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अयोध्या राम

मंदिर का इतिहास

W W W. D D E L H I . C O M

इ ति हा स वि भा ग
इतिहास सारांश
एक संक्षिप्त चर्चा:
• अयोध्या राम मन्दिर इतिहास: पौराणिक और सांस्कृ तिक विरासत का संगम। जानिए इस धार्मिक स्थल के इतिहास को, जो
हमारे सांस्कृ तिक रूपरेखा का अभिन्न हिस्सा है।

• 22 जनवरी 2024 को, भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा अयोध्या के श्री राम मंदिर में सम्पन्न हुई। इस महत्वपूर्ण अवसर को
विशेष बनाने के लिए व्यापक तैयारियाँ की।

• मंदिर के उद्घाटन के साथ ही, अयोध्या में स्थित राम मंदिर भारत और दुनियाभर के हिंदू समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण
आस्था कें द्र के रूप में उभरेगा।

• भव्य राम मंदिर जो आज अपने समर्पण की ओर बढ़ रहा है, उसके पीछे दशकों तक चली लंबी कानूनी जंग का सागर है।

इ ति हा स वि भा ग
चर्चा के बिंदु
कवर किये जाने वाले विषय

विषय परिचय
इतिहास सारांश
घटनाओं की समयरेखा
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आंकड़े
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इ ति हा स वि भा ग
विषय परिचय इस का अध् य य न क् यों क रें ?

• अयोध्या राम मन्दिर इतिहास: पौराणिक और सांस्कृ तिक विरासत का संगम। जानिए इस धार्मिक स्थल के इतिहास को, जो हमारे सांस्कृ तिक रूपरेखा का
अभिन्न हिस्सा है। 22 जनवरी 2024 को, भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा अयोध्या के श्री राम मंदिर में सम्पन्न हुई। इस महत्वपूर्ण अवसर को विशेष बनाने के
लिए व्यापक तैयारियाँ की। मंदिर के उद्घाटन के साथ ही, अयोध्या में स्थित राम मंदिर भारत और दुनियाभर के हिंदू समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण आस्था
कें द्र के रूप में उभरेगा।भव्य राम मंदिर जो आज अपने समर्पण की ओर बढ़ रहा है, उसके पीछे दशकों तक चली लंबी कानूनी जंग का सागर है।
• अयोध्या में राम मंदिर की निर्माण की यह यात्रा चुनौतियों से भरी रही है। बाबरी मस्जिद विवाद, अदालतों में लंबी यात्रा, और फिर शीर्ष अदालत के फै सले के
बाद, ने मंदिर निर्माण की अनगिनत परिकल्पनाएं रोकीं और फिर उसे संविधानीय मंदिर बनाने का मौका दिया। अब देशवासियों का बेताब इंतजार है, जब 22
जनवरी 2024 को इस महाकाव्य का अद्वितीय पृष्ठ खुलेगा।
• चलिए, हम एक सफलता और पराजय की दास्तान में ले चलते हैं। यह कहानी 1526 से आरंभ होती है, जब मुग़ल बादशाह बाबर ने भारत पर अपना कब्ज़ा
जमा लिया। बाबर के सुपुत्र, हुमायूं की राजधानी फ़तेहपुर सीकरी में उनके सूबेदार, मीरबाकी ने दो साल बाद एक मस्जिद की नींव रखी और उसे ‘बाबरी
मस्जिद’ कहा। इस मस्जिद की बनावट ने उत्तर भारत में एक महत्वपूर्ण धारोहर की शुरुआत की।
• बाबरी मस्जिद ने अपने समय के दौरान भारतीय समाज में अच्छे और बुरे दोनों पक्षों के बीच विचार-विमर्श को बढ़ावा दिया। मुग़ल साम्राज्य के दौरान, 1528
से 1853 तक, इस मस्जिद के बनने के बाद भी हिन्दू-मुस्लिम संबंधों में विशेष कोई बदलाव नहीं आया।
• 19वीं सदी में मुग़ल साम्राज्य की कमजोरी के साथ-साथ अंग्रेज़ उपनिवेशन का प्रारंभ हुआ और इस समय में ही हिन्दू समुदाय ने राम मंदिर की पुनर्निर्माण की
मांग उठाई। मुग़ल साम्राज्य के शासन कमजोर पड़ने के बाद, रामलला के जन्मस्थल को पुनः प्राप्त करने के लिए एक समृद्धि और अधिकार की लड़ाई शुरू हुई।

