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किसी भौतिक राशि का परिमाण संख्याओं

में व्यक्त करने को मापन कहा जाता है।


मापन मूलतः तुलना करने की एक प्रक्रिया
है। इसमें किसी भौतिक राशि की मात्रा की
तुलना एक पूर्वनिर्धारित मात्रा से की जाती
है। इस पूर्वनिर्धारित मात्रा को उस राशि-
विशेष के लिये मात्रक कहा जाता है।
उदाहरण के लिये जब हम कहते हैं कि
किसी पेड़ की उँ चाई १० मीटर है तो हम
उस पेड़ की उचाई की तुलना एक मीटर से
कर रहे होते हैं। यहाँ मीटर एक मानक
मात्रक है जो भौतिक राशि लम्बाई या दूरी
के लिये प्रयुक्त होता है। इसी प्रकार समय
का मात्रक सेकण्ड, द्रव्यमान का मात्रक
किलोग्राम आदि हैं।
जिसे मापा नहीं जा सकता उसे संख्याओं में व्यक्त नहीं किया जा
सकता। बिना संख्यात्मक मान के विज्ञान या प्रौद्योगिकी नहीं हो
सकती।
यदि किसी भौतिक राशि का नियन्त्रण करना है तो उसे मापे बिना
सम्भव नहीं है। बिना शुद्धतापूर्वक मापे, किसी राशि का शुद्धतापूर्वक
नियन्त्रण भी नहीं हो सकता।
विभिन्न प्रक्रमों का उपयोग करके चीजों का उत्पादन किया जाता है।
इन प्रक्रियाओं से प्राप्त उत्पादों की गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती
है कि उस प्रक्रिया में निहित भौतिक राशियों को कितनी शुद्धता से
नियंत्रित किया गया था।
प्रकृ ति के रहस्यों को जानने के लिये भी मापन जरूरी है। मापन करने
से ही पता चलता है कि विभिन्न राशियों में क्या सम्बन्ध है। इसी से
नये नियम और सिद्धान्त दिये जाते हैं।
पदार्थों की उपयोगिता उनके गुणधर्मों पर आधारित है। इसके लिये
विभिन्न पदार्थों के गुणधर्म का विस्तार से ज्ञान होना जरूरी है। इसके
लिये मापन जरूरी है।
मापन का उपयोग इंजीनियरी, भौतिकी एवं अन्य विज्ञानों के अलावा
मनोविज्ञान, स्वास्थ्य आदि में भी होने लगा है।
शोध विधितंत्र में मापन को वर्गीकृ त करने का एक तरीका है
मापन के स्तर का निर्धारण। चूँकि मापन में गुणों को संख्याओं द्वारा
व्यक्त किया जाता है और संख्याओं के कु छ प्राकृ तिक और मूल गुण
(properties) होते हैं जैसे - उनकी अनन्यता, क्रमिकता, निश्चित अंतराल
पर स्थित होना इत्यादि; हम मापन का वर्गीकरण इस आधार पर कर
सकते हैं कि उसमें संख्याओं के कितने गुणों का समावेश किया गया है।
इस आधार पर मनोवैज्ञानिक स्टैनले स्मिथ स्टेवेंस ने मापन के चार स्तर
बताए - नामिक मापक, क्रमिक मापक, अंतराल मापक और अनुपात
मापक। इन श्रेणियों का प्रयोग शोध कार्यों में होता है और वहाँ यह किसी
परिकल्पना के सत्यता परीक्षण के लिये प्रयोग में लायी जा रही
सांख्यिकीय विधियों के चयन में महत्वपूर्ण होता है। उदाहरण के लिये
यदि कोई मापन नामिक या क्रमिक स्तर पर है तो उपलब्ध आँकड़े का
औसत ज्ञात करने के लिये समांतर माध्य नहीं निकाला जा सकता के वल
बहुलक का प्रयोग किया जा सकता है।
प्राकृ तिक विषयों का अध्ययन करते समय
उनके बारे में सही ज्ञान प्राप्त करने के
लिये यह आवश्यक है कि हम प्रकृ ति के
कु छ गुणों की माप करें। साधारणतया यह
पाया गया है कि माप में मुख्य रूप से तीन
राशियाँ, लंबाई, भार तथा समय, उपलब्ध
होती हैं। सैद्धांतिक रूप से प्रत्येक माप में
उपर्युक्त राशियाँ ही आती हैं। इन राशियों
में से किसी को भी मापने के लिये कोई
निश्चित तथा सुविधाजनक परिमाण को
मानक मान लिया जाता है। इसमें पूरी
मात्रा माप ली जाती है। इसको हम उस
विशेष राशि की इकाई, या एकक, अथवा
मात्रक मानते हैं। उदाहरणस्वरूप, अर्थ को
हम रूपए में गिनते हैं तथा तौल को
किलोग्राम में। विभिन्न प्रकार की इकाइयाँ
उपयोग में लाई जाती हैं।
ब्रिटिश पद्धति
इसे 'फु ट पाउं ड सेकं ड पद्धति' (F. P. S. System) भी कहा
जाता है। इस पद्धति में लंबाई को फु ट में, भार को पाउं ड
में तथा समय को सेकं ड में व्यक्त किया जाता है। यह
प्रणाली खास तौर पर उन देशों में प्रचलित है, जो कभी
ब्रिटिश साम्राज्य के अंग रह चुके थे। इसे विशेष रूप से
ब्रिटिश इंजीनियर, या ब्रिटेन में प्रशिक्षित इंजीनियर, तथा
ऋतु-विज्ञान-विशेषज्ञ उपयोग में लाते हैं; लेकिन इसका
स्थान मीटरी प्रणाली लेती जा रही है।

