते हैं और होते रहेंगे।' यह कथन ईश्वर ने लेखक से कहा।मेरे विचार से ईश्वरी ने सत्य कहा। जन्म तथा कर्म के आधार पर आप समाज में अपनी स्थिति सुनिश्चित करते हैं। संविधान की दृष्टि में सभी बराबर हैं तथा सभी के समान अधिकार तथा कर्तव्य हैं फिर भी मानसिक एवं आर्थिक दृष्टि से मदभेद हैं तथा रहेंगे। और यही मदभेद समाज में आपको ऊँ चा या नीचा दर्जा दिलाते हैं। सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से इसी भेद के अनुसार चलाया जा सकता है। अब ज़मीदारी प्रथा नहीं है परंतु आज भी नौकर तथा मालिक होते हैं। हर व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री नहीं हो सकता परंतु देश प्रत्येक व्यक्ति का होता है। धन्यवाद