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घटनाओं की समयरेखा
330 साल के बाद बाबरी मस्जिद निर्माण के पश्चात पहली एफआईआर की शुरुआत
हुई।

1858 में, मीरबाकी के मस्जिद निर्माण के 330 साल बाद, कानूनी टकराव शुरू हो गया जब पहली बार परिसर में हवन और पूजा
की अनुमति पर एक एफआईआर दर्ज की गई। “अयोध्या रिविजिटेड” किताब के मुताबिक, 1 दिसंबर 1858 को अवध के थानेदार
शीतल दुबे ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि परिसर में एक चबूतरा बना है जो राम के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। यह दस्तावेज
पहला कानूनी साक्षय है जो प्रमाणित करता है कि परिसर में राम के प्रतीक हैं। इसके बाद, तारों की एक बाड़ खड़ी की गई और
विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिंदुओं को अलग-अलग पूजा और नमाज़ की इजाजत दी गई।

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आजादी के बाद मुहिम में तेजी आई
• आजादी के पश्चात, जब देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन सच्चे स्वतंत्रता की ओर बढ़ रहे थे, वहीं एक और मुहिम भी
चल रही थी – राम जन्मभूमि की लड़ाई। देश को आजाद होने के दो साल बाद, यानी 22 दिसंबर 1949 को, राम मंदिर के
ढांचे के भीतर गुंबद के नीचे मूर्तियों का प्रकटीकरण हुआ।
• आजादी के बाद पहला मुकदमा हिंदू महासभा के सदस्य गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी 1950 को सिविल जज,
फै जाबाद की अदालत में दायर किया। विशारद ने ढांचे के मुख्य गुंबद के नीचे स्थित भगवान की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना की
मांग की।
• करीब 11 महीने बाद, यानी 5 दिसंबर 1950 को, महंत रामचंद्र परमहंस ने भी सिविल जज के सामने मुकदमा दाखिल
किया। इस मुकदमे में, दूसरे पक्ष ने संबंधित स्थल पर पूजा-अर्चना में बाधा डालने से रोकने की मांग रखी गई। इस प्रकार, राम
जन्मभूमि के प्रति लगातार आंदोलन जारी रहा, जो भगवान राम के भव्य मंदिर की नींव रखने की मुहिम का हिस्सा बन गया।
• 1951 के 3 मार्च को, गोपाल सिंह विशारद के मामले में न्यायालय ने यह निर्णय लिया कि मुस्लिम पक्ष को पूजा-अर्चना में
किसी भी रूप में बाधित नहीं किया जाना चाहिए। इसी प्रकार, एक समर्थ न्यायाधीश ने प्रमहंस के द्वारा दायर मुकदमे में भी एक
समान आदेश जारी किया।

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निर्मोही अखाड़े ने पूजा-अर्चना की
अनुमति की मांग की
• 17 दिसंबर 1959 को, रामानंद संप्रदाय के एक समूह ने निर्मोही अखाड़े के छह सदस्यों के साथ
मिलकर एक मुकदमा दायर किया, जिसका उद्देश्य था इस स्थान पर अपना हक दावा करना। उन्होंने
मांग की कि रिसीवर प्रियदत्त राम को हटाकर वहां पूजा-अर्चना की अनुमति दी जाए, क्योंकि इसे हिंदू
समुदाय का पवित्र स्थान माना जाता है।
• इसके बाद, एक और मुकदमा 18 दिसंबर 1961 को दर्ज किया गया, जिसे उत्तर प्रदेश के कें द्रीय
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दायर किया। उन्होंने यह दावा किया कि यह जगह मुस्लिमों की सम्पत्ति है और
इसे मुस्लिम समुदाय को सौंप देना चाहिए। इस मुकदमे में न्यायिक निर्णय तक पहुँचा नहीं जा सका
और इसके बाद इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया जारी रही।
• इसी समय, राम काज के लिए हो रहे अन्य आंदोलनों के बारे में भी चर्चा की जा रही है।

