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Chapter 1 Hindi BHAGAVATA RASAMALAYAM
Chapter 1 Hindi BHAGAVATA RASAMALAYAM
श्री श्रीमद् अभयचरणारविन्द भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद (संस्थापकाचार्य : अन्तर्राष्ट्रीय कृ ष्णभावनामृत संघ) के द्वारा
प्र. ४ : प्र. ५ :
१.१.१ : परम सत्य प्र. १ : परम प्र. ३ : कृ ष्ण के प्र. ६ : कृ ष्ण के
प्र. २ : समस्त पुरुषावतार लीलावतार
की व्याख्या; कल्याण क्या प्रकट होने का अन्तर्धान होने के
शास्त्रों का सार (१.१.१७) (१.१.१८)
१.१.२ : श्रीमद् है ? (१.१.९) प्रयोजन बाद धर्म ने कहाँ
(१.१.११)
भागवतम् की शरण ली?
महिमा; (१.१.२३)
१.१.३ : भागवतम् उत्तर ३ : उत्तर ४ :
के मिठास का उत्तर १ : भक्ति
द्वारा भगवद् सत्त्वगुण में रहने १.२.३०-३३
स्वाद लेने के लिए उत्तर २ : उत्तर ५ :
प्रेम विकसित वालों के उद्धार श्लोकों में
मानवता को भक्तिमय सेवा अध्याय १.३ में
करना हेतु (१.२.३४, वर्णन आता
आमंत्रित करता है (१.२) वर्णन आता है
१.३.२८) है उत्तर ६ : श्रीमद्
(१.२.६,७)
भागवतम्
(१.३.४३)
स्कन्ध १ : प्रस्तावना – भाग ब (१.४-१९)
अध्याय १.४ में ऋषियों द्वारा ४ प्रश्न किये गये ।
सूत गोस्वामी अध्याय १.४-१९ में इन प्रश्नों के उत्तर देते है ।
प्र २. महाराज परीक्षित के प्र. ४.
प्र १. श्रीमद् जन्म और कर्म (१.४.९) प्र ३. परीक्षित हस्तिनापुर
भागवतम् क्यों महाराज ने नागरिकों ने
सब कु छ
लिखा गया ? त्याग कर गंगा शुकदेव
इसे कब और उत्तर २ : जन्म (१.७-१२) उत्तर २: कर्म के तट पर गोस्वामी को
कहा लिखा (१.१३-१७) बैठने का कै से पहचाना?
निर्णय क्यूँ राजा परीक्षित
गया ? इसकी लिया ?
प्रेरणा क्या ऋषि फिर (१.४.१०) की इस
परीक्षित के जन्म महामुनि के
है ? (१.४.३) से परीक्षित १.१३-१५ : परीक्षित १.१६-१७ :
सम्बंधित घटनाएँ साथ कै से भेट
के जन्म के के राज्याभिषेक परीक्षित
(१.७-११ : अश्वत्थामा हुई ? (१.४.६-
बारे में संबंधित घटनाएँ महाराज का
उत्तर १ को दण्ड, उत्तरा के गर्भ ८)
में परीक्षित की रक्षा ) पूछते हैं । राज और कलि उत्तर ३
(१.४-७) : को दण्ड
व्यासदेव की
१.१२.२ (१.१८-१९):
१.१३ : विदुर १.१४-१५ : श्रृंगी द्वारा
असंतुष्टि, नारद
व्यासदेव से
का हस्तिनापुर कृ ष्ण का राजा परीक्षित
प्र. २ का उत्तर देते उत्तर ४ (१.१८-१९) :
निवेदन करते हैं लौटना और अन्तर्धान होना, को शाप और
समय, सूत गोस्वामी १.१२ : श्रृंगी ने परीक्षित को
कि, वे भगवान् प्रमुख विषय से हटकर धृतराष्ट्र को पांडवों की परीक्षित का शाप दिया था, तब
परीक्षित का उपदेश देना, उन्होंने राज्य त्याग
की अध्याय १.८ : निवृत्ति, युधिष्ठिर पश्चाताप और
जन्म और किया और गंगा के
गतिविधियों महारानी कु न्ती की धृतराष्ट्र का गृह द्वारा परीक्षित का
ब्राह्मणों राज्य त्याग तट पर आए । शुकदेव
की प्रत्यक्ष रूप प्रार्थनाएं, १.९ : त्याग राज्याभिषेक
से स्तुति करें द्वारा उनके गोस्वामी का वहाँ
भीष्मदेव का देह त्याग, गुणों की आगमन हुआ, सभी
[नारद मुनि का १.१०-११ : भगवान् ऋषियों ने उनका
जीवन], स्तुति
का हस्तिनापुर से सम्मान किया,
व्यासदेव श्रीमद् अज्ञानीयों ने उनका