फ्रें च पद्धति
इसे मीटरी पद्धति, अथवा 'सेंटीमीटर ग्राम सेकं ड पद्धति'
(C. G. S. System) भी कहते हैं। इस पद्धति को संसार
भर में वैज्ञानिक कार्यों में उपयोग में लाया जाता है।
इसमें लंबाई को सेंटीमीटर में, भार का ग्राम में तथा
समय को एक सेकं ड में माप जाता है।
मीटरी पद्धति ही परिवर्तित परिवर्धित करके
मीटर-किलोग्राम-सेके ण्ड पद्धति बनी जो पुनः परिवर्धित
होकर अन्तरराष्ट्रीय इकाई प्रणाली (S I ) बनी।
मीटरी प्रणाली में लंबाई की मानक इकाई को मीटर कहते हैं। प्रारंभ में जनतंत्रीय फ्रें च
कानून के अनुसार इसे उत्तरी ध्रुव से विषुवत् रेखा तक पैरिस से गुजरती हुई याम्योत्तर
(meridian) की सीध में मापी गई दूरी के 1/107 वें हिस्सें के बराबर माना गया था। लेकिन
आजकल जो मानक माना गया है वह पैरिस के निकट सेव्र (Severes) में रखे प्लैटिनम-
इरीडियम मिश्रधातु के एक डंडे के सिरों पर बने दो चिह्नों के बीच की दूरी है, जब डंडा
शून्य डिग्री सेंटीग्रेड पर होता है। इसे मानक मीटर कहा जाता है।

लंबाई की मीटरी मापें


10 मिलीमीटर = 1 सेंटीमीटर (सेंमी॰)
10 सेंटीमीटर = 1 डेसिमीटर (डेसिमी॰)
10 डेसिमीटर = 1 मीटर (मी॰)
10 मीटर = 1 डेकामीटर (डेकामी॰)
10 डेकामीटर = 1 हेक्टोमीटर (हेमी॰)
10 हेक्टोमीटर = 1 किलोमीटर (किमी॰)
मीटरी पद्धति में द्रव्यमान की इकाई को ग्राम (किलोग्राम का हजारवाँ
भाग) कहते हैं और एक ग्राम का भार 4 डिग्री सें0 ताप के शुद्ध पानी के
एक घन सेंटीमीटर (c.c.) के भार के बराबर होता है।

द्रव्यमान की मीटरी मापें


10 मिलीग्राम = 1 सेंटीग्राम
10 सेंटीग्राम = 1 डेसिग्राम
10 डेसिग्राम = 1 ग्राम
10 ग्राम = 1 डेकाग्राम
10 डेकाग्राम = 1 हेक्टोग्राम
10 हेक्टोग्राम = 1 किलोग्राम
10 किलोग्राम = 1 मिरियाग्राम
हमें सूर्य आकाश के आर-पार जाता मालूम पड़ता है। आकाश में सूर्य
का सर्वोच्च स्थान या उच्चतम उन्नतांश तब होता है जब वह
याम्योत्तर (meridian) पर होता है। याम्योत्तर से सूर्य के दो बार
जाने के अंतराल को दृष्ट सूर्य दिन (Apparent solar day) कहते हैं।
अनेकानेक कारणों से दृष्ट-सूर्य-दिन की अवधि दिन प्रति दिन
बदलती रहती है, लेकिन एक वर्ष के पश्चात् यह उसी परिवर्तन चक्र
का दुहराती है। वर्ष की अवधि 365 1/4 दिनों की होती है। यदि हम
वर्ष के सभी दिनों के काल के जोड़ दें और इसे वर्ष के पूरे दिनों से
भाग दें, तो हम एक समयांतराल प्राप्त करते हैं, जिसे वेज्ञानिकों ने
"माध्य सूर्य दिन" की संज्ञा दी है। इस समय को चौबीस घंटों में
विभाजित किया गया है। प्रत्येक घंटे को साठ मिनट में तथा प्रत्येक
मिनट को साठ सेकं ड में बाँटा गया है। समय की इकाई को मीटरी
तथा ब्रिटिश दोनों पद्धतियों में सेकं ड माना गया है, जो माध्य सूर्य
दिन का 1/86,400 वाँ हिस्सा है।

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