Sacred Divine Names of Maa Lalita

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श्री ललितात्रिशती साधना

SACRED DIVINE NAMES OF MAA LALITA


इत्येवं ते मयाऽऽख्यातं देव्या नाम शतत्रयम् ।
रहस्यातिरहस्यत्वाद् गोपनीयं महामुने ॥

 Shree Hayagreeva says I have now defined the 300 names of Devi (Maa Lalita). These names are secrets of
secrets that need to be protected by a great sage like you (here Shree Hayagreeva means Sage Agastya).

 श्री हयग्रीव कहते हैं कि मैंने अब देवी (मां ललिता) के 300 नामों को परिभाषित किया है। ये नाम रहस्यों के रहस्य हैं जिन्हें आप जैसे महान ऋषि (यहां श्री हयग्रीव का अर्थ
ऋषि अगस्त्य) द्वारा संरक्षित करने की आवश्यकता है।
शिववर्णानि नामानि श्रीदेवीकथितानि हि ।
शक्त्यक्षराणि नामानि कामेशकथितानि च ।

 All the names starting with “Shiv Varnas” were spoken by Shree Devi (Maa Lalita) and all the names starting with
“Shakti Varnas” were spoken by Lord Kameshwara.
 Note: Description of Shiv Varnas and Shakti Varnas are explained later in the conversation

 "शिव वर्ण" से शुरू होने वाले सभी नाम श्री देवी (माँ ललिता) द्वारा बोले गए थे और "शक्ति वर्ण" से शुरू होने वाले सभी नाम भगवान कामेश्वर द्वारा बोले गए थे।
 शिव वर्णों और शक्ति वर्णों का विवरण बाद में बातचीत में समझाया गया है |
उभयाक्षरनामानि ह्युभाभ्यां कथितानि वै ।
तदन्यैर्ग्रथितं स्तोत्रमेतस्य सदृशं किमु ।

 Names starting with “Ubhaya Akshara” were spoken by both (Maa Lalita & Lord Kameshwara). Everything other
than Shiv & Shakti Varna that is composed in this Stotram resembles to the Ubhaya Akshara.

 "उभय अक्षर" से शुरू होने वाले नाम दोनों (माँ ललिता और भगवान कामेश्वर) द्वारा बोले गए थे। इस स्तोत्रम में रचित शिव और शक्ति वर्ण के अलावा सब कु छ उभय अक्षर है।
नानेन सदृशं स्तोत्रं श्रीदेवी प्रीतिदायकम ।
लोकत्रयेऽपि कल्याणं सम्भवेन्नत्र संशय ॥

 Nothing in all three world is as endearing as the Shree Devi Stotram. This has capability of doing welfare in all
three worlds and there is no doubt in that.

 तीनों लोकों में कु छ भी श्री देवी स्तोत्रम के समान प्रीतिदायक नहीं है। इसमें तीनों लोकों का कल्याण करने की क्षमता है और इसमें कोई संदेह नहीं है।
इति हयमुखगीतं स्तोत्रराजं निशम्य प्रगलितकलुषोऽभूच्चित्तपर्याप्तिमेत्य ।
निजगुरुमथ नत्वा कु म्भजन्मा तदुक्तं पुनरधिकरहस्यं ज्ञातुमेवं जगाद् ॥

 Suta says, as Sage Agastya hears the Ruler of All Stotram from horse mouthed guru (Lord Hayagreeva), all the
dissatisfaction of his mind gets satisfied. One who is born from a pot (Sage Agastya) went near his guru confused
and after bowing down he asked him to tell the secrete of this Stotram.

 सूत कहते हैं, जैसे ही ऋषि अगस्त्य घोड़े के मुँह वाले गुरु (भगवान हयग्रीव) से सभी स्तोत्रम के शासक को सुनते हैं, उनके मन का सारा असंतोष शांत हो जाता है। घड़े से जन्म
लेने वाला (ऋषि अगस्त्य) भ्रमित होकर अपने गुरु के पास गया और प्रणाम करके उनसे इस स्तोत्र का रहस्य बताने को कहा।
अश्वानन महाभाग रहस्यमपि मे वद ।
शिववर्णानि कान्यत्र शक्तिवर्णानि कानि हि ।
उभयोरपि वर्णानि कानि मे वद देशिक |

 Agastya says to Hayagreeva, I feel very blessed after hearing this although please tell me the secrete of “Shiv
Varna”, “Shakti Varna” & “Ubhaya Varna” meaning which are these varnas in the Stotram.