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• आडवाणी की रथ यात्रा ने आंदोलन को मजबूती दी
आंदोलन तेजी से बढ़ रहा था। इस दौरान, लाल कृ ष्ण आडवाणी ने एक रथ यात्रा का आयोजन किया जोने आंदोलन को और भी जोर देने में मदद करता है। यह रथ यात्रा ने राम जन्मभूमि आंदोलन को और भी धाराप्रवाह बना
दिया।
• विवादित ढांचा का विस्तार, कल्याण सरकार को बर्खास्त
6 दिसंबर 1992 को, एक ऐसा दिन आया जिसने देश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरण की शुरुआत की। इस दिन, हजारों कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर विवादित ढांचा को गिरा दिया।
• याचिका में कहा गया – भगवान भूखे हैं, राम भोग की अनुमति दी जाए
मुकदमों की बात हुई है, तो फिर से कानूनी लड़ाई की ओर बढ़ते हैं और फै सलों की दिशा में बात करते हैं। एक फै सला 1 फरवरी 1986 को आया जब फै जाबाद के जिला न्यायाधीश के एम पाण्डेय ने स्थानीय अधिवक्ता उमेश
पाण्डेय की अर्जी पर इस स्थल का ताला खोलने का आदेश दिया।
• मालिकाना हक पर शुरू हुई हाईकोर्ट में सुनवाई।
अप्रैल 2002 में उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने विवादित स्थल का मालिकाना हक तय करने के लिए सुनवाई आरंभ की। उच्च न्यायालय ने 5 मार्च 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को संबंधित स्थल पर खुदाई का
निर्देश दिया।
• इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फै सला दिया है।
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस स्थल को तीनों पक्षों श्रीराम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया। न्यायाधीशों ने बीच वाले गुंबद के
नीचे जहां मूर्तियां थीं, उसे जन्मस्थान माना। इसके बाद मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा। 21 मार्च 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता से मामले को सुलझाने की प्रस्तावित पेशकश की। इसमें यह भी कहा गया कि अगर
दोनों पक्ष सहमत होते हैं तो उन्हें भी इसे सुलझाने के लिए तैयार है।
• सुप्रीम कोर्ट का फै सला ने मंदिर निर्माण के रास्ते को साफ किया।
6 अगस्त 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू की और 16 अक्टू बर 2019 को पूर्ण सुनवाई करने के बाद, कोर्ट ने फै सला सुरक्षित रखा। इससे पहले, 40 दिनों तक सुप्रीम कोर्ट में लगातार सुनवाई हुई।
• 9 नवंबर 2019 को, 134 सालों से चली आ रही विवादित लड़ाई में अंतिम फै सले का समय आया।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस दिन संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना और 2.77 एकड़ भूमि को रामलला के स्वामित्व में माना। इसके बावजूद, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज किया गया। साथ ही,
कोर्ट ने आदेश दिया कि मंदिर निर्माण के लिए कें द्र सरकार तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाए और उसमें निर्मोही अखाड़े के एक प्रतिनिधि को शामिल करे। इसके साथ ही, उत्तर प्रदेश सरकार से यह भी कहा गया कि वह मुस्लिम
पक्ष के लिए 5 एकड़ भूमि को उपयुक्त स्थान पर मस्जिद बनाने के लिए उपलब्ध कराए।
• 2020 में आधारशिला के बाद, अब प्राण प्रतिष्ठा का समय है।
इसी के साथ दशकों से चली आ रही लंबी कानूनी लड़ाई समाप्त हो गई है। अब निर्माण की बारी है। 5 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की। ठीक
छह महीने बाद, 5 अगस्त 2020 को, अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी गई, जिसमें पीएम मोदी शामिल हुए। अब, 22 जनवरी 2024 को, मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा होगी, जिसके बाद मंदिर लोगों के लिए
खुल जाएगा।

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सम्पर्क करने का विवरण
Website
www.ddelhi .com

Email Address
ddelhi.official@gmail.com

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