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Divya Shastry Presentation MA Research Project
Divya Shastry Presentation MA Research Project
एम.ए.(संगीत)भाग २
विषय-हिुंदस्तानी संगीत में गाए जाने वाले कर्नाटक संगीत के राग
दिव्या शास्त्री
गाईड- डॉ शीतल मोरे
विषय कि पार्श्वभूमी व्याप्ती और मर्यादा, और संशोधन पद्धित
◦ एसे रागों पर संशोधन करना जो हिंदुस्तानी और कर्नाटक दोनों पद्धितयाँ में पेश किए जाते हैं।
◦ दोनों पद्धितयाँ के प्रस्तुतीकरण में फर्क को जानना।
◦ यह विषय बहुत बड़ा हैं क्योंकि संगीत की पहुँच इतनी विशाल हैं कि तुलना के विषय में काफी सारे चीजो को ध्यान
में रखना पढ़ता हैं।
◦ अलग ग्रंथ और किताबों द्वारा जानकारी हासिल की।
◦ कु ल १० राग ढूँढा जो दोनो पद्धित में पेश किए जाते हैं।
उद्देश्य और गृहीतक
◦ अलग अलग रागों के ऊपर संशोधन करना जो दोनों पद्धितयाँ में गाए जाते हैं, और किस प्रकार के वाद्यों का प्रयोग होता हैं।
◦ अलग रागों को जाति के अनुसार वर्गीकृ त करके उनके बारे में जानकारी हासिल करना।
◦ एक ही राग को कै से अलग तरीके से पेश किया जाता हैं ( दोनों पद्धितयाँ में) इसकी जानकारी हासिल करना।
◦ अलग किस्म की जानकारी पाई।
◦ हिंदुस्तानी संगीत के (इन रागों पर आधारित) बंदिशें सिखी।
पहला प्रकरण-हिुंदस्तानी संगीत में गाए जाने वाले कर्नाटक रागों का संक्षिप्त में अध्ययन
१. किरवानी
२. सालग वराली
३. सरस्वती
४. हंसध्वनी
५. वाचस्पति
६. आभोगी
७. जनसनमोहिनी
८. चारूके शी
९. शिवरंजनी
१०. दुर्गा
दूसरा प्रकरण- स्वर, ताल, मेल और गीत प्रकार संदर्भ में तुलनात्मक अध्ययन
◦ दोनों पद्धितयाँ में २२ श्रुति और ७ स्वर होते हुए भी स्वर अलग हैं।
◦ अलग ताल, गीत प्रकार और मेल के आधार पर भी भिन्न्ताएँ दिखती हैं।
◦ कर्नाटक ताल पद्धित के तालों में खाली नहीं होती, और वह सम से आरंभ होती हैं।
◦ ७ प्रमुख ताल होती हैं।
◦ लक्षण गीत, अलंकारम, स्वरजाति, तिललाना और पदम जैसे गीत प्रकार होते हैं।
तिसरा प्रकरण - ओड़व जाति के राग
◦ इस प्रकरण में ओढ़व जाति के राग के बारे में बताया गया हैं, जो दोनों पद्धतियाँ में गाए जाते हैं।
◦ इस संशोधन कार्य द्वारा दोनों संगीत पद्धितयाँ के बीच के फर्क के बारे में, और एक ही राग को कै से अलग तरीका से
पेश किया जाता हैं, यह पता चला।
◦ हमारी सांगीतिक परंपरा इतनी विशाल हैं, और इसके कारण उतनी ही भिन्नताएँ भी दिखने को मिलती हैं।
◦ वाद्य, गीत प्रकार, मंच प्रदशान में इन सारे भिन्न्ताएँ के बारे में पता चलती हैं।
◦ दोनों पद्धितयाँ के रागों के अंग अलग प्रकार के हैं, और यह कारन हैं कि स्वर एक होने के बाद भी पेश करने का
तरीका अलग हैं।
◦ संगीत रत्नाकार का एक बहुत बड़ी भूमिका हैं, और उत्तर और दक्षिण पद्धितयाँ के बारे में काफ़ी जानकारी हमे
मिलती हैं।