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सनबीम सनसिटी स्कू ल एवं हाँस्टल

वार्षिक परीक्षा-2022

कला एकीकरण परियोजना

नाम - अंकित जायसवाल

कक्षा- ९ अ

ALPINE SKI HOUSE


जटायो शौर्यम

सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदु:खिता ।


वनस्पतिगतं गृध्रं ददर्शायतलोचना ॥१॥
अन्वय: - तदा आयतलोचना सा सुदु:खिता करुणा: वाच:
विलपन्ती वनस्पतिगतं गृध्रं ददर्श ।

तब करुण वाणी में रोती हुई बहुत दुखी और बड़ी बड़ी आंखों वाली (सीता) ने वृक्ष पर बैठे
हुए गिद्ध को देखा ।१।
ALPINE SKI HOUSE 2
जटायो ! पश्य मामार्य !ह्रियमाणामनाथवत् ।
अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा ।।२॥

अन्वय:- (हे) आर्य जटायो ! अनेन पापकर्मणा राक्षसेन्द्रेण अनाथवत्


ह्रियमाणां माम् करुणं (सकरुणम्)पश्य ।

हे आर्य जटायु! इस पाप कर्म करने वाले राक्षस राज (रावण) के द्वारा अनाथ की तरह
हरण की जाती हुई मुझे दुखी को देखो।२।
ALPINE SKI HOUSE 3
तं शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे ।
निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श स: ॥३॥

अन्वय:- अथ अवसुप्त: जटायु: तु तं शब्दं शुश्रुवे । स: क्षिप्रं रावणं


निरीक्ष्य वैदेहीं च ददर्श ।

इसके बाद सोए हुए जटायु ने उस शब्द को सुना तथा रावण को देखकर उसने शीघ्र ही वैदेही
को देखा।३।
ALPINE SKI HOUSE 4
तत: पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्ड: खगोत्तम: ।
वनस्पतिगत: श्रीमान् व्याजहार शुभां गिरम् ॥४॥

अन्वय:- तत: पर्वतशृङ्गाभ: तीक्ष्णतुण्ड: श्रीमान् खगोत्तम:


वनस्पतिगत: शुभां गिरं व्याजहार ।

उसके बाद (तब) पर्वत शिखर की तरह शोभा वाले, तीखे चोंच वाले, वृक्ष पर स्थित, शोभा युक्त पक्षियों में
उत्तम (जटायु) ने सुंदर वाणी में कहा।४।
ALPINE SKI HOUSE 5
निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात् ।
न तत्समाचरेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत् ॥५॥

अन्वय:- परदाराभिमर्शनात् नीचां मतिं निवर्तय । धीर: तत् न


समाचरेत्, यत् (कर्म) अस्य (तत्कर्मकर्तु:) पर: विगर्हयेत् ।

पराई नारी (पर स्त्री) के स्पर्श दोष से तुम अपनी नीच बुद्धि को हटा लो क्योंकि बुद्धिमान
(धैर्यशाली) मनुष्य को वह आचरण नहीं करना चाहिए जिससे कि दूसरे लोग उसकी निंदा करें।
५।
ALPINE SKI HOUSE 6
वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथ: कवची शरी |
न चाप्यादाय कु शली वैदेहीं मे गमिष्यसि ॥६॥

अन्वय:- अहं वृद्ध:, त्वं युवा, धन्वी, सरथ:, कवची, शरी च । मे


वैदेहीम् आदाय कु शली अपि न गमिष्यसि ।

मैं तो बूढ़ा हूं, परंतु तुम युवक(जवान) हो, धनुर्धारी हो, रथ से युक्त हो, कवच धारी हो और बाण
धारण किए हो। तो भी मेरे रहते सीता को लेकर नहीं जा सकोगे।६।
ALPINE SKI HOUSE 7
तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबल: ।
चकार बहुधा गात्रे व्रणान् पतगसत्तम: ॥७॥

अन्वय:- पतगसत्तम: महाबल: तीक्ष्णनखाभ्यां चरणाभ्यां तु तस्य


गात्रे बहुधा व्रणान् चकार ।

उस उत्तम तथा अतीव बलशाली पक्षी (जटायु) ने अपने तीखे नाखूनों और पैरों से उस
(रावण) के शरीर पर बहुत से घाव कर दिए।७।
ALPINE SKI HOUSE 8
ततोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम् ।
चरणाभ्यां महातेजा बभञ्जास्य महद्धनु|८|

अन्वय:- तत: महातेजा: अस्य मुक्तामणिविभूषितं सशरं चापं


अस्य महत् धनु: चरणाभ्यां बभञ्ज।

उसके बाद उस महान तेजस्वी (जटायु) ने मोतियों और मणियों से सजे हुए बाणों सहित उसके
(रावण के ) विशाल धनुष को अपने पैरों से तोड़ डाला।८।
ALPINE SKI HOUSE 9
स भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथि: ।
अङ्केनादाय वैदेहीं पपात भुवि रावण: ॥९॥

अन्वय:- भग्नधन्वा विरथ: हताश्व: हतसारथि: स: रावण:


वैदेहीम् अङ्केन आदाय भुवि पपात ।

तब टू टे हुए धनुष वाला, रथ से विहीन, मारे गए घोड़ों व सारथी वाला वह रावण, सीता को अंक में
लेकर भूमि पर गिर पड़ा।९।
ALPINE SKI HOUSE 10
संपरिष्वज्य वैदेहीं वामेनाङ्केन रावण: ।
तलेनाभिजघानाशु जटायुं क्रोधमूर्च्छित: ॥१०॥

अन्वय:- क्रोधमूर्च्छित: रावण: वैदेहीं वामेन अङ्केन


संपरिष्वज्य जटायुं तलेन आशु अभिजघान ।

(तब) बहुत क्रोधी रावण ने अपनी बाईं गोद में सीता को पकड़कर तलवार की मूठ से शीघ्र ही
जटायु पर घातक प्रहार किया।१०।
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