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रहीम के दोहे

कक्षा 9
रहीम का जीवन परिचय
जन्म - रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम (अब्दुर्रहीम) ख़ानख़ाना था। इनका जन्म १७ दिसंबर
१५५६ को लाहौर में हुआ।

खासियत - रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे और अकबर के दरबार में इनका महत्त्वपूर्ण
स्थान था। अकबरी दरबार के हिन्दी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है| इनके काव्य में नीति,
भक्ति–प्रेम तथा शृंगार आदि के दोहों का समावेश है।

भाषा - इन्होंने अरबी, फ़ारसी, संस्कृ त, हिन्दी आदि का गहन अध्ययन किया। रहीम ने अपने
अनुभवों को सरल और सहज शैली में प्रस्तुत किया। ये अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। इन्होंने ब्रज
भाषा, पूर्वी अवधी और खड़ी बोली का उपयोग अपने काव्यों में किया। इन्होंने अपने काव्य में तद्भव
शब्दों का अधिक प्रयोग किया है| गहरी से गहरी बात भी इन्होंने बड़ी सरलता से अपनी रचनाओं
में प्रस्तुत की है।

रचनाएँ - रहीम की कई रचनाएँ दोहों के रूप में प्रसिद्ध हैं। रहीम दोहावली, रहीम रत्नावली, बरवै,
नायिका भेद, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, नगर शोभा आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।

मृत्यु – इनकी मृत्यु ७० वर्ष की उम्र में १ अक्टू बर १६२६ में हुई|
पाठ परिचय
प्रस्तुत दोहों में रहीम जी ने हमें नीति व ज्ञान का अनमोल पाठ पढ़ाया है। उनके
अनुसार संसार में मौजूद हर वस्तु-हर इंसान का अपना महत्व है। फिर चाहे छोटा हो
या बड़ा, धनी हो या गरीब। उन्होंने हमें यह बताया है कि प्रेम का रिश्ता किसी धागे
की तरह होता है, उसे बहुत संभाल कर रखना पड़ता है। अगर एक बार धागा टू ट
जाए, तो फिर जोड़ने पर उसमे गाँठ पड़ जाती है अर्थात रिश्ते टू टने के बाद भले ही
दोबारा जुड़ जाएँ लेकिन लोगों के मन में कहीं न कहीं कसक रह जाती है।
इसी प्रकार बाकी सारे दोहों में रहीम जी ने यह बताया है कि हमें सबके साथ कै से
बर्ताव करना चाहिए। एक आदर्श जीवन जीने के लिए कै से आचरण रखने चाहिए।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से उन्होंने हमें प्रेम-भाव से जीने का संदेश दिया है।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टू टे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥

चटकाय-चटका कर / झटके से
परि जाय-पड़ जाती है
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥

निज-अपने
बिथा-दुख-दर्द
राखो-रखो
गोय-छिपाकर
अठिलैहैं-इठलाना / मज़ाक उड़ाना
लैहैं-लेंगे
कोय-कोई
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फू लै फलै अघाय॥

साधे-साधने पर
सधै-प्राप्त हो जाते हैं
जाय-चले जाते हैं
मूलहिं-जड़ को
सींचिबो-सींचते हैं
फू लै-फू लों से
फलै-फलों से
अघाय-तृप्त होते हैं
चित्रकू ट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥

रमि रहे-लीन हो गए
अवध-नरेस-अयोध्या के राजा राम
जा पर-जिस पर
बिपदा-विपत्ति/ मुसीबत
सो-वह
आवत-आता है
देस-प्रदेश/ क्षेत्र
दीरघ दोहा अरथ के , आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुं डली, सिमिटि कू दि चढ़ि जाहिं॥
दीरघ-लंबा
अरथ-अर्थ
आखर-अक्षर
थोरे-थोड़े
आहिं-होते हैं
नट-कलाकार
कुं डली-घेरा
सिमिटि-सिकु ड़कर
चढ़ि-चढ़ना
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥
धनि-धन्य है
पंक-कीचड़
लघु जिय-छोटे जीव प्राणी
पियत-पीकर
अघाय-तृप्त,संतुष्ट होना
उदधि-समुद्र
बडाई-महानता
जगत-संसार
पिआसो-प्यास
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥

नाद – संगीत
रीझि – प्रसन्न होकर
तन - शरीर
मृग - हिरण
नर - मनुष्य
हेत - कल्याण
समेत – सहित
पशु से अधिक – पशु से भी गए गुज़रे
कछू – कु छ भी
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥
बिगरी बात – बिगड़ी हुई बात
बनै नहीं – नहीं बनती
करौ किन कोय – कोई कु छ भी क्यों न करे
फाटे – फटे हुए
मथे – मथने पर
माखन – मक्खन
होय – होना
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥

बड़ेन – बड़ों / उच्च पद वालों


लघु – छोटे / सामान्य
डारि – डालना / त्यागना
कहा करे – क्या करेगी
तरवारि – तलवार
रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥

निज – अपना
संपति – धन-दौलत
बिपति - मुसीबत
सहाय – सहायक
जलज - कमल
रवि – सूर्य
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥

पानी - जल
सून - सूना, व्यर्थ
ऊबरै - चमके
मानुष – मनुष्य
चून - आटा

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