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अग्नीपथ

- हरिवन्शराय बच्चन
विशय सूची
1. कवि परीचय

2. कविता

3. कविता का मूल भाव


कविता
 वृक्ष हो भले खड़े, हो घने हो बड़े, एक पत छाव की
मांग मत, मांग मत, मांग मत
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ
 तू न थके गा कभी, तू न थमेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ
 ये महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है, अश्रु स्वेद रक्त से
लथपथ, लथपथ, लथपथ
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ
कवि परिचय
 हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन“ हिन्दी भाषा के एक कवि और
लेखक थे।'हालावाद' के प्रवर्तक बच्चन जी हिन्दी कविता के उत्तर
छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध
कृ ति मधुशाला है। भारतीय फिल्म उद्योग के प्रख्यात
अभिनेता अमिताभ बच्चन उनके सुपुत्र हैं।
 उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। बाद में भारत
सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ रहे। अनन्तर राज्य
सभा के मनोनीत सदस्य। बच्चन जी की गिनती हिन्दी के सर्वाधिक
लोकप्रिय कवियों में होती है।
कविता का मूल भाव
कवी हमें यह बताना चाहते है कि हमारा जीवन एक अग्नीपथ है अर्थात
बहुत कठिन है । इस कठिन मार्ग में भी हमें दूसरों की मदद नही
मांगनी चाहिए और कायरों की तरह पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए ।
इस कठिन मार्ग में आंसू, पसीना और कभी – कभी रक्त भी बह
सकता है पर हमें हिम्मत न हारकर आगे बढते रहना चाहिए ।
धन्यवाद

सुमित यादव
IX ‘B’

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