 अगस्त्य हयग्रीव से कहते हैं, मैं यह सुनकर बहुत धन्य महसूस करता हूं, हालांकि कृ पया मुझे "शिव वर्ण", "शक्ति वर्ण" और "उभय वर्ण" का रहस्य बताएं, जिसका अर्थ है कि
स्तोत्रम में ये वर्ण कौन से हैं।
इति पृष्टः कु म्भजेन हयग्रीवोऽवदत्पुनः ।
तव गोप्यं किमस्तीह साक्षादम्बाकटाक्षतः ॥

 Sage Agastya askes Lord Hayagreeva to tell him the secrete which was glanced by Maa Lalitambika herself that
needs to be protected.

 ऋषि अगस्त्य ने भगवान हयग्रीव से उन्हें वह रहस्य बताने के लिए कहा, जिसे स्वयं माँ ललिताम्बिका ने देखा था, जिसे संरक्षित करने की आवश्यकता है।
इदं त्वतिरहस्यं ते वक्ष्यामि श्रृणु कु म्भज ।
एतद्विज्ञानमात्रेण श्रीविद्या सिद्धिदा भवेत् ॥

 I am going to speak the secrete that was told to Agastya. Shree Vidhya can only be understood by understanding
this science.

 अगस्त्य को जो रहस्य बताया था, वह मैं बोलने जा रहा हूँ। इस विज्ञान को समझकर ही श्रीविद्या को समझा जा सकता है।
कत्रयं हद्वयं चैव शैवो भागः प्रकीर्तितः ।
शक्त्यक्षराणि शेषाणि ह्रींकार उभयात्मकः ॥

 3 “Ka” & 2 “Ha” are Shiv Varnas in the Stotram. All the “Hrim” are Ubhaya Varna and rest is Shakti Varnas.

 स्तोत्रम में 3 "क" और 2 "ह" शिव वर्ण हैं। सभी "ह्रीं" उभय वर्ण हैं और बाकी शक्ति वर्ण हैं।
एवं विभागमज्ञात्वा श्री विद्याजपशालिनः ।
न तेषां सिद्धिदा विद्या कल्पकोटिशतैरपि ।

 In the same way, even with a Japa of 10 Billion mantras (“Kalpkotishatirapi”) cannot give the Shree Vidhya
Siddhi without knowing & understanding this part.

 इसी प्रकार 10 अरब मन्त्रों के जप से भी (कल्पकोटिशतिरपि) इस भाग को जाने-समझे बिना श्री विद्या सिद्धि नहीं दे सकते।
चतुर्भिश्शिवचक्रै श्च शक्तिचक्रै श्च पंचभिः ।
नवचक्रै स्तु संसिद्धं श्री चक्रं शिवयोर्वपुः ॥

 The “Shiva Shareer” can be manifested by accomplishing nine chakras of Shree Chakra. Out of the nine, there are
four is Shiv Chakras and five Shakti Chakras.

 श्री चक्र के नौ चक्रों को पूरा करके "शिव शरीर" अनुभव किया जा सकता है। नौ में से चार शिव चक्र और पांच शक्ति चक्र हैं।
त्रिकोणमष्टकोणं च दशकोणद्वयं तथा ।
चतुर्दशारं चैतानि शक्तिचक्राणि पंच वै ॥

 Trikon, Astkon, two Dashakon, Chaturdashar are the five shakti chakras.

 त्रिकोण, अष्टकोण, दो दशकोन, चतुर्दशार ये पांच शक्ति चक्र हैं।


बिन्दुश्चाष्टदलं पद्मं पद्मं षोडशपत्रकम् ।
चतुरश्रं च चत्वारि शिवचक्राण्यनुक्रमात् ॥

 Bindu, Astdal, Shodashdal and four corenrs are four Shiv Chakras in Shree Chakra

 बिंदु, अष्टदल, षोडशदल और चार कोने श्री चक्र में चार शिव चक्र हैं
त्रिकोणे बैन्दवं श्लिष्टमष्टाऽष्टदलाम्बुजम् ।
दशारोष्षोडशारं भूपुरं भुवनाश्रके ।
शैवानामपि शाक्तानाम चक्राणां च परस्परम् ॥

 The triangle merges in Bindu, The Astrar merges in Astdal, and Both Dashaars merges in Shodashdal, and Bhupur
merge in the remaining layer (Chaturdashar). This is how Shivanamas and Shaktinamas connected to the chakras
and with each other in Shree Chakra.

 त्रिभुज बिंदु में विलीन हो जाता है, अस्त्रार अष्टदल में विलीन हो जाता है, और दोनों दशार षोडशदल में विलीन हो जाते हैं, और भूपुर शेष परत (चतुर्दशर) में विलीन हो जाता है।
इस तरह शिवनाम और शक्तिनाम चक्रों से और श्री चक्र में आपस में जुड़े हुए हैं।
अविनाभावसंबंधं यो जानाति स चक्रवित् ।
त्रिकोणरूपिणी शक्तिर्बिन्दुरूपशिवस्स्मृतः ॥

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