प्रस्थान और द्वारका में
भागवतम् की पीछा करना बंद
प्रवेश, का वर्णन करते किया, परीक्षित
रचना करते है
और शुकदेव हैं । महाराज ने शुकदेव
को सिखाते है गोस्वामी को प्रश्न पूछे
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
१.१ मुनियों की जिज्ञासा
विषय-सूची
• १.१.१ से १.१.३ तक प्रस्तावना :- श्रीमद् भागवतम् का विषय, महिमा और लक्ष्य
• १.१.४ से १.१.८ तक मुनियों की जिज्ञासा की पृष्ठभूमि, मुनियों द्वारा सूत गोस्वामी
की स्तुति
• १.१.९ से १.१.२३ तक मुनियों ने कलियुग की स्थिति बतायी और छह प्रश्न पूछे ।
श्रीमद् भागवतम् की महिमा और लक्ष्य
श्रीमद् भागवतम् (१.१.१)
जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञ: स्वराट्
तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरय: ।
तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा
धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकु हकं सत्यं परं धीमहि ॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
हे प्रभु, हे वसुदेव-पुत्र श्रीकृ ष्ण, हे सर्वव्यापी भगवान्, मैं आपको
सादर नमस्कार करता हूँ ।
श्रील प्रभुपाद द्वारा तात्पर्य :- भगवान् वासुदेव को नमस्कार करना
प्रत्यक्ष रूप से वसुदेव तथा देवकी के दिव्य पुत्र भगवान् श्रीकृ ष्ण को
इंगित करता है ।
प्रमाणित श्रोता :
• श्रवण करने के लिए लालायित, के वल परंपरा में श्रवण
करता है ।
आत्म-अनुभूति का यह अर्थ नही होता है कि गर्व
के कारण, पूर्ववर्ती आचार्य का उल्लघंन करके ,
कोई अपनी विद्वत्ता का प्रदर्शन करे । उसे पूर्ववर्ती
आचार्य पर पूरा विश्वास होना चाहिए और साथ ही
साथ उसे विषय का ऐसा उत्तम ज्ञान होना चाहिए
कि वह किसी विशिष्ट अवसर पर, उस विषय को
उपयुक्त ढंग से प्रस्तुत कर सके । विषय के मूल
उद्देश्य का पालन होना चाहिए । खींचतान कर
उसका कोई दुर्बोध अर्थ नही निकालना चाहिए,
अपितु श्रोताओं को समझाने के लिए उसे रोचक
ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए । इसे आत्मसात करना
कहा जाता है ।
( श्रीमद् भागवतम् १.४.१)
आत्म अनुभूति का यह अर्थ नहीं होता कि
- व्यक्ति गर्व के कारण, पूर्ववर्ती आचार्य का उल्लघंन करके , कोई अपनी विद्वत्ता का
प्रदर्शन करे ।
एक प्रचारक को
- अपने पूर्ववर्ती आचार्य पर पूर्ण विशवास होना चाहिए
- विषय वस्तु का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए
- किसी विशिष्ट अवसर पर, उस विषय को उपयुक्त ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए ।
उदाहरण : श्रील प्रभुपाद ने हिप्पियों का पतन नहीं देखा जितना उन्होंने उनके आत्मा
का कृ ष्ण के साथ स्वाभाविक सम्बन्ध को देखा ।
के वल परम सत्य
सूत गोस्वामी उनके द्वारा सीखे गए सभी
विषयों पर बोलने के लिए सहमत हो सकते
हैं, लेकिन ऋषि "के वल पूर्ण और परम
सत्य" के विषय में श्रवण करना चाहते हैं ।
कलियुग के लोग
६ प्रश्न
अध्याय दो में प्रवेश
श्री श्रीमद् अभयचरणारविन्द भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद (संस्थापकाचार्य : अन्तर्राष्ट्रीय कृ ष्णभावनामृत संघ) के द्वारा