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संहिता अध्ययन

प्रस्तुत कर्ता – अभिमन्यु , अभिनव एवं अभिषेक


आयुर्वेद का प्रयोजन
वाग्भट के मतानुसार:
आयु: कामयमानेन धर्मार्थसुखसाधनम् | आयुर्वेदोपदेशेषु विधेय: परमादर: ||
(अ.हृ.सू.1/2)

चरक के मतानुसार :
कार्यं धातुसाम्यमिहोच्यते | धातुसाम्यक्रिया चोक्ता तन्त्रस्यास्य प्रयोजनम् ||
(च.सू .1/53)
आयुर्वेद अवतरण
वाग्भट मतानुसार
• वाग्भट के अनुसार ब्रह्मा ने आयुर्वेद का स्मरण कर प्रजापति को दिया |
• प्रजापति ने अश्वनी कु मारों को दिया |
• अश्वनी कु मारों ने इन्द्र को |
• इन्द्र ने आत्रेय आदि ऋषियों को |
• इन महर्षियों ने अग्निवेश आदि शिष्यों को |
• इन शिष्यगणों ने पृथक् –पृथक् ग्रंथों की रचना की |
चरक के मतानुसार
त्रिदोष
वाग्भट के मतानुसार :
वायु: पित्तम् कफश्चेति त्रयो दोषा: समासत: ||
विकृ ताSविकृ त देहं घ्नन्ति रुते वर्धयन्ति च | (अ.हृ.सू . 1/6)

चरक के मतानुसार :
वायु: पित्तं कफश्चोक्त: शारीरो दोषसंग्रह: | मानस: पुनरुद्यिटो रजश्च तम एव
च|| (च.सू .1/57)
शारीरिक एवं मानसिक दोषों की चिकित्सा

वाग्भट के मतानुसार:
शरीरजानां दोषाणां क्रमेण परमौषधम् । बस्तिर्विरेको वमनं तथा तैलं घृतं
मधु॥ (अ.ह्र.सू.1/25)

चरक के मतानुसार:
प्रशाम्यत्यौषधै: पूर्वो दैवयुक्तिव्यपाश्रयैः । मानसो
ज्ञानविज्ञानधैर्यस्मृतिसमाधिभिः ॥ (च.सू.1/58)
वात के गुण

वाग्भट के मतानुसार:
तत्र रूक्षो लघु: शीत: खर: सूक्ष्मश्चलोsनिल: | (अ.हृ.सू.1/10)

 चरक के मतानुसार:
रूक्ष: शीतो लघु: सूक्ष्मश्चलोsथ विशद: खर: | विपरीतगुणैर्द्रवयैर्मारुत:
संप्रशाम्यति || (च.सू.1/59)
पित्त के गुण
वाग्भट के मतानुसार:
पित्तं सस्नेहतीक्ष्णोष्णं लघु विस्रं सरं द्रवम् || (अ.हृ.सू.1/11)

चरक के मतानुसार:
सस्नेहमुष्णं तीक्ष्णं च द्रवमम्लं सरं कटु | विपरीतगुणै: पित्तं द्रवयैराशु
प्रशाम्यति || (च.सू.1/60)
कफ के गुण
वाग्भट के मतानुसार:
स्निगद: शीतो गुरुर्मंद: श्लक्ष्णो मृत्स्न: स्थिर: कफ: | (अ.हृ.सू.1/11)

चरक के मतानुसार:
गुरुशीतमृदुस्निगदमधुरस्थिरपिच्छिला:| श्लेष्मण: प्रशमं यान्ति
विपरीतगुणैर्गुणा: || (च.सू.1/61)
गुण
वाग्भट के मतानुसार:
गुरुमंदहिमस्निगदश्लक्ष्णसांद्रमृदुस्थिरा: | गुणा: ससूक्ष्मविशदा विशंति:
सविपर्यया: || (अ.हृ.सू.1/18)

चरक के मतानुसार:
सार्था गुर्वादयो बुद्धि: प्रयत्नान्ता: परादय: | गुणा: प्रोक्ता: (च.सू.1/40)
गुर्वादि गुण एवं उनके कर्म
वृद्धि एवं क्षय (सामान्य तथा विशेष)

वाग्भट के मतानुसार:
वृद्धि: समानै: सर्वेषां विपरीतैर्विपर्यय: | (अ.हृ.सू.1/13)

चरक के मतानुसार :
सर्वदा सर्वभावानां सामान्यं वृद्धिकारणम् | हासहेतुर्विशेषश्च प्रवृत्तिरुभयस्य तु
|| (च.सू.1/44)
द्रव्यवर्गीकरण

वाग्भट के मतानुसार:
शमनं कोपनं स्वस्थहितं द्रव्यमिति त्रिधा || (अ.हृ.सू.1/16)

चरक के मतानुसार (प्रभाव भेद से) :


किं चिद्दोषप्रशमनं किं चिद्धातुप्रदूषणम् | स्वस्थवृत्तौ मतं किं चिन्त्रिविधं
द्रव्यमुच्यते || (च.सू.1/68)
रस विवेचन

वाग्भट के मतानुसार:
रसाःस्वाद्वम्ललवणतिक्तोषणकषायकाः ||
षड् द्रव्यमाश्रितास्तेचयथापूर्वंबलावहाः | (अ.हृ.सू.1/14-15)

चरक के मतानुसार :
स्वादुरम्लोऽथ लवणः कटुकस्तिक्त एव च | कषायश्चेति षट्कोऽयं रसानां
संग्रहः स्मृतः || (च.सू.1/65)
रसों का दोषों से संबंध

वाग्भट के अनुसार: चरक के अनुसार:


रोगों के कारण
वाग्भट के मतानुसार:
कालार्थकर्मणां योगो हीनमिथ्यातिमात्रकः । (अ.हृ.सू.1/19)

चरक के मतानुसार:
कालबुद्धीन्द्रियार्थानां योगो मिथ्या न चाति च । (च.सू.1/54)
धन्यवाद

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